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वीकेंड पोस्ट (एंटी कॉलम)

वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (17 मई 2014)
11 मई को मदर्स डे मनाया गया था और 12 मई को नौ चरणों वाले लोकसभा चुनाव का आख़िरी दिन का मतदान था और फिर शुरू हो गये एक्ज़िट पोल और उनका विश्लेषण. ऐसी आपाधापी में भी पत्रकार अपनी भूमिका कैसे भूल जाते? ज़्यादा नहीं तो एक अख़बार ने तो पहले पेज पर ऐसी खबर छापी, जिससे मन को अपार सुकून मिला. विश्वास हो गया कि गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, राजेंद्र माथुर आदि महान पत्रकारों की परंपरा अवश्य जारी रहेगी. खबर भी यहाँ-वहाँ नहीं, बल्कि पहले पेज पर. वह भी चित्र सहित! पूरी खबर एक झटके में पढ़ गया. खबर क्या थी पूरी जीवनी ही थी, महान शख्सियत की उपलब्धियों का बयान भी था.
'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (04 अक्टूबर 2014)
वह मित्र नाराज हुए जब मैंने उनका हाल पूछने के बाद उनसे पूछा- 'आपकी निजी पत्नी कैसी हैं?
कहने लगे - 'पत्नी तो निजी ही होती है।
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (1 नवंबर 2014)
एक साल से १५ लाख रुपए की प्लॉनिंग कर रहा हूं। १५ लाख कहां-कहां खर्च हो सकते है, इससे किस-किस का कर्जा पटाया जा सकता है, घर में क्या सामान आ सकता है, बीवी को कितने गहने दिला सकता हूं, बच्चों को कौन-सी गाड़ी सूट करेगी, बुढ़ापे के लिए कितने पैसे बचाकर रखना मुनासिब होगा आदि-आदि में उलझा हुआ हूं। मुझ जैसे मध्यवर्गीय आदमी के लिए १५ लाख बहुत मायने रखते हैं। कभी १५ लाख रुपए इकट्ठे देखे नहीं। हां, बैंक में जरूर देखे है, लेकिन वो अपने कहां। अने १५ लाख नगद हो तो बात ही क्या। कुछ न करो १५ लाख रुए खाते में ही रखे रहने दो, तो १२-१३ हजार रुपए के आसपास ब्याज ही आ जाएगा। एक तरह से पेंशन समझो और मूल धन तो अपना है ही।
अब कोई ईमान की कसम नहीं खाता।
एक ज़माना था, जब लोग ईमानदारी कसम खाते थे।
--''सच कह रहा है क्या?''
--''हाँ, ईमान से'' या फिर ''हाँ, ईमान की कसम।''
लोगों को लगता था कि उनके पास ईमान है तो सब कुछ है. जिसका ईमान गया वह 'बे-ईमान' माना जाता था। बे-ईमान होना यानी घृणास्पद होना।
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (27 सितम्बर 2014)
मुझे बिहार मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की साफगोई पर फ़ख़्र होता है। कम से कम एक मुख्यमंत्री तो है जो सच बोलने की हिम्मत रखता है. यह बात दीगर है कि लोग उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते और यह पापी मीडिया उनके ख़िलाफ़ ज़हर उगलता है। अपने जीवन में वे हमेशा खरे उतरे हैं। गौर कीजिए कि जिस बन्दे ने कड़ी मेहनत के बाद पढ़ाई की, फिर क्लर्क नौकरी की और फिर राजनीति में पैर रखा, विधायक बना और जब मंत्री बना तो मुख्यमंत्री ने शपथ लेते ही आरोपों चलते कुछ ही घंटों में हकाल दिया. कोर्ट ने आरोप ख़ारिज कर दिए। आज वहीँ बंदा सीएम होकर भी सच बोलता है तो लोगों को तकलीफ क्यों?
..." अखबार खरीदा जाता है खबरों के लिए, विचारों के लिए। कैसे मज़ा आता है तुम्हें? और मज़े के लिए पेपर क्यों खरीदते हो यार? अखबार कोई मज़े के लिए खरीदता है क्या ? मज़े के लिए तो शराब पीते हैं, बैंकाक जाते हैं, कैबरे देखते हैं, औरतों के पास जाते हैं और तुम साले गधे, मज़े के लिए अखबार खरीदते हो? एक रुपये का अखबार जो तुम्हारे घर रोज सुबह बिना नागा किये तुम्हारे घर पहुँच जाता है, जिसे पढ़ा जाता है, फिर अनेक उपयोग के बाद रद्दी में भी बेच दिया जाता है , उससे तुम मज़े कैसे ले सकते हो?
'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (25 अक्टूबर 2014)
दो कारणों से न्यूज़ चैनलों के नाम बदलने की ज़रूरत है : 1. चैनलों के मालिक नियमित रूप से बदलने लगे हैं और 2. न्यूज़ चैनलों पर न्यूज़ के नाम पर जो तमाशा दिखाया जा रहा है, उस कारण भी नाम बदल दिए जाने चाहिए.अगर आप नियमित न्यूज़ चैनल देखते हों तो यह बताने और समझाने की कोई ज़रूरत नहीं है कि किस तरह की खबरों को कौन सा चैनल किस तरह से दिखाएगा. पुरानी फिल्मों में जैसे जगदीश राज और ए के हंगल इंस्पेक्टर के रोल में 'टाइप्ड' हो गये थे, वैसे ही हमारे पत्रकार और मीडिया के पंच लोग भी 'टाइप्ड' हो गये हैं, और उनके मुँह खोलने से पहले ही बताया जा सकता है कि किस मुद्दे पर कौन सा व्यक्ति क्या बोलेगा। ये मीडियाकर्मी सच्चाई से ज़्यादा अपनी वफ़ादारी को तरजीह देते हैं.
अभी एक पुराने मित्र का फ़ोन आया --- क्या हाल चाल है? यार, तुम तो याद ही नहीं करते.
मैने कहा -- ग़लत ! हमेशा ही याद करता हूँ.
वह बोला --तो फिर कभी फ़ोन क्यों नहीं करते?
मैने पूछा -- तुम याद करते हो मुझे?
कहने लगा -- बिल्कुल रोजाना याद करता हू.
'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (11 अक्टूबर 2014)
वैसे तो उनके हिन्दी में एक से बढ़कर एक शब्द हैं-चोर, चोट्टा, अमानत में खयानत करने वाला, गबनकर्ता, जेबकतरा, लुंठन, डाकू आदि-आदि। अंग्रेजी में भी इसके लिए एक से बढ़कर शब्द हैं, लेकिन जो मजा 'विलफुल डिफाल्टर' में है, वह कहीं नहीं ! विलफुल डिफाल्टर भी क्या गजब के 2 शब्द हैं। बेहद इज्जतदार! विलफुल डिफाल्टर शब्दों में गरिमा है। विलफुल डिफाल्टर बोलो तो लगता है कि टॉम क्रूज टाइप किसी महान इनसान की चर्चा हो रही है! भारत में विलफुल डिफाल्टर का जिक्र आते ही विजय माल्याजी का खयाल मन में आता है।