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हमारे स्वूâलों में अंग्रेजी लिखना भी सिखाया जाता है और बोलना भी। अंग्रेजी के उच्चारण सही हों, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है। दुर्भाग्य ऐसा हिन्दी के साथ नहीं है। हमें न तो हिन्दी ढंग से लिखना सिखाया जाता है और न बोलना। इसीलिए आमतौर पर हिन्दी वालों की मात्राओं में बहुत गलतियां होती हैं और जब बोलने का मौका आए तो गलत उच्चारण और अनावश्यक बातों की लाग-लपेट। फिजूल की बातें कहने में हिन्दीभाषियों का मुकाबला बांग्ला, मराठी, तमिल या मलयालमभाषी नहीं कर सकता। हिन्दी वालों में अनावश्यक बातें करने और बात-बात पर तकियाकलाम कहने की बुरी आदतें होती हैं। इंदौर और भोपाल में लोग मां और बहन से रिश्ता जोड़ने वाली गालियों का इस्तेमाल मुहावरों की तरह करते हैं और ऐसा करके कई बार तो वे खुद को भी गालियां दे देते हैं।

कई लोगों की आदत होती है बात-बात पर ‘आपकी दुआ से’ कहने की। आप वैâसे हैं? आपकी दुआ से ठीक हूं। घर पर सब वैâसे हैं? आपकी दुआ से मां को वैंâसर हो गया था। आपकी दुआ से महीनेभर पहले ही उनका इंतकाल हो गया। (ये भारत है और यहां कोई भी किसी को वैंâसर होने या मरने की दुआ नहीं करता। पर तकियाकलाम है तो है!) यहां आप किसी से पूछ लीजिए- भाई साहब बंगला नं. १५९ कहां होगा? जवाब मिलेगा- भाई साहब, क्या नाम से हमको तो आइडिया नर्इं हे, पर मेरे ख्याल से वो आसपास ही कहीं होगा। मेरे ख्याल से सामने पानवाला होगा, उसको... मेरा कहने का मतलब है उससे पूछ लीजिए। (अरे भाई! दो-टूक कहिए- नहीं मालूम। अब किससे पूछना है, यह हम सोच लेंगे।) ऐसे ही एक परिचित को बात-बात पर बधाई हो, मुबारक हो, कहने की लत है। पूछो किस बात की बधाई तो जवाब मिलेगा- प्रलय नहीं हुआ, नौकरी सलामत है, आप जीवित हैं, भूवंâप नहीं आया वगैरह-वगैरह की बधाई। किसी मित्र ने उन्हें फोन किया और पिता की मृत्यु का दु:खद समाचार सुनाया। वे बोले- बधाई हो! इसके बाद उनका तकियाकलाम तो साथ रहा, पर दोस्त का साथ छूट गया।

एक आम तकियाकलाम है- ‘कहने का मतलब यह है कि...’ लेकिन पूरी बात सुनो तो लगता है कि उनके कहने का कोई मतलब ही नहीं था। मेरे कहने का मतलब ये है कि उनके यह कहने का कोई मतलब नहीं, लेकिन फिर भी उन्होंने कहा है तो मेरे कहने का मतलब यह है कि उसका जरूर कोई मतलब होगा। कई भाई बात-बात पर ‘क्या नाम से’ कहते हैं। जैसे मैं तो क्या नाम से फिल्म देखने गया, पर क्या नाम से मेरे पिताजी पसंद नहीं करते। कई लोग बात-बात पर फरमाते हैं- इंशा अल्लाह! आपका काम बन जाएगा। इंशा अल्लाह! ग्यारह बजे होंगे अभी। इंशा अल्लाह! किसी से मजहबी जुनून को भड़काइए मत।

कुछ लोग बात-बात पर कहते हैं कि गजब हो गया। सोचो तो इस वाक्य के अलावा कुछ भी गजब नहीं होता। आज तो गजब हो गया साब! आठ बजे नींद खुली। बाथरूम में गया तो गजब हो गया- पानी ही नहीं था। पेपर पढ़ने बैठा तो उसमें इंदौर पोस्ट ही नहीं था। तभी भाभी आ गई! उन्होंने गजब की चाय बनाकर दी। कुछ लोग बात-बात में कहते हैं- तुम्हारी क्या राय है? जैसे मेरे ख्याल से अभी दस बजे होंगे, तुम्हारी क्या राय है? उन्हें कौन समझाए कि समय बताने या पूछने में राय क्या कर लेगी? कई लोग इतना ज्यादा सोचते हैं कि सोचते ही रहते हैं। मैं सोचता हूं कि मुझे भूख लगी है। कई लोग कहेंगे- वो क्या है कि मुझे भूख लगी है। कुछ इसे कहेंगे- वो में क्या के रिया था कि मेरे को भूख लगी है। कुछ श्रीमान फरमाते हैं- लाख टके की बात यह है कि मुझे भूख लगी है। कई लोग बात-बात पर कहते हैं- मैं आपकी छोटी-सी बात काट रहा हूं, बुरा मत मानिए। और यह बात बीस मिनट में बीस बार कहकर वे बुरा मानने को बाध्य कर देते हैं। आम प्रचलित तकियाकलामों में- दरअसल, सही है, हमारे यहां तो, कहने लगे कि, आपसे बताएं, समझे ना, क्या कहते हैं, क्या साब, हऊ, सर, हां तो आदि बहुचर्चित हैं। कई लोग अंग्रेजी शब्दों को तकियाकलाम के रूप में इस्तेमाल करते हैं आई मीन, आय वांट टु से, लेट मी टेल यू, दिस इज नाट राइट आदि-आदि।

-प्रकाश हिन्दुस्तानी

६ जून १९९७

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