देवीलाल ने साबित कर दिया कि वे ही हरियाणा के असली लाल हैं। उनका कहना है कि चुनाव लड़ना और जीतना तो हमारा खानदानी धंधा है। उनके खानदान की तीन पीढ़ियों ने २७ चुनाव लड़े हैं, जबकि मोतीलाल नेहरू के खानदान ने सिर्पâ १८ चुनाव लड़े हैं। (मोतीलाल नेहरू के खानदान में उनके अलावा जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, संजय गांधी, मेनका गांधी और राजीव गांधी शामिल हैं।)
हरियाणा का यह चुनाव देवीलाल की तीन पीढ़ियों ने लड़ा था और इसमें तीनों पीढ़ी के लोग जीते। यह चुनाव जीतने के लिए एन.टी.आर. की तरह ‘विशेष रथ’ में यात्राएं की ओर किसानों के कर्ज माफ करने के वादे किए। उनकी सारी मेहनत इस चुनाव में सफल रही।
१४ अगस्त १९८५ को जब देवीलाल ने विधानसभा से इस्तीफा देकर हरियाणा के हितों की बात कही थी, तभी वे जानते थे कि आगे जाकर उन्हें इस मुद्दे पर चुनाव लड़ना है। हरियाणा के साथ हो रहा अन्याय हमेशा से उनकी राजनीति का र्इंधन रहा है। वे हमेशा कहते रहे हैं कि हरियाणा के साथ अन्याय होता रहा है।
देवीलाल हरियाणा के पितृपुरूष है। राज्यों के पुनर्गठन के वक्त वे हरियाणा के निर्माण में महत्वर्पू भूमिका निभा चुके हैं। वे गोपीचंद भार्गव और भीमेसन सच्चर जैसे दिग्गज हरियाणवी नेताओं के कान उमेठे उठे हैं और कुछ समय तक प्रतापसिंह वैâरों के साथ भी काम कर चुके हैं। प्रतापसिंह वैâरों को पंजाब का मुख्यमंत्री बनवाने में उनका भी योगदान रहा है।
हरियाणा के मुख्यमत्री के रूप में उनका पिछला कार्यकाल बहुत उजला नहीं है। भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद और पद के दुरूपयोग के आरोप उप पर है। उनका बेटा ओमप्रकाश अक्टूबर १९७८ में दिल्ली हवाई अड्डे पर कथित तस्करी का माल लाते हुए पकड़ा गया था। तब ओमप्रकाश हरियाणा जनता पार्टी के महासचिव थे। इसके बाद देवीलाल ने उनसे रिश्ता तोड़ लिया था। तब उनके बेटे को पार्टी का पद भी छोड़ना पड़ा था।
देवीलाल पर कई आरोप है। जिनमें रेल में बिना टिकट यात्रा करने से लेकर हत्या करने की कोशिश तक के आरोप शामिल हैं।
७१ वर्षीय देवीलाल हिसार जिले के सम्पन्न जाट है। अपनी किशोरावस्था में ही आजादी की लड़ाई में सक्रिय हो गए थे। सम्पन्न जाट होते हुए भी उन्हें ‘कुलाक’ नहीं कहा जा सकता। वे अपनी जवानी में हिसार जिले के खेत मजदूरों के संगठन के लिए काम करते रहे हैं। किराएदारों के हकों की लम्बी लड़ाई भी उन्होंने लड़ी है।
आजादी के बाद देवीलाल कांग्रेस में सक्रिय हो गए थे। १९५७ में उन्हें कांग्रेस का टिकट नहीं मिला था। बाद में वे उपचुनाव लड़कर विधानसभा में पहुंचे थे। १९६१ तक वे कांग्रेस में रहे। फिर वे विपक्ष में गए और कई पार्टियों में रहे। पार्टियां बनाई और तोड़ी। चरणसिंह के साथ उनके रिश्ते सदैव अच्छे नहीं रहे। चरणसिंह के बेटे अजीतसिंह को वे ‘छोकरा’ कहते हैं और उनके लिए राजीव गांधी भी इससे अलग नहीं है।
हरियाणा के लिए जी-जान समर्पित करने का दावा करने वाले देवीलाल पर सबसे दिलचस्प आरोप अकालियों से गठबंधन का है। भजनलाल ने आरोप लगाया था कि राजीव लोगोंवाल समझौते के बारे में चुप रहने के लिए उन्हें अकाली दल ने पांच लाख रूपए दिए थे।
-प्रकाश हिन्दुस्तानी