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dalit-movement-in-indiaअब रामधन भी पं. कमलापति त्रिपाठी के रास्ते पर हैं। उनकी शिकायत है कि राज्यसभा और विधानपरिषद के चुनावों में पिछड़ी जाति के लोगों की उपेक्षा हो रही है। पिछड़े लोगों की उपेक्षा का मुद्दा उन्होंने ऐसे वक्त में उठाया है, जब कांग्रेस की राजनीति पूरे उबाल पर है। वैसे रामधन सुलझे हुए पढ़े-लिखे, ऊर्जावान और प्रगतिशील नेता है, मगर दुर्भाग्य से वे राजनीति में ऐसे सिक्के बन गए हैं, जो चलने से बाहर हो गया है।

रामधन का नाम अखिल भारतीय राजनीति में सबसे पहले चन्द्रशेखर, और मोहन घारिया जैसे युवा तुर्कों के संग आया। इसके पहले वे उत्तरप्रदेश की स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे और वहां अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुके थे।

आज पंडित कमलापति त्रिपाठी उनके प्रमुख हमदर्द हैं, यह वक्त की ही बात है। वरना रामधन का अपनापा बाबू जगजीवन राम के साथ ही ज्यादा था। जब सूर्यभानू गुप्त उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब रामधन की उनसे लगातार अनबन रही। राजनायायण और चरणसिंह ने भी कभी उन्हें पसंद नहीं किया वरना आज वे राजनीति के क्षितिज पर कहीं और होते।

जब केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और उत्तरप्रदेश में जब जनता पार्टी को बहुमत मिला था, तब रामनरेश यादव के बजाए रामधन कोे मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में ज्यादा लोग थे। मगर यह राजनीति का जातिगत समीकरण ही था, कि वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। जो चरणसिंह एक हरिजन जगजीवनराम को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते थे, वही चरणसिंह दूसरे हरिजन रामधन को अपने गृह राज्य का मुख्यमंत्री वैâसे स्वीकार करते?

रामधन राजनीति में आने के पहले पत्रकार रह चुके हैं। १९४८ से १९५५ तक उन्होंने बनारस के ‘आज’ और ‘संसार’, लखनऊ के ‘स्वतंत्र भारत’ तथा इलाहाबाद के अखबार ‘अमृत बाजार पत्रिका’ के लिए संवाददाता के रूप में कार्य किया। वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की ‘भारतीय साहित्य सहकार’ संस्था के संस्थापक हैं। भारतीय डेमोव्रेâटिक सोशलिस्ट क्लब की भी उन्हंोने स्थापना की।

रामधन वर्तमान में उत्तरप्रदेश की लालगंज सीट से लोकसभा के सदस्य हैं। वे चौथी और पांचवी लोकसभा के भी सदस्य रह चुके हैं। वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और जनता पार्टी में भी रहे हैं। वे जनता पार्टी महासचिव पद पर भी रहे। मगर बाद में उन्होंने कांग्रेस में आने में ही भलाई समझी।

आपातकाल के दिनों में रामधन डेढ़ साल से ज्यादा समय तक जेल में रहे। इसके पहले वे आजादी की लड़ाई के दौरान भी दो साल तक ‘डिपेâन्स आफ इंडिया रूल’ के तहत जेल में बंद थे। खुशमिजाज और रंगीन तबीयत के रामधन जेल की जिंदगी से कभी घबराए नहीं।

१ जुलाई १९२१ को उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के आजमपुर गांव में जन्मे रामधन के पास एम.ए. और एलएलबी. की डिग्री है। सांसद के रूप में वे अमेरिका, ब्रिटेन, प्रâांस, इटली, आस्टिया और कई अप्रâीकी देशों की यात्रा कर चुके हैं। पत्रकारिता और बागवानी में उनकी रूचि है। तैरना और पढ़ना उन्हें अच्छा लगता है। उनकी चार संतानें हैं - दो बेटे और दे बेटियां। जनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर अभी भी उनके निजी दोस्त हैं।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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