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डॉ. दत्ता सामंत से प्रकाश हिन्दुस्तानी की बातचीत

हड़ताल के बारे में आपकी ताजा रणनीति क्या है?

पिछले तो हफ्ते से जेल भरो आंदोलन चालू है। १२ हजार टेक्सटाइल वर्वâर्स महाराष्ट्र की सब जेलों में चला गया है। ठाणे, भांडुप चेंबूर सब जगह गिरफ्तारी दियेला है। कल दादर में बहुत बड़ा मीटिंग हुआ था। आपको भी आने का था उधर। अब आगे हमारा योजना महाराष्ट्र के इंजीनियरिंग के और केमिकल के सारे कारखानों में इनडेफिनेट (अनिश्चितकालीन) बंद करने का।

क्या जार्ज फर्नांडीस और आपमें कोई समझौता हुआ है, हड़तालों को लेकर?

नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। मगर इस देश में कामगारों के ऊपर इतने अन्याय हो रहे हैं कि कुछ कहने का ही नहीं है। बंबई के टेक्सटाइल मजदूरों के मालिकों ने २५-३० साल में बुरी गत बना दी है। फिर भी गवर्नमेंट कुछ ध्यान नहीं देता है। मजदूरों को डरा धमका के काम पे लाना। पुलिस का इंटरफियरेंस करना सब चालू है।

आप अपने आंदोलन को देशभर में क्यों नहीं पैâलाते?

टाइम नहीं मिलता है और फिर खाली-पीली देश का नाम लेकर कुछ भी नहीं करे, उससे अच्छा है कि अपने महाराष्ट्र में ही अच्छा काम करने का। अगर वहां का लोग ही कोई लिंक (सम्पर्वâ) रखे तो उधर जाने में भी कोई एतराज नहीं है।

अभी लंदन टाइम्स ने आपकी तारीफ की है और एक विदेशी अखबार ने तो आपकी तुलना पोलैंड के लेक वालेसा से कर दी है। आपको यह सब पढ़कर वैâसा लगता है?

नहीं, नहीं साब। अपने का ऐसा बड़ा बीड़ा बनाने का जरुरत नहीं है।

क्या यह सही है कि आपको कांग्रेस (इं) का एक वर्ग भी समर्थन दे रहा है, जिसमें अंतुले भी हैं?

ऐसा नहीं है। हमारा जो आंदोलन है, वो किसी पार्टी के बीच में पड़ने से नहीं हुआ है। ये कांग्रेस वालों के स्वार्थ के झगड़े हैं, इसके वास्ते वो ऐसी वैसी बात कहते रहते हैं। सच बोलें तो अंतुले ने ही हमको और हमारे आंदोलन को सबसे ज्यादा तकलीफ दिया है।

तकलीफ दिया है? जब श्री अंतुले ने आपको गिरफ्तार किया था, आपकी लोकप्रियता बढ़ी और यह वह जानते हैं।

इसके पहले मुझे शरद पवार ने भी दो दफा पकड़ा है। चव्हाण ने भी गिरफ्तार किया था। वसंतराव नाईक ने भी किया था। १९७२ में मुझे ८-१० बार गिरफ्तार किया गया।

श्रीमती इंदिरा गांधी इस पूरे आंदोलन को अनदेखा क्यों कर रही हैं? अमिताभ बच्चन बीमार था तो वे उसे देखने आ गर्इं लेकिन मजदूरों के लिए उनके पास वक्त नहीं है, क्यों?

वे सब समझती हैं, पर जो मिल ओनर्स एसोसिएशन (मिल मालिक संघ) है इससे उनका रिश्ता है। ये लोग हर चुनाव में करोड़ों रुपया देते हैं, तो इनको जो रिश्ता है, वो तोड़ने में दिक्कत आती होगी और दूसरी बात यह है कि आंदोलन पेâल हो जाएगा तो मुझको भी अच्छा सबक मिलेगा ऐसा वो सोचती है।

वे क्या कारण है कि मजदूरों की मांगे नहीं मानी जा रही है। कौन लोग हैं इसके पीछे?

मालिक इसमें सबसे पहले हैं। बीस साल से उन्होंने कुछ भी दिया नहीं है। बीआरआरएक्ट के मुताबिक वो युनियन जिसके पास एक टक्का कामगार भी नहीं है, सरकार का, राष्ट्रीय मिल मजदूर संघ का जो इंटक वालों का है और मिल मालिकों का एक रिश्ता है, जो इसके पीछे है।

मिल वालों का कहना है कि आप जितना पैसा मांग रहे हैं वे उतना दे ही नहीं सकते।

ये गलत है। एक किलो कपास में सौ रुपए का कपड़ा निकलता है। लोग टेरिकाट भी बनाते हैं। ये लोग हिसाब बराबर नहीं दिखाकर गड़बड़ करके मिलों की हालत खराब बनाते हैं।

क्या आपकी यूनियन के पास कोई पैनल है, जो मिलों के फायदा-नुकसान का हिसाब लगाता है?

