बंबई के पत्रकारों को इस बार अपेक्षाकृत ज्यादा दिन बाद नए मुख्यमंत्री से मिलने का सौभाग्य मिल रहा है। वैसे तो उनकी आदत है हर साल नए मुख्यमंत्री से मिलने की। इस बार उन्हें सौभाग्य मिला है मुख्यमंत्री शरद पंवार से। उनसे, जो लंबे समय तक इस अटकल का केन्द्र बने रहे थे कि वे कांग्रेस में आ रहे हैं या नहीं। उनका मुख्यमंत्री बनना उन लोगों के लिए प्रेरणादायी रहेगा जो अवसर की तलाश में कांग्रेस की ओर ताकते रहते हैं।
शरद पंवार ने कई कीर्तिमान बनाए हैं। वे महाराष्ट्र के सबसे मालदार नेता माने जाते हैं और साफ छवि वाले भी। यही उनका चमत्कार है। उनके लोगों का मराठी दैनिक सकाल प्रकाशन समूह पर कब्जा है। पार्टी तोड़ने और विलय करने का उन्हें अनुभव है। वे महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। ३८ साल की उम्र में वे पार्टी से अलग होकर मुख्यमंत्री बने और फिर विरोध में चले गए। दस साल के भीतर उन्होंने तमाम राजनीतिक घटनाओं को जन्म दिया और फिर वापस कांग्रेस में आकर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की। दुबारा मुख्यमंत्री तो कई नेता बने हैं, पर शरद पंवार जैसा कोई नहीं।
शंकरराव चव्हाण ईमानदार छवि के नेता है। ईमानदार अफसरों को वे आगे बढ़ाते हैं। पर शरद पंवार उन अफसरों पर खुश होते हैं जो काम करने और कराने में यकीन करते हैं। वे महाराष्ट्र में उद्योगपतियों और बिल्डरोें की लाबी के प्रिय नेता हैं। प्रशासन पर उनकी पकड़ है और कांग्रेस संगठन पर उनका अच्छा प्रभाव हैं। लोग कहते हैं कि उनमं इतनी ताकत है कि वे अपने बूते पर महाराष्ट्र में कांग्रेस को चुनाव जितवा सकते हैं।
शरद पंवार प्रोफशनल राजनीतिज्ञ हैं। बहुत कम समय में उन्होंने पुणे के एक गांव से बंबई के नेपीयन सी रोड़ तक का सफर तय कि़या। २० साल की उम्र में वे महाराष्ट्र युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए थे। २७ साल की उम्र में वे विधायक बन गए और ३२ की उम्र में मंत्री ओर ३८ की उम्र में मुख्यमंत्री। राजनीतिकी सीढ़ियाँ उन्होंने बहुत ही जल्दी चढ़ी। और जब वे मुख्यमंत्री बने, तब उनके पास ग्रह, शिक्षा, कृषि, उद्योग और श्रम आदि विभागों में मंत्री पद का अनुभव था। वे कांग्रेस विधायक दल के सचिव और प्रदेश कांग्रेस के महासचिव के रूप में काम कर चुके थे।
शरद पंवार को पता है कि मौके का फायदा वैâसे उठाया जाता है। तभी तो वे शरद पंवार हैं। उनका मुकाबला किसी से नहीं। जब केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और उसने विधानसभाओं के चुनाव कराए तब महाराष्ट्र में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। तब वसंद दादा पाटील ने गुटों को जोड़कर महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी। वसंत दादा पाटील के शब्दों में ‘शरद पंवार’ तब मेरी पीठ में छुरा मारकर मुख्यमंत्री बन बैठे।
१९८० के विधानसभा चुनाव में शरद पंवार के कई साथी चुनाव जीत चुके थे। पर तब उन्हें दुबारा मौैका नहीं मिला। वे देवराज अर्स के धड़े के साथ हो गए, जो बाद में समाजवादी कांग्रेस बनी। पर समाजवादी कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी शरद पंवार को सत्ता के करीब आने की संभावनाएं ज्यादा नहीं दिखीं। उनकी पार्टी का आकार दिन व दिन घटता ही गया। और राजीव गांधी को सीधी चुनौती देने वाले शरद पंवार को अंतत: उनकी ही शरण में आना पड़ा।
दिसंबर १९८६ में जब वे राजीव की कांग्रेस आए (या उनकी पार्टी विलीन हुई) तब उन्होंने कहा था कि मैं राजीव गांधी के दरबार में हाजिरी देता खड़ा नहीं रहूंगा। अगर मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंची तो मैं अपने गांव जाकर खेती करूंगा। अब शायद उनका आत्मसम्मान लौट आया हो।
१२ दिसंबर १९४० को जन्मे शरद पंवार ने पुणे विश्वविद्यालय से बी.कॉम. की उपाधि पाई। छात्र जीवन से भी वे राजनीति में है और उन्हें नेता बनाने का श्रेय यशवंतराव चव्हाण को है, जो शरद पंवार को अपना दत्तकपुत्र मानते थे। १९६७ में उनकी शादी प्रतिभा शिंदे से हुई। शादी के वक्त ही उन दोनों ने तय कर दिया था कि वे परिवार नियोजन को अपनाएंगें और केवल एक ही संतान को जन्म देंगे। चाहे वह लड़का हो या लड़ती। फिलहाल उनकी एक बेटी है - सुप्रिया, जो डाक्टरी पढ़ रही है। शरद पंवार के पांच भाई व दो बहनें हैं। उनके एक बहनोई पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला चल रहा है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी