अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति नजीबुल्ला कई मामलों में विशिष्ट व्यक्ति हैं। वे सिर्पâ चालीस साल के हैं। उनका राजनैतिक जीवन कुछ बरस पहले ही शुरू हुआ था। वे डाक्टरी पास हैं। अपने नाम के आगे पीछे कुछ भी लिखना उन्हें गवारा नहीं। वे पाकिस्तान की सीमा पर बसे अहमदजाई कबीले के हैं और दूसरे कबीलों को भी उन्हें समर्थन प्राप्त हैं।
वैसे तो नजीबुल्ला का चयन राष्ट्रपति पद पर पिछले साल चार मई को ही हो चुका था, जब बंबरक करमाल ने अपने पेâफड़ों की बीमारी की वजह से इस्तीफा दे दिया था। तब वे मेजर जनरल थे और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रभारी थे। जब उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रभारी बनाया गया था, तभी यह बात लगभग तय थी कि वे राष्ट्रपति बन सकते हैं। क्योंकि इसके पहले वे अफगानिस्तान की राष्ट्रीय गुप्तचर पुलिस के प्रमुख थे और उस पद पर रहते हुए रूसी फौैज और रूसी सरकार का विश्वास प्राप्त कर चुके थे।
नजीब ने जून १९८१ में ही पीपल्स डेमोव्रेâटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान की पूर्ण सदस्यता प्राप्त की थी। बबरक करमाल की सरकार में मुख्यत: दो गुट थे-एक था, परचम गुट और दूसरा खल्कविंग। नजीब परचम गुट के थे, जिसका पूरा समर्थन बबरक करमाल को था।
नजीबुल्ला सामूहिक नेतृत्व में यकीन करते हैं। और रूस भी उनकी इस विशेषता कोे मानता है। जिस तरह रूस में गोर्बचौफ ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया था, उसी तरह नजीबुल्ला ने अफगानिस्तान में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने की बात कही है। उनकी नेतृत्व क्षमता के कारण सुल्तान अली किश्तमंद राजनीतिक धुंध में आ गए हैं।
कामरेड नजीब अपने आपको पक्का मुसलमान कहते हैं। उनके साथी भी उन्हें यही मानते हैं। स्वूâल के दिनों से वे अपनी सारी नमाज विधिवत अदा करते हैं। यहां तक कि यात्रा के दौरान भी वे नमाज अदा करना नहीं भूलते।
नजीब ने अपने कालेज के दिन सक्रिय राजनीति में बिताए हैं। पूरे काबुल विश्वविद्यालय के छात्र उन्हें जानते थे और उनकी भाषण कला की कराहना करते थे।
जोड़तोड़ करने में नजीब का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। जब वे राष्ट्रीय गुप्तचर पुलिस संगठन के प्रमुख थे, तब उन्होंने चुन-चुनकर ऐसे लोगों को अपने संगठन में भर्ती किया था, जो या तो उनके कबीले के थे या उनके नजदीकी लोग थे। विद्रोहियों से लड़ने में उन्हें इस बात का काफी लाभ मिला कि उन्हें कई कबीलों के रीति रिवाज अच्छी तरह पता थे। उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान की कुल आभादी का ५५ प्रतिशत पख्तून है।
नजीब का कहना है कि रूसी फौजें तो अफगानिस्तान से पूरी तरह हटने को तैयार है, पर विद्रोहियों की कार्रवाई के कारण ही उन्हें वहां रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसी बातें करके वे रूस को खुश रखना चाहते हैं, जो उनके पद पर बने रहने के लिए शायद जरूरी भी है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी