अगर प्रकाशचन्द्र सेठी आत्मकथा लिखें तो खूब बिकेगी। वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और केन्द्र में ग्रह, रेल, रक्षा उत्पादन, आवास व निर्माण, खान, पैट्रोलियम व रसायन आदि विभागों के मंत्री रहने के अलावा कांग्रेस के बहुत ही कुशल कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। इससे भी बढ़कर है उनकी अपनी शख्सियत।
श्री सेठी को ‘साहब’ कहलाना पसंद है। हालांकि लोग उन्हें ‘सेठीजी’ कहना पसंद करते हैं। फिलहाल वे इन्दौर लोकसभा क्षेत्र के नुमाइंदे हैं। इसके पहले भी वे वहां से चुने जा चुके हैं। वे राज्यसभा में भी रह चुके हैं और महू तथा उज्जैन (उत्तर) की सीट से विधानसभा में भी चुने गए थे। राजनीति में आने के पहले वे एल.आई.सी. के एजेंट थे। वे उज्जैन नगर पालिका (अब नगर निगम) के चार बार अध्यक्ष चुने गए थे।
इंटक ने उन्हें राजनीति में उठाया नगर उन्हें महत्व तब मिला जब तत्कालीन मध्यभारत के मुख्यमंत्री तख्तमल जैन ने उन्हें १९६१ में राज्यसभा में भिजवाया। ९ जून १९६२ को जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें इस्पात उपमंत्री बनाया था। १३ मार्च १९६७ में वे राज्यमंत्री बने।
मगर सेठीजी कहते हैं कि मेरी पैदाइश इंदिरा गांधी के घर पर २८ जनवरी १९७२ को हुई थी, जब उन्हें म.प्र. का मुख्यमंत्री बनाने का पैâसला हुआ था। सेठीजी इंदिरा गांधी के प्रति वफादार रहे हैं और सरेआम कहते रहे कि मैं उनका पालतू कुत्ता हूं। उन्होंने यह वफादारी निभाई थी। मुख्यमंत्री बनने के पहले के ५० दिनों में से उन्होंने केवल ११ दिन भोपाल में बिताएं थे, २९ दिल्ली में और १० दूसरी जगह।
वैसे घूमने-फिरने का शौक उन्हें आवास और निर्माण मंत्री बनने पर भी था। तब ८३ दिनों में उन्होंने १३० हवाई यात्राएं की थी, जिसमें से ११ हवाई यात्राएं एक ही दिन की थी।
सेठीजी मध्यप्रदेश के आठवें मुख्यमंत्री रहे हैं। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल और उनके मंत्रिमंडल को अलीबाबा और चालीस चोर की उपाधि दे डाली। उन्होंने अपने भाषणों में यह भी कहा कि मुख्यमंत्री की तनख्वाह बहुत ही कम है। इससे ज्यादा तो ताज होटल का वेटर कमा लेता है। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भोपाल को एक स्वीमिंग पूल दिया, जिसका नामकरण उनके नाम पर है। इसके अलावा उन्होंने म.प्र. को ऐसा प्रशासन दिया, जिसकी कोई खास उपलब्धि नहीं है।
प्रकाशचंद्र सेठी मुख्यमंत्री रहे हो या केन्द्रीय मंत्री। उन्होेंने अपने क्षेत्र के मतदाताओं की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। मगर वे कांग्रेस के नाम पर चुनाव जीतते रहे। महू से जब वे विधानसभा का चुनाव जीते थे, तब उन पर एक आरोप यह था कि उन्होंने करीब एक लाख रूपया केवल अपने वाहनों के र्इंधन पर खर्च किया था।
१९८० में सेठीजी की खूब चर्चाएं हुई। उनके इन्दौर, उज्जैन, बंबई और नागपुर यात्रा रे किस्से लोगों की जुबान पर थे। कहीं वे आधी रात को बदन की मालिश करवाते, कहीं वे स्वींमिग पूल में नहाते। पालम पर उन्होंने अपने पी.ए.की कालर पकड़ ली और बंबई के सेंटोर होटल में आधी रात को हुड़दंग मचाया।
उज्जैन के सर्विâट हाउस में उन्होंने युवा कांग्रेसियों को बताया कि शराब किस तरह पी जानी चाहिए। किस तरह कच्चे अंडे में व्हिस्की के दो पैग मिलाकर पेंâटना चाहिए और फिर उसमें दूध मिलाकर पेंâटकर पीना और सोना चाहिए।
कई लोग कहते हैं कि वे बहुत ही कुशल प्रशासक स्पष्ट वक्ता और परिश्रमी व्यक्ति हैं लेकिन जरा मजाकिया स्वभाव के हैं। बस, बात इतनी है कि वे सुबह होते ही जिन पी लेते हैं और शाम ढलते ही व्हिस्की चढ़ा लेते हैं। उन्होंने अगरकिसी और किसी वक्त शराब नहीं पी होगी तो केवल इंदिरा गांधी या संजय गांधी से मिलने के वक्त।
सेठीजी अर्जुनसिंह के विरोधी है। शुक्ल बंधुओं से भी उनकी पटरी नहीं बैठती। पर वे माधवराव सिंधिया के समर्थक हैं।
सेठीजी की पांच बेटियां है। मालिश कराना, तैरना और टेनिस खेलना उन्हें प्रिय है। म.प्र. के गुलाबी चना कांड और वुंâओं आइल डील के साथ उनका नाम जुड़ा था। वे अपने आपको राजनीति का दिलीप कुमार कहते हैं। १९ अत्तूâबर १९२० को झालावाड़ (राजस्थान) में जन्मे श्री सेठी की पढ़ाई इन्दौर व उज्जैन में हुई थी।
१९ साल की उम्र में उनकी शादी हो गई।
प्रकाश हिन्दुस्तानी