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Trade War 2

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में 2009 से 2013 तक कार्य करने वाली सामंथा विनोगार्ड का मानना है कि दुनिया में नया ध्रुवीकरण हो रहा है। इस ध्रुवीकरण के कारण अमेरिका के खिलाफ तमाम देश लामबंद हो रहे है। जो देश अमेरिका के करीबी थे, वे भी दूर छिटक रहे हैं और जो दूर थे, वे और भी ज्यादा दूर जा रहे हैं। इन सबके चलते भविष्य में अमेरिका अलग-थलग पड़ सकता है। इसका एक मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का व्यवहार बताया जाता है। यह अमेरिका के हित में नहीं है और न ही अमेरिका के सहयोगी मूल के हित में।

अमेरिका के प्रतिस्पर्धी रहा रूस अब चीन के करीब आ गया है और ये दोनों मिलकर कई क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। सउदी अरब अब तक अमेरिका के पक्ष में था, वह अब रूस और चीन की निकटता का फायदा उठा रहा है। सउदी अरब के लिए बेलेस्टिक मिसाइल प्रोग्राम बनाने का काम अब चीन कर रहा है। तुर्की हथियारों का बड़ा खरीददार है और वह अपने हथियार रूस से खरीदने लगा है।डोनाल्ड ट्रम्प ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की है कि दूर होते देश अमेरिका के करीब आने लगे।

1950 के दशक में रूस और चीन मित्र नहीं थे। दोनों में अपने तरह की अलग-अलग प्रतिस्पर्धा थी, लेकिन अमेरिका के खिलाफ एक होने में इन दोनों को कोई देरी नहीं लग रही थी। अमेरिका ने रूस के विरूद्ध कई तरह के प्रतिबंध लगाए है और ऐसी ही कुछ आर्थिक प्रतिबंध चीन के विरूद्ध भी लगाए है। व्यापार युद्ध के नुकसान चीन और रूस को एक समान हो रहे हैं और इसीलिए वे एक साथ एक मंच पर आ रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में अरबों डॉलर के एक सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं।

Trade War 1

रूस और चीन की यह आर्थिक नाकाबंदी एक प्रतीक मात्र है। व्यापार युद्ध से नाराज चीन अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है। इसीलिए वह अमेरिका के खिलाफ व्यापार युद्ध के बारे में प्रचार कर रहा है। रूस इसी तरह के व्यापार युद्ध की बाधाएं पहले झेल चुका है। अब रूस और चीन दोनों मिलकर अमेरिकी प्रभाव को कम करने में लगे है। ये दोनों देश उत्तर कोरिया में किम जोंग उन के सत्ता में बने रहने में मदद भी कर रहे है। उन्हें लगता है कि अगर उत्तरकोरिया में सत्ता बदली, तो यह उनके हित में नहीं होगा।

रूसी और चीनी राष्ट्रपति अब सार्वजनिक मंच पर साथ होने के जश्न मना रहे हैं और आर्थिक साझेदारी की बात भी कर रहे हैं। अंदर ही अंदर ये दोनों अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को रोकने की योजना भी बना रहे हैं। दोनों ही देशों के नेताओं पर आरोप है कि उन्होंने अपनी सायबर क्षमताओं का उपयोग करते हुए अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव को प्रभावित किया।

ट्रम्प ने चीन की एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया, तो चीन ने रूस में 5जी सेवाएं देने का करार कर लिया। अब दोनों देश साझा सैन्य अभ्यास भी कर रहे हैं। दोनों ने अपने पुराने विवादों को दफना दिया है और नए सहयोगी बनकर उभर रहे हैं। इतना ही नहीं ये दोनों मिलकर अन्य देशों को भी अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए सऊदी अरब कह रहा है कि उसे ईरान से खतरा है और वह बेलेस्टिक मिसाइल्स चाहता है। ऐसी मिसाइल, जो परमाणु हथियार लेकर दुश्मन पर हमला कर सके। अमेरिका इस तरह की मिसाइलें देने पर ना कह चुका है, लेकिन चीन सऊदी अरब के साथ सभी क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी के लिए आगे आ रहा है। यहां तक कि हथियारों की खरीदारी में भी। चीन की इस कोशिश से मध्य एशिया में हथियारों की होड़ में और बढ़ोत्तरी होगी। सऊदी अरब की खुली धमकी है कि अगर इरान परमाणु हथियार के क्षेत्र में आगे बढ़ेगा, तो हम भी बढ़ेंगे ही।

सऊदी अरब के राज परिवार पर अमेरिकी पत्रकार जमाल खशोगी का हत्या का मामला है ही। अमेरिका सऊदी अरब में मानव अधिकारों का उल्लंघन का मामला भी बार-बार उठा रहा है। यमन में भी मानव अधिकारों का खुलकर हनन हो रहा है, लेकिन ट्रम्प प्रशासन ने उसके बारे में चुप्पी साध रखी है। सऊदी अरब इसके पहले रूस से एन्टी मिसाइल सिस्टम्स खरीदने की पहल कर चुका है। अमेरिकी गुट का तुर्की रूस से एस400 रक्षा प्रणाली अगले वर्ष प्राप्त कर लेगा, जबकि अमेरिका इसके बारे में प्रतिबंध लगा चुका है। नाटो देशों के समूह में रूसी हथियारों और रक्षा प्रणालियों की खरीद कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया के छोटे देश यह जान चुके है कि अमेरिका हथियार बेचने वाला कोई अकेला व्यापारी नहीं है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अमेरिका की वर्तमान रूख उसे कई मित्र देशों से दूर कर देगा।

अंतरर्राष्ट्रीय संबंधों के जानकर हैरी एन्टेन का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का व्यापार युद्ध राजनैतिक रूप से बड़ी असफलता सिद्ध होगा। 2016 के राष्ट्रपति के चुनाव में ट्रम्प ने इसी तरह के प्रतिबंधों की बात की थी, जबकि उनकी प्रतिस्पर्धी डेमोक्रेटिक पार्टी की हिलेरी क्लिंटन और अधिक फ्री ट्रेड की वकालत करती थी। ट्रम्प को कई मामलों में अपनी व्यापार युद्ध की पॉलिसी में मात भी खानी पड़ी और पीछे भी हटना पड़ा। कनाडा और मेक्सिको से एल्यूमीनियम और स्टील की खरीददारी में उसे अपनी पुरानी दरें वापस लागू करनी पड़ी।

अंतरर्राष्ट्रीय राजनीति के बदलते समीकरणों के बीच भारत भी अपनी नीतियां बदल रहा है। इसकी झलक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ समारोह में बुलाये गये राष्ट्राध्यक्षों से ही साबित होती है। अब सार्क देशों के संगठन को भारत उतनी तवज्जों नहीं देता। अमेरिकी प्रतिबंधों के बारे में भी भारत का रूख स्पष्ट और कड़ा है। जाहिर है दुनिया में हो रहे बदलावों से भारत कभी भी अलग नहीं हो सकता है।

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