जहांगीर रतनजी दादाभाई (जे.आर.डी.) टाटा को हाल ही में दादाभाई नौरोजी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हालांकि उनके पास देश-दुनिया के दर्जनों पुरस्कार और सम्मान हैं, लेकिन हमारे यहां व्यापार-व्यवसाय क्षेत्र की प्रतिभाओं को उचित सम्मान प्राय: नहीं मिल पाता। टाटा परिवार के ही कुछ अच्छे कार्यों का श्रेय हम राजनीतिक सत्ता को देते रहे हैं। भारत ने हर बात का श्रेय नेताओं को जाता है। यहां व्यापार-व्यवसाय करना और सफलता पूर्वक करना वाकई मुश्किल काम है।
जे.आर.डी. कहते हैं कि राजनैतिक आजादी अपनी जगह बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन हम उसका लाभ तभी उठा सकते हैं, जब हम अपने देश में पूंजी और सम्पत्ति का निर्माण करें। साधनों का दोहन करें। देश को बहुत से कारखाने चाहिए, कच्चा माल, मशीनें, सड़वेंâ, रेलें, स्वास्थ्य सुविधाएं चाहिए। इस सबके लिए सम्पत्ति हमें निर्माण करना ही होगी। वे परिवार नियोजन के कट्टर समर्थक हैं और उनका मानना है कि जो परिवार नियोजित हों, उन्हें रियायतें मिलनी चाहिए। उनके बच्चों से कम फीस लेनी चाहिए और उन परिवारों को सस्ते मकान देने चाहिए। वे झोपड़पट्टियों में रहनेवालों के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति के खिलाफ हैं और कहते हैं कि अगर उन लोगों के पास क्रय-शक्ति है तो सरकार को उनसे टैक्स भी जरूर वसूलना चाहिए।
एक उद्योगपति, प्रबंधक, सामाजिक कार्यकर्ता और पाइलट के रूप में जे.आर.डी. ने हमेशा ऊँची उड़ानें भरी हैं। उन्हीं के पूर्वजों ने भारत में आधुनिक इस्पात उद्योग की नींव रखी। ‘टाटा एअर लाइन्स’ और एअर इंडिया लिमिटेड के संस्थाुक वे ही हैं। आजादी के दो साल पहले वे अमेरिका और ब्रिटेन के दौरे पर गए थे और लौटकर उन्होंने कहा था कि भारतीय उद्यमी इन देशों से मशीनें न खरीदें, क्योंकि वे ज्यादा दाम लेते हैं और वक्त पर मशीन सप्लाय नहीं करते। उन्होंने माना कि उद्योगीकरण सतत चलनेवाली एक प्रक्रिया है और यह तभी चालू रह सकती है, तब सौहार्द का रिश्ता हो। प्रबंधक के रूप में कई मर्तबा कड़े पैâसले कर चुके हैं। मसलन १९७४ में हुई। एअर इंडिया की तालाबंदी।
आज से ५१ साल पहले जे.आर.डी. को टाटा उद्योग समूह का चेयरमेन बनाया गया था। तब से टाटा समूह का हर क्षेत्र में विस्तार ही हुआ है। इस्पात से लेकर नमक तक और वाहनों से लेकर साबुन तक। लेकिन भारतीय उद्योग में उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान इस्पात और विमानन के क्षेत्र में ही माना जाता है। १९३२ में उन्होंने टाटा एअर लाइन्स की स्थापना करके भारत को आकाश में पहुंचाया। ये बात और है कि भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने जो ५२ पेज की किताब छापी है-‘भारत में नागरिक विमानन’ उसमें जे.आर.डी. का कहीं नाम नहीं है। न उसमें उनकी कराची से बम्बई तक की साहसिक विमान यात्रा का उल्लेख है। उन्हें भारतीय वायुसेना के मानद ‘एअर कमोडोर’ का सम्मान दिया गया है। यह सम्मान ब्रिटेन में बिन्सटन चर्लिप को प्रदान किया गया था।
२९ जुलाई १९०४ को पेरिस में जन्मे जे.आर.डी. की पढ़ाई-लिखाई भारत,प्रâान्स और जापान में हुई। १८ साल की उम्र में उन्होंने अपने पारिवारिक व्यवसाय में कदम रखा था। लेकिन उनका सबका सिर्पâ उद्योगों से ही नहीं है। वे मुक्त व्यापार से लेकर प्रâांसिसी कविता तक जैसे विषयों पर अधिकारपूर्ण चर्चा कर सकते हैं।
जे.आर.डी. को स्कीइंग, तैराकी और गोल्फ का शौक है। अंग्रेजी और प्रेंâच कविताएं उन्हें लुभाती है। वे गुजराती धाराप्रवाह बोल सकते हैं। वे पदम विभूषण से सम्मानित हैं। आज भी उनके नेतृत्व बोले संस्थानों में से कई का आधे से अधिक मुनाफा समाजसेवी संगठनों और न्यासों को जाता है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी