एक लंबे अंतराल के बाद सांसद कमलनाथ का नाम फिर से सुर्खियों में आया है। पहले वे संजय गांधी के दोस्त के रूप में जाने जाते थे। फिर वे मध्यप्रदेश में अर्जुसिंह के खास सिपहसालार समझे जाने लगे और मोतीलाल वोरा के खिलाफ हो रही गतिविधियों में उनका नाम आया। अब वे उन कारणों से चर्चा में है, जिन कारणों से बच्चन बंधु चर्चा में रहे थे।
कमलनाथ मध्यप्रदेश के उस क्षेत्र के नुमाइंदे हैं, जहां काफी तादाद में जंगल है, नदियां है, बिजली की पैदाइश के साधन हैं, पर फिर भी वह इलाका पिछड़ा हुआ है। छिंदवाड़ा के अस्पताल ऐसे हैं, जहां न डाक्टर हैं, न नर्स, न दवाएं। जिले में शिक्षकों के आठ सौ पद खाली पड़े है। सड़वेंâ अधूरी पड़ी है और सड़वेंâ बन भी गई है तो पुल-पुलियाएं नदारद। राज्य सरकार ने गरीबों के लिए जो योजनाएं बनाई हैं, छिंदवाड़ा वाले कहते हैं कि हमें उनका लाभ नहीं मिल पा रहा।
कमलनाथ की असली ताकत उनके इन स्वूâल के दोस्त रहे हैं। संजयगांधी की मित्रता ही उनकी असली राजनैतिक दौलत थी। इमर्जेन्सी के पहले तक उनकी वंâपनी ई.एम.सी.वंâ. लिमिटेड एक पिटी-पिटाई तंपनी थी। पर इमर्जैन्सी में यह वंâपनी खूब फली-पूâली। इसे बहुत सरकारी ठेके मिले। दिसंबर १९७५ से जुलाई १९७६ के बीच ही इस वंâपनी को चार करोड़ ७३ लाख रूपए के ठेके दिए गए। बाद में ई.एम.सी. वंâपनी को ठेके देने के मामले की जांच के लिए आयोग बनाया गया। इस आयोग की अपनी बैठक जनवरी १९७८ में हुई थी। इसके बाद कुछ नहीं हुआ।
जब जनता पार्टी सत्ता में आई, तब कमलनाथ के बुरे दिन आ गए थे। पर उन्होंने स्थितियों का सही लाभ उठाया। वे ई.एम.सी. वंâपनी का काम कम और जनता पार्टी को पछाड़ने की कोशिशों में ज्यादा लग गए। कमलनाथ की डायरी का एक हिस्सा वरूण सेन गुप्त की किताब, ‘लास्ट डेज आफ मोरारजी राज’ में छपा है। इसके मुताबिक चरणसिंह के साथ गोटी बिठाने में उनकी खासी भूमिका रही है। उन दिनों वे सुरेश राम, भजन लाल, बीजू पटनायक, राजनारायण, चरणसिंह और इंदिरा गांधी के बीच पुल बने हुए थे।
उन दिनों श्रीमती गांधी और राजीव गांधी का उन पर अटूट विश्वास था। कमलनाथ बड़ी कुशलता से उन दोनों के मन में यह बात बैठा चुके थे कि उन्हें न तो राजनीति से मतलब है, न धन दौलत से। न ही उनकी कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा है।
कमलनाथ की एक और खासियत यह है कि वे अपने हितों की खबरें अखबारों में छपवाने में कामयाब हो जाते हैं। खासकर कुछ राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिकों में। जब कुओं आइल डील का मामला प्रकाश में आया, तब वे तीन बड़े अखबार समूह के चार अंग्रेजी दैनिकों में ऐसी खबरं छुवाने में कामयाब हो गए, जिनका मकसद यह था कि सरकार को केरोसिन और डीजल की थोक खरीद के बारे में एक खास नीति अपनानी चाहिए। एक मर्तबा इंडियन आइल कार्पोरेशन के अध्यक्ष के खिलाफ भी उन्होंने ऐसी ही खबरें छपवाई।
कलकत्ता के रहनेवाले कमलनाथ ने जब से राजनीति में काम शुरू किया है, तब से उन्होंने अपनी जीवनशैली ही बदल डाली है। या कम से कम उन्होंने यह दिखाने की कोशिश तो की ही है। सफारी पहनने वाले कमलनाथ खद्दर पहनने लगे हैं। पर चुनाव प्रचार के लिए वे सदा बढ़िया और महंगे साजोसामान, जीपों के काफिले और महंगे कार्यकर्ताओं को महत्व देते रहे हैं।
कमलनाथ के बारे में बार-बार में अफवाहें पैâलती रही हैं कि वे अब मंत्री बननेवाले हैं। पर अब तक उन्हें सौभाग्य नहीं मिला। हां, यह जरूर हुआ है कि सांसद होने के बावजूद उनके घर और दफ्तर पर छापे पड़े। खुद को इंदिरा गांधी का तीसरा पुत्र कहनेवाले कमलनाथ अब फिर एक जांच के घेरे में है। देखें, वे इसमें से वैâसे निकल पाते हैं।
प्रकाश हिन्दुस्तानी