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3036गिरगिट के रंग का और हरिायणा के नेताओं की पार्टी का क्या भरासा? रोहतक के संसद सदस्य हरद्वारीलाल कांग्रेस का द्वार छोड़कर देवीलाल के साथ बहुगुणा गुट के लोकदल को द्वार पर आ गए हैं। उन्होंने लोकसभा से भी इस्तीफा दे दिया है। पहले ही हरियाणा में कांग्रेस का स्वास्थ्य कमजोर है। इस इस्तीपेâ से कांग्रेस के कष्ट बढ़ेगें। शायद हरद्वारीलाल को लगता है कि अगले चुनाव में देवीलाल मुख्यमंत्री बन जाएंगे और वे मंत्री।

हरद्वारीलाल का आरोप है कि हरियाणा के साथ जो नाइंसाफी हो रही है, वह असहनीय है। केन्द्र हरियाणा का पानी दूसरे राज्यों को दे रहा है। पंजाब समझौते के नाम पर हरियाणा की जमीन पर पंजाब ने डाका डाल दिया है। ऐसे में कांग्रेस का सदस्य बना रहना कठिन है।

हो सकता है कि उन्हौंने वास्तव में हरियाणा के साथ हो रहे अन्यायोें के खिलाफ इस्तीफा दिया हो, मगर जिस वक्त उन्होंने इस्तीफा दिया है, इससे उनकी नीयत पर शक होने लगता है। चुनाव के पहले ही उन्हें अन्याय क्यों नजर आया? हरियाणा में लोकसभा के दस क्षेत्र हैं। भिवानी क्षेत्र पहले ही खाली है, अब रोहतक का भी लोकसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं है।

हरद्वारीलाल ने अपने इस्तीपेâ में लिखा है कि हरियाणा तो कभी भी कांग्रेस का गढ़ नहीं रहा। पिछले चुनाव में हरियाणा की सभी दस लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को जनता ने इस आशा से वोट दिया था कि उनके साथ अब न्याय होगा। लेकिन अब यहां के लोगों का विश्वास कांग्रेस से हट गया है।

हरद्वारीलाल के इस्तीपेâ से निश्चित ही हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति खराब होगी क्योंकि बार-बार पार्टी बदलने के बावजूद हरद्वारीलाल एक प्रमुख सांसद थे। हरियाणा में वे जाटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं। पुराने और पके हुए राजनीतिक कार्यकर्ताओं का जमावड़ा उन्होंने कर रखा है और देवीलाल से उनका गठबंधन वहां की राजनीति में नया गुल खिलाएगा।

७७ वर्षीय हरद्वारीलाल ने हरियाणा और दिल्ली में कई शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की है। भिवानी और दिल्ली में उन्होंने के.एम. कालेज की स्थापना की। वे महर्षि दयीनंद विश्वविद्यालय और कुरूक्षैत्र विश्व विद्यालय के कुलपति रहे हैं।

रोहतक जिले के छारा गांव के निवासी हरद्वारीलाल की पढ़ाई रोहतक के जाट हीरोज मेमोरियल स्वूâल में और फिर दिल्ली के सेंट स्टिफन कालेज में हुई। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने काम किया था।

जमीदार घराने के हरद्वारीलाल स्वतंत्र पार्टी की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इमर्जेन्सी में जेलाई १९७५ से जनवरी १९७७ तक स. मीसा में बंद थे। वे जनता पार्टी में भी हे और फिर कांग्रेस में चले गए। १९८४ में वे कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीते थे।

हो सकता है कि वे वास्तव में कांग्रेस की नीतियों से खुश न हो, लेकिन बार-बार दल बदलने से लोग उन्हें दल बदल लाल कहने लगे हैं।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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