रूसी खुर्शीद करंजिया भारत में भंडाफोड़ पत्रकारिता के जनक हैं। इस पेशे मे उन्हें पचास बरस हो गए। राष्ट्रपति ने परंपराओं को त्यागकर उनके सम्मान समारोह में हिस्सा लिया। करंजि.ा अपने आप में एक संस्था हैं। वे सफल संपादक, उद्यमी, संगठक और जनसंपर्वâ अधिकारी है। वे भारत के दस बेहतरीन पौशाक पहननेवालों में है, नफासतपसंद, स्पष्टवक्ता और तहजीब वाले।
अपने पचास साल के केरियर में उन्होंने अनेक विवादों का जन्म दिया। कई भंडाफोड़ किए। अनेक अंर्तराष्ट्रीय हस्तियों से दोस्ती-दुश्मनी की। नेहरू के पंचशील के सद्धिांतों को प्रचारित किया। इंदिरा गांधी का समर्थन किया और इमर्जेन्सी का विरोध। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी की पहली ही मुलाकात में उन्होंने इमर्जेन्सी लगाने की सलाह दी थी। लोग उन्हें कम्युनिस्ट मानते हैं। पाठक उन्हें राजीव गांधी का समर्थक मानते हैं और वे कहते हैं कि मैं शुद्ध पत्रकार हूं।
करंजिया पर अनेक मुकदमे चले। जुर्माने हुए और जेल जाना पड़ा। उन पर हमले हुए और उनके सहकर्मियों की हत्या भी हुई। उन पर तस्करों से रूपए लेने के आरोप भी लगाए गए, लेकिन करंजिया ने कभी हार नहीं मानी। पचास साल से वे लगातार ऊर्जा से काम कर रहे हैं।
करंजिया के पिता डाक्टर थे और उन्हें प्रशासनिक सेवाओं में भेजना चाहते थे। पर तब करंजिया की उम्र कम थी। वे बंबई में ही पढ़ रहे थे। तब वे ‘टाइम्स आफ इंडिया’ में संपादक के नाम पत्र लिखा करते थे और उन पत्रों पर फर्जी नाम से प्रतिक्रियाएं भेजकर उसका लुफ्त उठाया करते थे। एक मर्तबा ‘टाइम्स इंडिया’ के संपादक से उनकी भेंट हुई। संपादक ने पूछा कि तुन क्या करते हो। उन्होंने सारी बातें सच-सच बता दी। संपादक ने पहले तो उन्हें पुलिस को सौंपने की धमकी दी। पर दूसरे ही दिन अपने अखबार में उन्हें नौकरी देने की पेशकेश की। इस तरह वे पत्रकार बन गए।
पहले उन्होंने प्रूफ रीडिंग की। फिर रिर्पोटर फिर सब एडीटर और फिर स्पेशल करेस्पाडेंट बने। फिर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ‘संड़े स्टैंडर्ड’ में डिप्टी एडीटर बने। उन्होंने ही बम्बई में ‘मार्निंग स्टैंडर्ड’ अखबार शुरू किया जो वर्तमान में बंबई का ‘इंडियन एक्सप्रेस’ है। प्रेस पर अंगे्रजों के दबाव को देखते हुए उन्होंने सोचा कि अपना खुद का अखबार शुरू किया जाए। १९४१ में उन्होंने करीब पांच सजार रूपए की पूंजी से साप्ताहिक ‘बिल्टस’ का प्रकाशन शुरू किया।
करंजिया ने दुनिया देखी है और दुनिया के कई प्रमुख नेताओं से उनके निजी रिश्ते थे। नेहरू, ईरान के शाह, रजा पहलवी, मिस्र के नासेर आदि से उनके अच्छे रिश्ते थे। खश्चौफ ने करंजिया के अलावा किसी और पत्रकार को कभी कोई इंटरव्यू नहीं दिया। मिस्र के आस्वान चौध की रूस से बनवाने में भी करंजिया का योगदान था। बाद में १९६५ में नासेर ने करंजिया की मिस्र का सर्वोच्च सम्मान दिलवाया।
करंजिया से ज्यादा विवादास्पद पत्रकार भारत में कोई नहीं हुआ। विवाद का कारण या चर्चा का विषय भले ही कुछ भी हो। या तो उनकी सराहना की जा सकती है या फिर निन्दा। उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
करंजिया ने कुछ किताबें भी लिखी है। ‘द माइंड आफ मिस्टर नेहरू’ चाइना स्टेन्डस अप’ ‘डेग्गर आफ इग्राईल’, ‘हाऊ नासेर डिड इट’, और शाह ईरान के बारे में ‘माइंड आफ ए मोनार्च’ उनकी मशहूर किताबें हैं।
अखबार के संचालन का उनका अपना तरीका है। उनके अखबार में लोग आते और जाते रेह हैं। लेकिन अपने सहकर्मियों से उन्होंने एक निजी रिश्ता बना लिया है। वे अपने संवाददाताओं का काफी ख्याल रखते हैं। उन्होंने दैनिक और साप्ताहिक टेबलायड अखबारों की जो शैली विकसित की है, वह अनूठी है।
करंजिया के बारे में मशहूर है कि वे बड़ी तहजीबवाले वयक्ति हैं। अपने यहां आने वालों को वे पूरा सम्मान देते हैं। ७५ साल की उम्र में भी वे नियमित योगाभ्यास करते हैं और गीता का पाठ करते हैं। उनका कहना है कि गीता से मुझे मानसिक और योग से शारीरिक शक्ति मिलती है। करंजिया की पत्नी का निधन हो चुका है। उनकी इकलौती बेटी ‘सिने ब्लिटज’ की संपादिका है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी