कुछ साल पहले कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि सोशल मीडिया का प्रभाव इतना जबरदस्त हो जाएगा। वर्तमान में इंटरनेट की सबसे प्रमुख गतिविधि में सोशल मीडिया को शामिल किया गया है, लेकिन यही सोशल मीडिया लोगों के लिए तनाव का कारण भी बनता जा रहा है। सोशल मीडिया से प्राप्त जानकारियों के आधार पर तरह-तरह के अपराध हो रहे है। हाल ही में पेरिस में किम कार्दशियान के साथ हुई लूट की वारदात के पीछे भी सोशल मीडिया में उनकी सक्रियता को माना जा रहा है। किम अपनी रोजमर्रा की जानकारियां सोशल मीडिया पर शेयर करती रही है। इंस्टाग्राम पर पोस्ट की गई उनकी तस्वीर से ही अपराधियों को पता चला कि किम के हाथ में जो अंगूठी है, वह उनके पति ने 90 लाख डॉलर में खरीदी थी। पेरिस में एक शो के दौरान गई किम की करोड़ों की ज्वेलरी अपराधी लूट ले गए। भारत में भी सोशल मीडिया से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर या सोशल मीडिया के दुरूपयोग से होने वाले अपराधों की संख्या काफी है।
समाज के अनेक तबकों से सोशल मीडिया के बारे में इस तरह की जानकारियां भी आ रही है कि किस तरह सोशल मीडिया से मुक्ति पाएं। यह भी कहा जा रहा है कि अगर हमेशा के लिए नहीं, तो कम से कम कुछ सीमित समय के लिए तो सोशल मीडिया से मुक्ति पा लेनी चाहिए। अंग्रेजी की एक लेखिका वेलेरी टेजेदा, जिन्होंने मशहूर किताब विच हंटर लिखी है, ने हाल ही अपने अनुभव लिखे है। दो साल से सोशल मीडिया पर वेलेरी बहुत ज्यादा सक्रिय थी। इसकी शुरूआत तब हुई, जब उनकी एक किताब बाजार में आने वाली थी और उनके प्रकाशक ने कहा कि वे अपनी किताब के प्रचार के लिए हर रोज इंस्टाग्राम पर कुछ न कुछ पोस्ट अपलोड किया करें।
वेलेरी ने इंस्टाग्राम पर अपनी पोस्ट अपलोड करना शुरू ही किया था कि कुछ दिन बाद प्रकाशक का फिर फोन आया और कहा कि अपने बारे में कम से कम बातें शेयर करो। ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आप अपनी किताब को प्रमोट कर रही है। इसके पहले तक वेलेरी इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर अपने निजी और कुछ खास दोस्तों के फोटो ही शेयर करती थी, लेकिन किताब बेचने के फेर में वे ऐसी सक्रिय हुई कि उनका दिन-रात सोशल मीडिया पर ही खपने लगा। उन्हें लगता था कि सोशल मीडिया किताब बेचने के लिए एक अच्छा प्लेटफार्म है। उन्हें यह समझाया गया कि वे अपनी किताब बेच रही है, कोई और उत्पादन नहीं।
जैसा कि विदेश में होता है प्रकाशकों और लेखकों के अपने प्रचारक होते है। उनकी सलाह के अनुसार ही वेलेरी अपनी नियमित पोस्ट भेजने लगी। सोशल मीडिया की पोस्ट के चक्कर में उनका रहना, खाना पीना, मेल-जोल सबकुछ बुरी तरह प्रभावित होने लगा। उन्हें जब भी वक्त मिलता, वे सोशल मीडिया पर अपनी गतिविधियां पोस्ट करने लगती। उनके दैनंदिन कार्य छूटने लगे। उनका ज्यादा समय मित्रों के बजाय सोशल मीडिया पर बीतने लगा।
एक दिन सोने के पहले वेलेरी ने महसूस किया कि उनका शरीर बुरी तरह से तप रहा है। अपने पूरी शरीर में उन्हें अकड़न भी महसूस होने लगी। उनकी टांगें भी कांपने लगी। हाल इतना बुरा हो गया कि वे अपनी सांसें भी स्वाभाविक तरीके से नहीं ले पा रही थी। दिन की धड़कने एकदम तेज हो गई थी। उन्हें लगा कि एकाएक कोई शारीरिक आघात पहुंचा है और वे जल्दी ही कब्रिस्तान पहुंचा दी जाने वाली है। इसके बावजूद किसी तरह उन्होंने अपना उस दिन का काम निपटाया और बिस्तर पर गई, उन्हें लगा कि हालात सामान्य नहीं हैं।
कुछ दिन बाद वे घबराई सी अपने डॉक्टर के पास पहुंची। डॉक्टर ने पूरी बातें सुनी और पूछा कि तुम्हें ये कब से हो रहा है और कब इसका खतरा ज्यादा लगता है? वेलेरी ने पूरी कहानी बताई और कहा कि अक्सर यह रात के समय होता है, जब मैं सोशल मीडिया पर अपनी फीड के जवाब पढ़ती हूं। डॉक्टर ने उनकी किताब के बारे में पूछा, तब वेलेरी ने बताया कि वह किताब तलाकशुदा युगल के बारे में है। मुझे ऐसा लगता है कि उनके तनाव मेरे शरीर में आ गए है। डॉक्टर ने कहा कि आपको अंदाज ही नहीं है कि आपकी परेशानी कितनी गंभीर है।
