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Robert-Mugabe 2राबर्ट ग्रेब्रिएल मुगाबे अब निगुर्ट आंदोलन के नए नेता हैं। वे १९८९ तक इस पद पर रहेंगे। पिछले साल जब जिम्बाब्वे निर्गुट आंदोलन का नेता चुना गया था, तब लीबिया की बड़ी इच्छा थी, नेतृत्व की। मगर लीबिया के नेता कर्नल गद्दाफी कामयाब नहीं हो सके क्योंकि तंजानिया के राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे और भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी राबर्ट मुगाबे के पक्ष में थे।

मुगाबे में खास बात यह है कि वे कर्नल गद्दाफी की तरह रूस के साये में नहीं है। मुगाबे अपने देश के एक छत्र नेता हैं और उनके देश की भारत ही नहीं, पाकिस्तान, चीन, उत्तर कोरिया और ब्रिटेन सबसे दोस्ती है। पाकिस्तान और लीबिया जैसे तथाकथित निर्गुट देशों के तुलना में जिम्बाब्वे ज्यादा निर्गुट है। वह दक्षिण अप्रâीका की सीमा पर है और जाम्बिया, तंजानिया, बोत्सवाना, मोजाम्बिक और अंगोला जैसे कई देश उसके साथ है।

राबर्ट मुगाबे शिक्षाविद, अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता, राजनेता, वामपंथी मगर धर्म के कट्टर अनुयायी, और गुरिल्ला नेता हैं। उनके पास दक्षिण अप्रâीका व ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों की ६ डिग्रियां है। वे महात्मा गांधी और भारतीय स्वाधीनता संग्राम से बहुत प्रभावित है।

जिम्बाब्वे की आजादी के वे असली और सफल सिपाही है। उन्हीं के नेतृत्व में लम्बी गुरिल्ला बड़ाइयों के बाद अंग्रेजी हुवूâमत वहां से हटी और ६ साल पहले जिम्बाब्वे ने आजादी की सांस ली। बंबई के बराबर आबादी वाले जिम्बाब्वे में डेढ़ लाख गोरे अब भी हैं, मगर वे धीरे-धीरे जा रहे हैं।

१९८० के मार्च में हुए चुनाव में मुगाबे की पार्टी ने ८० में से ५७ सीटें जीती थी। १९८५ में वहां ७९ सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से मुगाबे की पार्टी को ६३ सीटें मिली। इस पार्टी की स्थापना का श्रेय भी मुगाबे को ही है। प्रधानमंत्री बनने के पहले दो मर्तबा और बाद में ६ बार उनकी हत्या की कोशिशे हो चुकी है। इन कोशिशों में उनकी विरोधी गुरिल्लों का हाथ है।

मुगाबे १९६० से सक्रिय राजनीति में है। वे सबसे पहले सामने आए तब वे नेशनल डेमोव्रेâटिक पार्टी के प्रचार सचिव थे। (बाद में इस पार्टी का नाम जिम्बाब्वे अप्रâीकन पीपुल्स यूनियन और फिर जिम्बाब्वे अप्रâीकन नेशनल यूनियन रखा गया।) बाद में इस पार्टी के उपाध्यक्ष बने तब १९६३ में इस पर रोक लगा दी गई।

एक साल बाद उन्हें पकड़कर जेल में बंद कर दिया गया। दस साल वे रोडेशिया में इवान स्मिथ की गोरी सरकार की जेल में सड़ते रहे। (तब जिम्बाब्वे का नाम रोडेशिया था।) वे जेल में थे, तभी उनके इकलौते पुत्र की मौत हो गई थी और उन्हें अपने बेटे को दफनाने के लिए भी जेल से छुट्टी नहीं दी गई।

जेल में मुगाबे ने ८ कई डिग्रियां हासिल की। वे लगातार पढ़ाई में जुटे रहे और उनका यह विचार पक्का हो गया कि आजादी केवल ताकत से पाई जा सकती है। इसी विचार ने उन्हें ज्यादा लड़ावूâ नेता बनाया।

जेल से छूटकर मुगाबे ने गुरिल्लों का नेतृत्व किया। हालांकि वे खुद कहीं लड़ाई में नहीं गए। वे तंजानिया की सीमा में से अपनी योजनाएं बनाते और लड़ाइयों की रणनीति खोजते। लड़ाई में अंतत: उनकी जीत हुई और रोडेशिया आजाद होकर जिम्बाब्वे कहलाया।

प्रधानमंत्री बनने से एक साल के भीतर उन्होंने जिम्बाब्वे में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य की और उस पर अमल किया। तम्बावूâ व गन्ने के अतिरिक्त उत्पादन का निर्णय शुरू किया और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारी। देश में बेहतर संचार और परिवहन सुविधाएं उन्होंने जुटाई। सैनिकोें के प्रशिक्षण में चीन और पाकिस्तान की मदद ली।

जिम्बाब्वे तीसरी दुनिया के देशों में परस्पर सहयोग पर बहुत जोर देते हैं। उनका मानना है कि निर्गुट देश की आपस में एक दूसरे की बहुत मदद कर सकेत हैं।

मुगाबे की पैदाइश १९२५ में एक गरीब ग्रामीण मजदूर परिवार में हुई। वे चार भाइयों में सबसे बड़े हैं। अपनी शुरूआती पढ़ाई मिशन स्वूâल में पूरी करने के बाद वे दक्षिण अप्रâीका के हारे विश्वविद्यालय में पढ़े। छात्र जीवन को ही वे अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय मानते हैं, जब उन्होंने ये रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का पैâसला लिया था। पढ़ाई के बाद कई वर्ष तक उन्होंने अध्यापन किया।

राबर्ट मुगाबे की पत्नी घाना की हैं। अपने पति के साथ वे भी भारत यात्रा कर चुकी हैं। वे भी भारत को पसंद करती हैं। राबर्ट मुगाबे राजीव गांधी को अपना खैरख्वाहं मानते हैं।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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