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वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (10 मई 2014)

इंदौर पुलिस के अधिकारियों ने रात्रिकालीन शिफ्ट करने वाले जवान गणपत सिंह को निलंबित कर दिया है। जांच के बाद यह काम किया गया। गणपत सिंह पर आरोप यह था कि उसने अपराधों की रोकथाम में मदद की थी। गणपत सिंह जैसे और भी पुलिसकर्मी हो तो इंदौर में अपराध पूरी तरह खत्म हो सकते है।

पिछले हफ्ते की बात है। बायपास के पास 60 लाख रुपए की ऑडी में एक शख्स अपनी पत्नी के साथ जा रहा था। रात के करीब डेढ़ बजे थे और उन सज्जन की कार पंक्चर हो गई। उन सज्जन ने वहां से गुजर रहे दो पुलिसकर्मियों को रोकने के कोशिश की, लेकिन वे नहीं रुके, क्योंकि कोई अपराध नहीं हुआ था। थोड़ी देर बाद वहां से 7-8 युवकों का झुण्ड मोटरसाइकिल पर निकला। कार वाले दम्पत्ति को लगा कि उनके साथ लूट हो सकती है। उन्होंने 100 नंबर पर फोन लगाया। पहले तो रिकॉर्डेड संदेश बजा कि इंदौर पुलिस आपका स्वागत करती है, लेकिन जब समस्या बताई गई तब पुलिसवाले ने कहा कि हां, बताइए।

‘‘मैं बायपास के पास से बोल रहा हूं। मेरी वाइफ मेरे साथ है और मेरी गाड़ी पंक्चर हो गई है।’’ ‘‘तो क्या आपकी गाड़ी में स्टेपनी नहीं है? 8-8, 10-10 लाख गाड़ी में घूमते हो और स्टेपनी नहीं रखते हो?’’ ‘‘स्टेपनी तो है, लेकिन यहां बहुत अंधेरा है और डर भी लग रहा है’’ ‘‘अच्छा, टार्च क्यों नहीं रखते तुम? क्या चाहते हो?’’ ‘‘यहीं चाहते है कि कोई आ जाए तो हम अपनी गाड़ी की स्टेपनी बदल लें’’ ‘‘अच्छा, मैं अभी भेजता हूं, हमारे एसपी को। वह आकर तुम्हारी गाड़ी की स्टेपनी बदल देंगे’’ ‘‘नहीं मेरा मतलब यह नहीं है, यहां हमारे साथ कुछ हो जाए तो...’’ ‘‘नहीं-नहीं, एसपी साहब आ रहे है, स्टेपनी बदल देंगे’’। ‘‘कृपया आप अपना नाम बता दीजिए साहब?’’ ‘‘मेरा नाम जानना है तो 10 रुपए का रेवेन्यू स्टेम्प खरीद लो और सूचना के अधिकार में अर्जी लगा दो पता चल जाएगा। आ जाते है न जाने कहां-कहां से।’’

इस तरह के वार्तालाप के बाद कार चालक महोदय को एहसास हुआ कि वे भारत के इंदौर नामक शहर में है। जहां पुलिस का काम अपराध होने के बाद उसका पंजीकरण करना होता है। बहरहाल वह सज्जन प्रभावशाली थे। उनके मोबाइल में ऑटो रिकॉर्डिंग की व्यवस्था थी। उन्होंने वह रिकॉर्डिंग कुछ पत्रकारों को भेजी जिन्होंने उसके आधार पर खबरें प्रकाशित कर दी। बाद में पुलिस के आला अधिकारियों ने जब रिकॉर्डिंग सुनी तो उन्हें लगा कि पुलिसकर्मी का जवाब न केवल असहयोगात्मक था बल्कि अभद्र और गैरजिम्मेदाराना भी। उसे निलंबित कर दिया गया।

शिकायतकर्ता के मित्र कहते है कि उन्होंने कई गलतियां की। पहली तो यह कि पुलिस को फोन क्यों किया? क्या उनको यह नहीं पता था कि इंदौर पुलिस का रवैया वैâसा होता है? क्या उनको यह नहीं पता था कि आधी रात को पुलिस मुख्यालय में 100 नंबर के कॉल अटेंड करने वाला जागृत अवस्था और होश में रहता है? उन्होंने 100 नंबर फोन करके सहयोग की अपेक्षा ही क्यों की? वह यह कहते कि मेरे साथ लूट हो रही है, तब शायद पुलिस मामले को गंभीरता से लेती?

१०० नंबर एक ऐसा नंबर है जिसके बारे में गांव-गांव का बच्चा-बच्चा जानता है। अब कोई भी आदमी यहां फोन कर दें तो पुलिस का काम कितना बढ़ जाए। उस पुलिसकर्मी ने ठीक ही किया। अगर आपके पास कार है, तो स्टेपनी रखिए, टार्च भी रखिए। अगर आप का मकान है और आपको चोरी का डर है तो बंदूक रखिए और चौकीदार रखिए। अगर आपके घर में बहु-बेटियां है और उनकी सुरक्षा की चिंता आपको है तो उन्हें पर्दे में रखिए, घर के अंदर रखिए। एक जमाना था जब इंदौर में सराफा बाजार में पूरी रात रोनक रहती थी। अब पुलिस वाले ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे सराफा बंद कराने पहुंच जाते है। दुकान बंद, लोग बाग घरों में। पुलिस का काम आसान। अब अगर सिनेमाघर भी दस बजे बंद हो जाएं, रेले, बसें भी रात को चलना बंद हो जाए, तो पुलिस का काम कितना आसान हो जाएगा। जिसका माल, हिफाजत का जिम्मा उसी का। सीधा सा उसूल है।

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