वेलेरी के पास डॉक्टर की बात मानने के अलावा कोई उपाय नहीं था। डॉक्टर ने कहा कि जब तुम्हें वॉक करना चाहिए, तब तुम वॉक की जगह सोशल मीडिया पर चिपकी रहती हो। जब तुम्हें जिम या स्विमिंग पुल में होना चाहिए, तब भी तुम सोशल मीडिया पर ही रहती हो। डॉक्टर ने साफ कहा कि तुम्हें सोशल मीडिया की लत से दूर रहना होगा, इसके बिना तुम्हारा कोई भी उपचार संभव नहीं है।
अगले ही दिन से वेलेरी ने सोशल मीडिया से दूरी बना ली। डॉक्टर ने कहा था कि तुम्हें कुछ भी हो जाए, कितना भी जरूरी काम पड़ जाए पर सोशल मीडिया की तरफ झांकना मत। शुरू के एक-दो दिन तो बहुत तनावपूर्ण बीते, लेकिन धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ गई। दो हफ्ते बाद ही वेलेरी ने महसूस किया कि उनकी मन में एक तरह की शांति का अभाव पैदा हो गया है। कई बार उन्हें इस बात का दुख होता कि लोग उनके बारे में कितनी अच्छी-अच्छी बातें भी लिख रहे है, जिसे वे नहीं पढ़ पा रही है, लेकिन अगले ही क्षण वे उससे मुक्त हो जाती। एक महीने के बाद ही उन्होंने महसूस किया कि वे बिलकुल सामान्य जीवन जी रही है। कुछ दिनों पहले वे जिस तरह की बेचैनी महसूस करती थी, अब वैसी बेचैनी से मुक्त है। अपनी किताब की शानदार उपलब्धि से वे प्रसन्न जरूर है, लेकिन दबाव में नहीं है। हर दिन उनके लिए उत्साहपूर्वक होता है और उनके शरीर के कष्ट भी काफी हद तक कम हो गए है।
वेलेरी की तरह ही सोशल मीडिया को लेकर जॉन एकफ के अनुभव भी है। एकफ की पांच किताबें अंग्रेजी की बेस्ट सेलर किताबों में शामिल है। सोशल मीडिया और ऐसे ही अन्य संसाधनों के बारे में एकफ के अनुभव भी उल्लेखनीय है। एकफ सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय है और ट्विटर पर 40 हजार से ज्यादा संदेश पोस्ट कर चुके है। एकफ आमतौर पर अपने कम्प्यूटर और टैब पर अपने मेल चेक करते रहते हैं। एक दौर ऐसा भी आया, जब वे मोबाइल का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करने लगे। उनका ज्यादातर समय अपने मेल चेक करने में ही लग जाता। बचा-खुचा समय सोशल मीडिया खा जाता।
परेशान से एकफ ने फैसला किया कि वे दस दिनों के लिए अवकाश लेंगे। उन्होंने दस दिन तक न तो अपना कोई ई-मेल चेक किया, न सोशल मीडिया पर गए। ई-मेल पर उन्होंने अपना एक शेड्यूल अपडेट कर दिया कि वे कब उपलब्ध होंगे। अपने दस दिन के अनुभवों से एकफ ने सात निष्कर्ष निकाले, जो ये हैं :
1. अपना मोबाइल बंद करने का मतलब यह नहीं है कि आप रचनात्मक नहीं रहे। इससे आप कई अनचाहे कामों से बच सकते है।
2. मैं कोई बहुत महत्वूर्ण व्यक्ति नहीं हूं, न ही कोई और इतना महत्वपूर्ण है। सोशल मीडिया पर मेरी निष्क्रियता को किसी ने नोटिस नहीं किया। मैं पोस्ट लिखूं या न लिखूं।
3. मेरी पहचान, मेरे काम से है, मेरे सोशल मीडिया से नहीं। सोशल मीडिया कितना बड़ा एडिक्शन था, मैं इससे वाकिफ नहीं था।
4. बंद मोबाइल शांति का प्रतीक है। जब भी मैं थोड़ी शांति महसूस करता, तो अपने आप मेरा हाथ मोबाइल की ओर जाता, लेकिन मैं उसे वहीं रोक देता और बंद मोबाइल की शांति को महसूस करता।
5. ज्यादा पढ़ने के लिए वक्त उपलब्ध होना। मोबाइल और ई-मेल से मुक्ति के बाद मुझे पढ़ने-लिखने के लिए ज्यादा समय उपलब्ध रहने लगा।
6. दूसरों के बारे में मेरे विचार बदलने लगे। फोन बंद करने के बाद जब मैं लोगों को देखता, तब मुझे लगता कि लोग मोबाइल पर किस कदर बेजार है। मैं रेस्टोरेंट में खाना खाते जाता, तो देखता कि वहां लोग खाने पर ध्यान नहीं दे रहे है, बल्कि मोबाइल पर ध्यान दे रहे है।
7. अपने लिए और अपनों के लिए ज्यादा समय उपलब्ध हुआ। अब मैं अपने घर पर अपने लोगों के लिए ज्यादा समय उपलब्ध हूं। मेरे पास मोबाइल और ई-मेल की अनावश्यक व्यस्तताएं नहीं है।
इन दोनों लेखकों के अनुभव से एक बात सीखी जा सकती है कि अगर हम सोशल मीडिया से हमेशा के लिए मुक्ति नहीं पा सकते, तो कम से कम कुछ दिनों के लिए तो अवकाश ले ही सकते है। भारत में नवरात्रि और रमजान के महीने में लोग लंबे-लंबे उपवास करते है। यह भी एक तरह का उपवास ही हुआ।