संसदीय कार्य मंत्री हरकिशनलाल परमानंद भगत ने कांग्रेस सदस्यों को सचेकक जारी करके बड़ी गलती की है। वैसे तो उसके पहले भी वे कई-कई ऐसी गलतियां कर चुके हैं, जो अक्षम्य हैं। मगर इस बार मामला जरा जटिल है। करीब ३० साल पहले की बात है, जब श्री भगत ने अपने पिता के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर कोई गड़बड़ी करने की कोशिश की थी। हालांकि तब श्री भगत पार्टी के मामूली कार्यकर्ता थे, पर मामला तूल पकड़ चुका था और पं. नेहरू तक चला गया था। नेहरू जी ने तब उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया था और कहा था कि इस आदमी को फिर कभी भी कागं्रेस में मत घुसने देना।
वक्त वक्त की बात है कि श्री भगत न केवल कांग्रेस में घुसे, बल्कि केन्द्रीय मंत्री भी बने। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी में और यहां तक कि दिल्ली कांग्रेस के मध्यम दौर निचले संगठन में श्री उनके ही लोग है।श्री भगत खुद कभी मृदुल साराभाई के यहां क्लर्वâ थे। आज उनकी कार के एक भूतपूर्व ड्रायवर राजेश मादव दिल्ली महानगर निगम में पार्षद है और उनके पास दो कारें और दो मकान हैं।
खुद श्री भगत की सम्पत्ति करोड़ों में बताई जाती है। कहा जाता है कि फतेहपुरी में उनकी एक बेनामी शराब की दुकान है, जो करोड़ों की है। हरियाणा में उनकी पांच करोड़ रूपए की सम्पत्ति है। बुद्ध विहार और प्रीतमपुरा में उन्होंने जमीन की खरीदी बिक्री में करोड़ों कमाए। उनके बेटे दीपक भगत को तीन करोड़ रूपए का एक ठेका दिया गया। उनके बेटे दीपक की रही पश्चिम दिल्ली में डेढ़ करोड़ रूपए की एक दुकान है, जिसका नाम दीपक डीजल इंजिन्स है। इसके अलावा उन पर हेरापेâरी के कई मामले हैं, पर वे मात्र लाखों के हैं और हम यहां सिर्पâ करोड़ों का जिक्र कर रहे हैं।
हरकिशन लाल भगत १९५० से १९६६ तक चौधरी ब्रहमप्रकाश के चेले थे। १९६७ में वे रायबरेली गए और इंदिरा गांधी के चुनाव अभियान में जुटे। १९६९ में कांग्रेस विभाजन के वक्त और जनता पार्टी राज में वे इंजिराजी के प्रति निष्ठावान रहे। मगर उनका राजनैतिक प्रभाव १९७३ से बनना शुरू हुआ। इमर्जेन्सी में वे आवास और निर्माण राज्यमंत्री थे, तथा दिल्ली की गतिविधियों के पार्टी के प्रभारी भी। यही वक्त था, जब वे एकाएक महत्वपूर्ण हो गए थे। जनता राज के पतन के बाद जब दिल्ली के प्रतिनिधि को मंत्री बनाने का मौका आया, तब उनका पत्ता कट गया था और चरणजीत सिंह चानना को मंत्री बना दिया गया था।
पर दो साल बाद उन्हें मौका मिला। वे मंत्री बन गए। एशियाड के मौके पर उन्होंने अपनी योग्यता दिखाई और बाद में जब दिल्ली महानगर परिषद में कागं्रेस जीती तो उनके भाव फिर बढ़ गए। श्रीमती गांधी की हत्या के बाद सबसे व्रूâरतम दंगे उन्हीं के चुनाव क्षेत्र में हुए थे। पर चुनाव में उन्हें टिकट ही नहीं दिया गया मंत्री पद भी दिया गया।
६६ वर्षीय श्री भगत का जन्म मशहूर ऐतिहासिक स्थल हड़प्पा में हुआ था। उनकी पढ़ाई लाहौर में हुई। उन्होंने प्रथम श्रेणी में इतिहास में एम.ए. और एल.एल.बी. की उपाधियां पाई है। कालेज के दिनों में ही वे कांग्रेस से जुड़ गए थे। उन्हें पुâटबाल और हाकी खेलने का शौक रहा है। उन्होंने कानून पर एक किताब भी लिखी है। उनके परिवार में पत्नी दो बेटियां और एक बेटा है। वे शाकाहारी है और चा़य तक नहीं पीते।
प्रकाश हिन्दुस्तानी