बंबई की फिल्मी अभिनेत्रियां अभिनय के लिए कम और प्रेम प्रकरणों तथा अंग प्रदर्शन के लिए ज्यादा मशहूर है। कुछेक ही हैं, जिनके अभिनय में दम है कामरेड शबाना आजमी उन्हीं में से है। अभिनय के अलावा वे बंबई की झोपड़पट्टी वालों के प्रति सहानुभूति के लिए भी जानी जाती है। पिछले दिनों वे झोपड़पट्टी हटाने के विरोध में बंबई में आमरण अनशन पर बैठ गई। उसके पहले एक मई को उन्होंने झोपड़पट्टी के जुलूस का नेतृत्व भी किया था। शबाना के साथ झोपड़पट्टी का नाम वैसे ही जुड़ गया है जैसे (लिव उलमैन) का यूनिसेफ के साथ और जेन फोंड़ा का एरोबिक्स के साथ।
जिस घर में कामरेड शबाना रहती है, उसकी सजावट पर ही बीस लाख रूपए से ज्यादा खर्च हुए थे। फिर भी अगर वे झोपड़पट्टी वालों के पक्ष में अनशन पर बैठी तो निश्चिित ही डाइटिंग के लिए नहीं बैठी होंगी। और अगर लोग इसे पब्लिसिटि स्टंट करें, तब भी यह गरीबों के भलाई के लिए है।
कामरेड शबाना आजमी विचारशील अभिनेत्री हैं। अभिनेत्री और गृहस्थिन होने के बावजूद वे किताबी कीड़ा है। व्यस्त से व्यस्त समय में भी उनके पास किताबों के लिए वक्त होता है। वे खुले आम समान नागरिक कानून का समर्थन करती हैं। उन्होंने ऐसी कई फिल्मों में काम किया है, जिन्होंने दर्शक को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। अभिनय के नए कीर्तिमान उन्होंने स्थापित किए हैं। आज की अव्वल स्टार अभिनेत्रियों जैसी चमकृदमक उनके चेहरे पर नहीं है। शायद इसीलिए वे स्टार नहीं है, लेकिन वे स्टार से बढ़कर हैं।
१९७१ में जब श्याम बेनेगल ने उन्हें ‘अंकुर’ फिल्म में ब्रेक दिया था, तब कई लोगों ने बेनेगल की पसंद को हंसी उड़ायी थी। ‘अंकुर’ के वैâमरामैन गोविन्द निहलानी ने तो यहां तक कहा था कि श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्म में अभिनेत्री के रूप में एक चुहिया को लिया है। शबाना आजमी ने सिद्ध कर दिया कि बेनेगल की पसंद उचित थी। अंकुर में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। इसके बाद उन्होंने करीब साठ व्यवसायिक और कला फिल्मों में काम किया। जिनमें से चक्र, खंडहर, मंडी, अर्थ, पार, मासुम, निशांत,स्वामी में उनका अभिनय रजतपट से निकलकर दर्शकों के दिलोदिमाग पर छा गया।
३५ साल पहले बंबई के खेतवाड़ी स्थित जिस मकान में उनकी पैदाइश हुई, वह कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों का आवास था। उनके पिता वैâफी आजमी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे। उनके मकान में निजी संडास भी नहीं था। अली सरदार जाफरी ने उनका नाम शबाना रखा था, जिसका अर्थ है उन्माद। आजम का अर्थ होता है विशाल। शबाना आजमी ने अभिनय के क्षैत्र में अपने नाम को सार्थक कर दिया है।
शबाना ने बंबई के क्वीन मेरी कान्वेंट और सेंट जेवीयर्स कालेज में पढ़ाई की। फिर पुणे के फिल्म संस्थान का डिप्लोमा किया। अपने वैâरियर के रूप में शुरू की थी। उन्होंने पैट्रोल पंपो पर इंस्टेंट काफी बेची, विज्ञापन की फिल्मों में काम किया और ‘इप्टा’ के नाटकों में एक्टिंग की। आजकल वे एक फिल्म में अभिनय के लिए ५ से ६ लाख रूपए तक लेती हैं मगर वे रूपए के पीछे पागल नहीं है। ‘मंडी’ में उन्होंने २० हजार रूपए में काम किया था। ‘मासूम’ फिल्म के लिए वे कोई भी राशि लेने को ही तैयार नहीं थी। आम तौर वे आउटडोर शूटिंग में अपने साथ हेयर ड्रेसर, मेकअप मैन और निजी नौकर को लोकेशन पर ले जाती हैं। मगर ‘खंडहर’ फिल्म की शूटिंग के लिए वे अकेली अपना मेकअप का बक्सा लेकर गई क्योंकि फिल्म छोटे बजट की थी। आज भी वे मंच से जुड़ी हुई हैं।
शबाना आजमी को पिता के रूप में वैâफी आजमी, मां के रूप में शौकत आजमी और पति के रूप में जावेद अख्तर (प्रचलित नाम जादू) जैसा कुटुंब मिला है। शादी के बाद भी वे अपने पिता में ही घर में रहती है।
शबाना का कद पाँच पुâट चार इंच है। उन्हें उर्दू शायरी, नाटक (और झोपड़पट्टी?) से प्यार है। वे नितांत मूडी लेकिन खुशमिजाज हैं। शबाना के अभिनय के बारे में उनके इकलौते भाई का कहना हैं शबाना इसलिए सर्वश्रेष्ठ हैं क्योंकि उनकी प्रतिस्पर्धा में कोई नहीं है। न जया भादुड़ी, न वहीदा रहमान, न मधुबाला, न गीता बाली।
अपनी क्षमताओं से वाकिफ शबाना अपने भाई की टिप्पणी को एक दम सही मानती है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी