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ziaजब पाकिस्तान से यह खबर आई कि बेनजीर मां बनने वाली है, तभी लगने लगा था कि जिया उल हक चुनाव कराएंगें। पर, इतनी जल्दी तिनी उथल-पुथल की आशा नहीं थी। यों तो वे पिछले दस साल ग्यारह महीनों से लगातार नाटकीय पैâसले करते रहे हैं। इस बार के चुनाव वास्तव में चुनाव होंगे। इसकी तो गारंटी केवल जिया ही दे सकते हैं।

जिया उल हक की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे हैं तो फौजी तानाशाह पर दुनिया को यह दिखाने की उन्होंने सफल व्यवस्था कर ली है कि वे फौजी तानाशाह नहीं है। करीब ग्यारह साल से उनका एक सूत्री कार्यक्रम किसी दूसरे तानाशाह को आगे नहीं आने देना रहा है, क्योंकि तानाशाह का विकल्प तो केवल तानाशाह ही है। वे अपना काम सिद्ध करने के लिए पाकिस्तान और ज्यादा मुस्लिम बनाने में लगे हैं।

वैâमरों के आगे जनरल जिया बहुत हंसते मुस्कुराते हैं। उनकी तस्वीरों से लगता है कि वे काजल-सुरैया लगाते होंगे, पर ऐसा है नहीं। जन सम्पर्वâ के मामले में वे बहुत ही तेज है। वे जानते हैं कि संपादकों को इंटरव्यू देने से क्या फायदा होता है, पत्रकारवार्ता में जवाब वैâसे देने चाहिए। उन्हें पता है कि अखबार वालों की नजर में ‘न्यूज वेल्यू’ क्या होती है। यों जिया कहते हैं कि मैं कभी भी झूठ नहीं बोलता, पर अगर अपने मुल्क की खातिर झूठ बोलना पड़े या झूठी कहलाना पड़े तो उन्हें कोई हर्ज नहीं। उनका मानना है कि पाकिस्तान मुस्लिम देश है और अगर उसे धर्मनिरपेक्ष देश बनाने की कोशिश की तो वह ढह जाएगा।

भुट्टो को फांसी देने से लेकर जुलेजो की बर्खास्तगी तक की सारी घटनाएं जिया उल हक की राजनीतिक चतुराई को बताती है। क्रिकेट टेस्ट मैच के दौरान हाजिरी देकर उन्होंने मौके का सही-सही लाभ उठाया है। मुस्लिम अणुबम की दुहाई देने वाले जिया को १९८२ का ‘गोल्ड मरक्यूरी इंटरनेशनल अवार्ड फार पीस एंड को आपरेशन’ मिल चुका है यह बात यहां छापने के बजाए चुटकुलों के स्तंभ में भी छप सकती है।

जिया के राज में पाकिस्तान में भले ही बेरोजगारी और अपराध बढ़े हों, पाकिस्तान की विकास दर भी सात प्रतिशत रही है। यह जिया की उपलब्धि है। वे कहते हैं कि खुदा ने मुझे इसी काम से भेजा है। पर जब वे कहते हैं कि मेरी कोई राजनैतिक महत्वाकाक्षां नहीं है तब वे खुद को ही हास्यापद बना डालते हैं।

अपने बारे में जिया जो बातें कहते हैं वे भी कम दिल चस्प नहीं है। वे कहते हैं कि १९७७ में जो कुछ भी हुआ, वह खुदा के रहम से हुआ। पाकिस्तान एक धर्म को मानता है, एक परंपरा को मानता है, एक किताब (कुरान) को मानता है और एक ही शासक में यकीन करता है। अगर मैं लोकतंत्र लाने की कोशिश करूंगा तो विदेशी ताकतें देश को तोड़ देंगी। पंजाब के बारे में जिया का कहना है कि हम वहां कुछ भी नहीं कर रहे हैं और कश्मीर के बारे में वे फरमाते हैं कि हम यह नहीं कहते कि कश्मीर पाकिस्तान का है, हम यह भी नहीं कहते कि कश्मीर भारत का है। कश्मीर की जनता चाहे, वही होना चाहिए। शांति के बारे में उनका कहना है कि कोई बटन दबाने से तो शांति कायम हो नहीं जाती। शांति तो साईकिल के हैं दिल की तरह है, जहां दोनों ओर संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

‘टाइम’ पत्रिका को एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मेरी प्राथमिकताएं हैं - भारत और अफगान सीमा पर शांति की स्थापना और स्थायित्व। हम मुस्लिम समाज चाहते हैं, पर एक कट्टर मुस्लिम ममाज नहीं। जिया उल हक अपने आप को लोकतंत्री राष्ट्रपति मानते हैं।

१२ अगस्त १९२४ को जन्मे जनरल जिया १९४१ में सेना में प्रवेश पाया था। स्टॉफ कालेज क्वेरा में उन्होंने सैन्य परीक्षण पाया। १९६३ में वे अमेरिका में सैन्य अध्ययन के लिए गए। १९६४ में क्वेरा के स्टॉफ कालेज में इंस्ट्रक्टर बन गए। १९६९ में वे ब्रिगेडियर, १९७२ में मेजर जनरल बने। १९७६ में वे आर्मी स्टॉफ के प्रमुख बन गए और इसके अगले साल ही वे चीफ मार्शल लॉ प्रशासक बन बैठे। १६ सितंबर १९७८ को उन्होंने अपने आपको राष्ट्रपति घोषित कर दिया। १९७९ में उन्होंने भुट्टो को फांसी पर चढ़वा दिया, दुनिया भर से आई क्षमादान की अपीलों के बावजूद।

जिया उप हक फरमाते हैं कि मैं ज्यादा दिन सत्ता में रहना नहीं चाहता। मैं तो रिटायर होकर दिन भर गोल्फ खेलना चाहता हूं। पाकिस्तान में ऐसे भी कभी नहीं की यह कह रहे हैं। खुदा उनकी तमन्ना जल्दी पूरी करे।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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