है। हर कम्पनी का एक पैनल है और मैं यही चाहता हूं। मैं इसे प्रेस्टिज का इशू नहीं बनाता। जो फायदे में है, वो मजदूरों को देना ही मांगता है कि नहीं? इंदिरा बाई के पास टाइम नहीं, भोंसले को टाइम नहीं, तो गवर्नमेंट के पास जो टेक्सटाइल कमिश्नर है, उसे इस पर ध्यान देना चाहिए कि कामगारों पर कोई अन्याय तो नहीं है।

मिल मालिक संघ का कहना है कि हड़ताल असफल हो रही है। पचास हजार से ज्यादा मजदूर काम पर आ गए हैं।

वो तो छह महीने से ऐसा कह रहे हैं। वे गलत कहते हैं। वर्वâर्स तो इतना नहीं है। अभी तीस हजार लोग हैं, उसमें सिक्योरिटी वाला है, कारवूâन लोग है और जो है उसमें ज्यादा से ज्यादा नए लोग हैं।

आपकी इस हड़ताल को हिंसक क्यों कहा जाता है?

बिलकुल गलत । इतना लोग, दस बीस हजार लोग काम पे जा रहे हैं। हमारे वर्वâर चाहें तो उनको मारपीट दे सकते हैं। बड़ा-बड़ा स्ट्राइक मैं किया हूं, मगर जितना शांति से ये हड़ताल चल रहा है उतना कभी भी नहीं हुआ। इसमें कोई दादागिरी है? दादागिरी तो आरएमएमएस का लोग करता है। हमारे लोगों को पीटना। ये सरकार भी जानता है कि यह कितना पीसपुâल स्ट्राइक है।

जो मजदूर अंदर काम पर जाते हैं उनको आप शांतिपूर्वक रोकते हैं क्या?

जो मजदूर हैं वो तो काम पर जाते ही नहीं हैं। यही मैंने अभी बोला था। जो अंदर हैं वो नए लोग हैं, जो नौ महीने में इन्होंने दस हजार नया मजदूर लिया है। पांच साल बाद ये नब्बे हजार ले लेंगे तो ये सरकार के लिए शरम का बात है कि हजारों मजदूरों को काम से अलग कर दिया है। ये कोई लेबर पालिसी है क्या सरकार की? ये कोई सोचने का तरीका लगता है सरकार का?

मिल मजदूरों की तनख्वाह तो ठीक है, आपको नहीं लगता?

ये सब फोकट का भंपकगिरी है। गिरणी कामगारों ने पिछले सौ सालों में एक पुराना धंधा बढ़ाके दिया है। वो गर्मी में, तेजाब में, सीलन में काम करता है। अस्सी परसेंट वर्वâर को सात सौ रुपया पगार भी नहीं मिलता है। एक लाख मजदूर छह से बारह साल तक बदली में काम करता है, उसको तीन सौ रुपया भी नहीं मिलता है। दूसरी तरफ मालिक लोगों ने झूठ बोलकर काला बाजार करके करोड़ों रुपया कमाया है और स्ट्राइक करने के बाद भी सरकार नहीं सुनता है। धारा १४४ लगाता है। अगर ऐसे ही कामगारों को भूखा मारने का तरीका इस देश में है तो इसमें कामगार गुस्सा करेगा ही और इसमें कामगार अगर हिंसा करे तो मैं इसे जस्टिफाय करूंगा।

क्या ऐसी हिंसा संभव है?

हो सकती है। हिंसा क्या होता है? तुम कामगार का खून पिया। उसको २५ साल भूखा रखा, छह साल बदली पे रखा। अब उसको तीन सौ रुपया मिलता है तो वो बंबई में नहीं रह सकता। वह जवान जो मजदूर है और मैट्रिक पास है, उसने अगर कल हाथ में पत्थर लिया तो उसे हिंसा बोलना। ये हिंसा बोलने वाला चोर है। इस देश का जिसने बिगाड़ा वो चोर हैं। वो मिल मालिक जिन्होंने प्राविडेन्ट फण्ड खाया, हिसाब नहीं दिया वो तो सबसे ही ज्यादा चोर है।

मिल मालिक अब मिलें शिफ्ट करने की बातें करते हैं, क्यों?

जो लोगों ने गलत धंधा करके करोड़ों रुपया कमाया उन लोगों की जांच सीबीआई से कराना चाहिए। मिलों की शेयर वैâपिटल ७५ करोड़ रुपया है और सरकार उनको हर साल ३०० करोड़ रुपया देता आया है। मिल मालिक यदि केवल जमीन बेचेंगे तो ६०० करोड़ रुपया उनको आने वाला है, तो वो लोग ऐसी बातें करेंगे ही। शिफ्ट क्यों करते हो? हमारे कामगारों को ही ये सारी मिलें दे दीजिए।

हड़ताल करने वाले मजदूरों को युनियन ने क्या राहत दी?

अब तक हमारी युनियन ने सवा से डेढ़ करोड़ रुपए तक का अनाज और नगदी मजदूरों को बांटा है।

एक व्यक्तिगत सवाल। आप कितने घंटे काम करते हैं?

सुबह छह बजे उठता हूं, सात बजे से लोगों से मिलना-जुलना शुरू कर देता हूं। यह दिनभर चलता रहता है और अभी तक चल रहा है। अब ये देखिए कि रात का डेढ़ तो बज ही रहा है। अब आप जाइए फिर कभी आइए।

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