भारत में लोकतांत्रिक राजतंत्र है। यह बात माधवराव सिंधिया और अन्य पूर्व राजाओं को मिले महत्व से स्पष्ट है। फिलहाल श्री सिंधिया पर विदेशी मुद्रा नियमन कानून को तोड़ने का आरोप है, मगर कोई सघन कार्रवाई उन पर नहीं हो रही है। शायद इसलिए कि वे पूर्व राजा, केन्द्रीय राज्य मंत्री और मध्यप्रदेश में कांग्रेस का वोट बैंक हैं।
माधवराव सिंधिया का नाम पिछले दस-पन्द्रह साल से पारिवारिक कलह और सम्पत्ति के विवाद को लेकर ही ज्यादा सुनने में आता था। मंत्री बनने के बाद यह खबर छपी थी कि उन्होंने रेल्वे बोर्ड के एक वरिष्ठ अफसर को इसलिए पद से हटा दिया कि उसने मंत्रीजी की कार के लिए एअरवंâडीशनर लगाने की इजाजत नहीं दी थी। श्री सिंधिया का कहना है कि यह खबर मिथ्या प्रचार थी।
माधवराव सिंधिया ने थोड़े से समय में ही रेल-प्रशासन में व्यापक सुधार किया है। पुरानी पटरियां बदलने, आरक्षण व्यवस्था में पेâरबदल, तथा दीर्घकालीन परियोजनाओं के बारे में उनके पैâसले भारतीय रेलों का स्वास्थ्य सुधारने में मदद करेंगे।
माधवराव सिंधिया २५ साल से राजनीति में है। १९६१ में, जब वे १६ साल के थे, उनके पिता का देहांत हो गया। तब उन्होंने पुरानी ग्वालियर रियायत के क्षेत्रों में व्यापक जन सम्पर्वâ अभियान चलाया था। तब से वे लगातार जनता से सम्पर्वâ बनाए हुए हैं। १९६१ के अंत में वे पढ़ाई के लिए विलायत गए उसके बाद भी वे हर साल छुट्टी लेकर आते और जन सम्पर्वâ करते।
यह जन सम्पर्वâ उनकी राजनैतिक सम्पत्ति बन गया। १९६९ में उन्हें जनसंघ में जाने का पैâसला कर लिया। उन्होंने जहसंघ में कांग्रेस का विकल्प देखा और वे स्वच्छ लोकतंत्र की बातें करने लगे। वे जनसंघ के टिकट पर ही लोकसभा का चुनाव जीते। इमर्जेन्सी लगी तब वे काठमांडू चले गए और जनसंघ से इस्तीफा दे दिया।
१९७७ में जब इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी चुनाव हार गए थे, माधवराव सिंधिया गुना से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते थे। कांग्रेस का उन्हें समर्थन था। १९८० में भी उन्होंने ग्वालियर के निकटवर्ती संसदीय क्षेत्र गुना से ही चुनाव जीता। उन्हें लोकसभा चुनाव में हराना असंभव की हद तक कठिन हो गया था।
माधवराव सिंधिया संजय गांधी के भी करीबी थे। जब राजीव गांधी कांग्रेस के महासचिव बने, तब वे राजीव गांधी के भी करीब थे। १९८४ के चुनाव में उन्हें ग्वालियर से टिकट दिया गया, जहां से भाजपा नेता अटलबिहारी वाजपेयी उम्मीदवार थे और जिन्हें राजमाता विजयाराजे सिंधिया का सहयोग प्राप्त था।
माधवराव सिंधिया कांग्रेस में थे, मगर उनकी मां विपक्ष मेैं थी। तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने कभी भी अपनी मां के विरूद्ध एक शब्द नहीं कहा। हालांकि उनकी मां ने उन पर अनेक राजनैतिक प्रहार किए। आज भी वे हर रोज अपनी मां के चरण स्पर्श करते हैं। माधवराव सिंधिया की दिलचस्पी ग्वालियर और उससे लगे हुए क्षेत्र में ज्यादा है। उनका कहना है कि मैं अपने मतदाताओं के प्रति सबसे पहले जवाबदार हूं।
४१ वर्षीय माधवराव सिंधिया किसी फिल्मी सितारे से ज्यादा लाख-दान वाले हैं। वे देश के दस सर्वश्रेष्ठ पोशाक पहनने वालों में गिने जाते हैं। सौम्य और मृदुभाषी श्री सिंधिया की क्रिकेट और घुड़दौड़ में रूचि है। वे स्काच के शौकीन है और धुम्रपान भी करते हैं। वे हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी और प्रेंâच भाषाएं जानते हैं। उनकी पत्नी नेपाल के राज परिवार सी हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति में भी उनके लोग महत्वपूर्ण पदों पर हैं और उनका वर्चस्व है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी