उत्तर प्रदेश में लोकदल भले ही परलोकदल बन जाए, उसके अगुवा चौधरी अजीतसिंह ही रहेंगे। इस पार्ची का नैतृत्व करने के तमाम गुण उनमें भरपूर हैं। वे पढ़े-लिखे आदमी हैं और गुडबाजी के साहे हुनर जानते हैं। मुलायमसिंह यादव की तरह अपराधियों से उनके रिश्ते नहीं है। ये जाट हैं और मुख्य बात यह है कि वे चौधरी चरणसिंह के बेटे हैं।
अच्छी बाच यह है कि अजीत सिंह मजबूरी के कारण राजनीति में नहीं है। कई नेता ऐसे हैं कि अगर वे राजनीति में नहीं रहें तो उन्हें कहीं चपरासी की नौकरी भी नहीं मिले, अजीतसिंह के साथ ऐसा नहीं है। दूसरी बात यह है कि अजीतसिंह राजनीति में अब आए हैं, जब चरणसिंह प्रधानमंत्री थे, तब नहीं आए।
जब अजीतसिंह को सोनपत से लोकसभा का टिकट देने की बात चली थी, तब चरणसिंह ने मना कर दिया था, लेकिन देवीलाल उनका समर्थन कर रहे थे। एक वक्त वह था, जब देवीलाल, क्यूंरी ठाकुर और मुलायमसिंह यादव अजीतसिंह से अपनी महत्वाकांक्षाओं का अनुवाद कराना चाहते थे। मगर आज यही तिकड़ी अजीतसिंह के खिलाफ है क्योंकि ये नेता अपने आपको चरणसिंह का उत्तराधिकारी समझते थे और लोकदल कार्यकर्ताओं ने अजीत सिंह को पार्टी का नेता मान लिया।
कई लोग अजीतसिंह की तुलना राजीव गांधी से करते हैं। दोनों युवा हैं, पढ़े-लिखे हैं, दोनों बूढ़ों के खिलाफ हैं, दोनों भाषणों के बजाय काम पर यकीन करते हैं, दोनों के दिमाग विदेशी शैली में सोचते हैं, दोनों प्रधानमंत्री की संतान है, विदेशी बीवियों के पति और दो-दो बच्चों के पिता हैं। राजीव गांधी कांग्रेस की मजबूरी है तो अजीत सिंह लोकदल की।
लेकिन कुछ मामलों में अजीत सिंह राजीव गांधी से बाजी मार सकते हैं। मसलन राजनीतिक तोड़-जोड़ में अजीत सिंह को ज्यादा नंबर दिए जा सकते हैं। जिस तरह उन्होंने मुलायमसिंह यादव के खास समर्थक सत्यप्रकाश मालवीय और रशीद मसूद को तोड़ा, वह कोई मामूली बात नहीं थी। अजीतसिंह राजीव गांधी की अपेक्षा स्पष्ट वक्ता हैं और ज्यादा व्यावहारिक भी है।
अजीतसिंह कभी किसी की िंनदा नहीं करते। राजीव गांधी की भी नहीं। वे सिद्धान्तों की बात करते हैं। राजीव की तरह इक्कीसवीं सदी के बारे में वे भी सोचते हैं, मगर हर प्रायमरी स्वूâल में कम्प्यूटर लगाने की बात वे नहीं करते। उनका मानना है अधिकांश क्षेत्रों में कम्प्यूटर के बिना भी एक निश्चित कार्यक्षमता प्राप्त की जा सकती है। अस्पतालों में वंâप्यूटर लग रहे हैं, मगर यहां दवा की पहली और तीव्र आवश्यकता वे मानते हैं।
अजीत सिंह ने पिछले साल ही राजनीति में प्रवेश किया था। पार्टी की सदस्यता पाने के महीनेभर में ही वे राज्यसभी के सदस्य और लोकदल के महासचिव बन गए थे। किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के नेता को यह सौभाग्य नहीं मिला।
फरवरी १९३९ में जन्मे अजीतसिंह की शुरूआती पढ़ाई लखनऊ में हुई। हाईस्वूâल के बाद वे आइ.आइ.टी. में जाना चाहते थे, मगर एडमिशन नहीं मिल सका। उन्होंने बी.एससी. की उपाधि पाई फिर अड़गपुर वे आइ.आइ.टी. में उनका दाखिला हो गया। बी.टेक. करने के बाद उन्होंने अमेरिका से एम.टेक. की उपाधि पाई। वंâप्यूटर साइंस में ‘सी’ ग्रेड पाने वाले अजीत सिंह को दुनिया की नंबर वन वंâप्यूटर कम्पनी आइ.बी.एम. (इंटरनेशनल बिजनेस मशीन्स) में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी मिल गई। बाद में उनका भारत तबादला हो गया, पर तबादला उन्हें रास न आया और वे नौकरी छोड़कर कार्पोरेशन में चले गए। करीब दो साल पहले में नौकरी छोड़कर वापस भारत आ गए।
अजीत सिंह मृदुभाषी और नफीस व्यक्ति हैं। देखना यह है कि उनकी नफासत भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के सबसे बड़े विरोधी दल में कहां तक चल पाती है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी