जनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर का कहना है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह की सरकार राजीव गांधी की सरकार से अच्छी चल रही है। पता नहीं, उत्तरप्रदेश में सरकार चल भी रही है या नहीं पर यह बात सही है कि अड़चनों के बावजूद वीर बहादुर सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए है। यही उनका एक सूत्री कार्यक्रम है।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री को भारत में दूसरा सबसे शक्तिशाली राजनेता माना जाता है। उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने और बने रहने के लिए जिस तोड़-फोड़ की जरूरत है, वीरबहादुर सिंह उसमें पूरी तरह सश्रम हैं। २४ सितम्बर १९८५ को जब वे मुख्यमंत्री बने थे, तब किसी को इस बात का विश्वास नहीं था कि वे इतने लम्बे समय तक मुख्यमंत्री बने रह सवेंâगे।
मगर वीर बहादुर सिंह तमाम विरोधी हवाओं के बावजूद अपने पद पर बने हुए हैं। उनके शासनकाल में ही मेरठ में दंगे होते हैं, कर्मचारियों और डॉक्टरों की हड़तालें होती है, वुंâभ मेले में दुर्घटनाएं होती हैं, ददुआ डावूâ द्वारा सामूहिक नरसंहार किया जाता है, राम की पौड़ी में दुर्घटनाएं होती हैं। और मुख्यमंत्री कहते हैं कि मुख्यमंत्री क्या करें? अगर दंगा हो जाए तो मुख्यमंत्री कर ही क्या सकता है?
शुरू में लोग वीर बहादुर सिंह को विश्वनाथ प्रतापसिंह और अरूण नेहरू का आदमी मानते थे। पर जब अरूण नेहरू का पत्ता कटा तब वे खुद अरूण नेहरू से अलग-थलग हो गए। लोगों को लगने लगा था कि वीर बहादुर सिंह अब गए, अब गए। पर उन्होंने नए समीकरण बना लिए। जब विश्वनाथ प्रतापसिंह और राजीव गांधी में ठनी तब वीरबहादुर सिंह ने फिर पलटा खाया और उन्हें लखनऊ में होने वाली सरकारी कर्मचारियों की रैली को संबोधित नहीं करने दिया। न ही उन्होंने विश्वनाथ प्रतापसिंह को मेरठ जाने दिया।
वीरबहादुर सिंह में एक और खैसियत है। वह यह कि क्रिसमस को पटाकर रखना है, इस बारे में उन्हें कभी कोई गलतफहमी नहीं होती। राजीव और सोनिया के प्रति वफादार तो वे हैं ही, इसके अलावा वे हर उस व्यक्ति के प्रति वफादार है, जो राजीव गांधी का खास है या समझा जाता है।
राजीव गांधी या सोनिया गांधी जब भी अमेठी जाते हैं, वीर बहादुर सिंह उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। अमेठी में राजीव गांधी के चुनाव की व्यवस्था भी वीरबहादुर सिंह ने ही देखी थी। चुनाव के वक्त अमेठी के अधिकांश चुनाव अधिकारी मुख्यमंत्री के गृहजिले गोरखपुर से आए थे और उनमें भी सिंचाई विभाग के लोगों की संख्या ही ज्यादा थी। वीर बहादुर सिंह तब सिंचाई मंत्री थे।
वीर बहादुर सिंह पर तंत्र पूजा, पुलिस के काम में दखल देने, हरिशंकर तिवारी और वीरेन्द्रप्रताप साही के प्रति बैरभाव रखने अपने भाई की तथाकथित अवैध गतिविधियों को बढ़ाने, विपक्ष के नेता मुलायमसिंह यादव से सांठगांठ करने, कुछ पत्रकारों को अत्यधिक सुविधा देने और कुछ पत्रकारों को उत्पीड़ित करने आदि के आरोप हैं।
जब वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री बने थे तब शुरू के २४ दिनों में से वे १८ दिन लखनऊ से बाहर रहे। ६ दिन में वे केवल १९ घंटे अपने कार्यालय में मौजूद रहे। उन पर आरोप है कि सरकारी कागज पूरे पढ़ते ही नहीं है।
वीर बहादुर सिंह पूरे साल के हैं। वे पहली बार १९६७ में विधायक बने। सबसे पहले हेमवतीनंदन बहुगुणाम ने उन्हें उपमंत्री बनाया था। जनता पार्टी के शासन काल को छोड़कर वे तब से लगातार मंत्री पद पर सुशोभित रहे। नारायणदत्त तिवारी, श्रीपति मिश्र और विश्वनाथ प्रतापसिंह के मंत्रिमंडल में वे दूसरे नंबर के नेता थे। पिछले दिनों उन्होंने एक दिलचस्प बयान दिया था कि अब वह जमाना लद गया है जब उ.प्र. का मुख्यमंत्री दिल्ली से चुनकर आया करता था।
उनकी बात कितनी सच है, यह तो बाद में पता चलेगा।
-प्रकाश हिन्दुस्तानी