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Shankar-Harmen

दुनिया के एक और देश में भारतीय मूल का व्यक्ति राष्ट्रपति चुना गया है। वह देश है सूरीनाम और वहां के राष्ट्रपति चुने गए हैं-रामसेवक शंकर। हालांकि आबादी के मान से सूरीनाम कोई बहुत महत्वपूर्ण देश नहीं है, लेकिन इससे क्या फर्वâ पड़ता है। सूरीनाम की आबादी करीब पांच लाख है और दुनिया में उससे भी छोटे देश मौजूद हैं।

सूरीनाम में दस साल बाद चुनाव हुए हैं। आठ सौ साल की गुलामी के बाद १९७५ में आजाद होते ही दक्षिण अमेरिका का यह तन्हा देश फौजी तानाशाही के चंगुल में पंâस गया। अंतत: फौज के खिलाफ तीन पार्टियां एक हो गई और चुनाव में विजयी हुई। फौजी तानाशाही के खिलाफ ‘लोकतंत्र तथा विकास के लिए विपक्षी मोर्चा’ नामक इस संगठन को दस जिलों की ५१ में से ४० सीटें मिली। मोर्चे के नेताओं को भी इतनी भारी जीत की आशा नहीं थी।

इस चुनाव नतीजे के बाद वहां के फौजी शासक कमांडर बोटर्स ने कहा था कि हम लोकतांत्रिक क्रांति का सम्मान करेंगे लेकिन सत्ता में सेना का महत्व निश्चित कर दिया जाएगा।

रामसेवक शंकर कृषि विज्ञानी और अर्थशास्त्री है। उन्होंने सूरीनाम में फौजी शासन के दौरान गत आठ वर्ष तक लगभग गुमनामी में कार्य किया और वे स्थितियां पैदा की जिनके कारण वहां लोकतंत्र की बहाली संभव हो सकी। १९८० में सूरीनाम में कमांडर देसी बोटर्स ने सत्ता हथिया ली थी।

श्री शंकर की पढ़ाई हालैण्ड के एक कृषि संस्थान में हुई। २५ साल की उम्र में उन्होंने ‘कृशि संबंधी अर्थशास्त्र’ विषय में स्नातक की डिग्री पाई थी। हालैण्ड के अधिकारियों का उन पर वरद हस्त था। उन्हें सूरीनाम के राष्ट्रीय विकास कार्यालय में महत्वपूर्ण पद मिल गया था। जनवरी १९६९ में जब वे केवल ३२ साल के थे, तभी उन्हें आर गर्वनर जनरल ने न्याय और पुलिस मंत्री नियुक्त कर दिया दिसंबर १९६९ में कृषि मंत्री बना दिए गए। दो साल तक वे उसी पद पर रहे।

१९७५ में सूरीनाम की आजादी के बाद उन्होंने हालैण्ड से डेढ़ अरब डालर की मदद वाले एक डच समझौते को अंजाम दिया। जब वहां सैनिक सत्ता आई तो उन्होंने सरकारी पद छोड़ दिया और नाम तथा प्रचार से दूर रहकर अपना खुद का कारोबार शुरू कर दिया। फरवरी १९८५ में जब उन्हें कृषि मंत्रालय का सलाहकार बनाया गया, तब वे फिर से सार्वजनिक जीवन में आए।

सितंबर १९८७ में श्री शंकर ने अपनी राजनैतिक गतिविधियां फिर शुरू की और वे प्रोग्रेसिव रिफार्म पार्टी के प्रमुख बन गए। उन्होंने दो अन्य दलों से समझौता किया और ५१ में से ४० सीटें प्राप्त कर ली।

श्री शंकर को राष्ट्रपति चुनने का कारण यह समझा जाता है कि वे ईमानदार और काबिल तो हैं ही, साथ में हालैण्ड में भी उनकी अच्छी प्रतिष्ठा है। श्री शंकर विवाहित है और चार बच्चों के पिता है।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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