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2l945dxबलराम जाखड़ ने लोकसभा अध्यक्ष के रूप में वाकई कीर्तिमान कायम किए हैं। वे इतने लम्बे समय तक लोकसभा की अध्यक्षता करने वाले एकमात्र नेता हैं। अब तक लोकसभा अध्यक्ष पर सदन की कार्रवाई के दौरान पक्षपात करने के ही आरोप लगे हैं, लेकिन बलराम जाखड़ के खिलाफ लगाए गए आरोप अखबारों की सुर्खियां बन रहे हैं। यों साठ के दशक में लोकसभा अध्यक्ष हुवूâम सिंह पर भी कुछ ऐसे ही आरोप लगाए गए थे, मगर वे आरोप झूठे साबित हुए थे।

विधान सभाओं के अध्यक्ष अक्सर आरोपों से घिरे होते हैं, मगर लोकसभा अध्यक्ष पर आरोप लगाने का साहस कम ही सदस्य कर पाते हैं।

सातवीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में बलराम जाखड़ विवादों से परे माने जाते रहे। उन्हीं की अध्यक्षता में लोकसभा में किसानों की तकलीपेंâ देश की चिन्ता का विषय बनी। वे ही थे कि लोकसभा में बिना व्यक्तिगत कटुता के अंतुले कांड और पंजाब तथा असम की समस्याओं पर लम्बी चर्चाएं हो सकी। इसके श्रेय के भागीदार श्री जाखड़ भी है।

लेकिन आठवीं लोकसभा के दौरान अध्यक्ष की उपस्थिति को उस तरह से सम्मान नहीं मिल पाया। लोकसभा में बोफोर्स पर हंगामें हुए, पंजाब में राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर बहस के दौरान गत्यवरोेध खड़े हुए, जेलसिंह के कथित पत्र पर चर्चा की मंजूरी न मिलने के कारण शोरगुल हुआ और यहां तक कि अध्यक्ष पर विदेशी वंâपनी का पक्ष लेने का आरोप भी लगा। जब जेलसिंह का कार्यकाल खत्म होने को था, तब ये भी अफवाहें उड़ी कि उनकी नजरें राष्ट्रपति पद पर हैं।

जब के.के. तिवारी लोकसभा में जेलसिंह के खिलाफ बोल रहे थे, तब उन्हें अध्यक्ष ने टोका नहीं। डाक-तार कानून पर उन्होंने लोकसभा की बहस यह कहकर टाल दी कि वे सरकार को उचित कार्रवाई के लिए कहेंगे। और होता ये रहा कि सांसदों तक की चिठ्ठियां खोली जाती रही। सदन में बहस को टालने के लिए वे कई बीर सदस्यों को अपने केबिन में बुला लेते और मामला सुलटा देते। वे हमेशा कहा करते कि अखबारवालों के आरोपों पर ध्यान मत दो और उनके आरोपों को रचनात्मक मोड़ दो।

श्री बलराम जाखड़ ‘थ्री इन वन’ हैं। बड़े जमीदार, फलों के प्रमुख उत्पादक और कुशल नेता। २२ जनवरी, १९८० को वे सातवीं लोकसभा के अध्यक्ष बने थे। किसी ने भी तब उनका विरोध नहीं किया था, क्योंकि वे र्नििववाद थे और श्रीrमती गांधी का उन पर पूरा भरासा था।

बलराम जाखड़ संस्कृत भाषा के पंडित, कृषि पंडित और संसदीय मामलों के मंत्री हैं। २३ अगस्त १९२३ को पंजाब के फीरोजपुर जिले की फाजिल्का तहसील के पंचकोशी गांव में उनका जन्म हुआ। वहीं उनकी खेती-बाड़ी है। फलों के बगीचे भी है। उन्होंने पढ़ाई लाहोर में की। ४९ साल की उम्र में वे पहली बार पंजाब विधानसभा में चुनकर गए। १९७३ से ७७ तक वे सिंचाई और सहकारिता मंत्री रहे। फिर १९७७ से पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता।

पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में वे सक्रिय रहे और तभी इंदिरा गांधी के निकट आने का उन्हें मौका मिला। इंदिरा गांधी उनकी नेता थी और बलराम जाखड़ ने पूरी निष्ठा से उनका साथ दिया था।

भारत कृषक समाज के मानद अध्यक्ष और किसान नेता के रूप में बलराम जाखड़ कई देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी किताब ‘पीपल, पार्लियामेंट, एडमिनिस्ट्रेशन’ चर्चित रही है। इसमें उन्होंने ‘समाचारपत्रों की स्वतंत्रता बनाम गोपनीयता का अधिकार’ जैसे मुद्दे उठाए हैं। दिल्ली में हुए तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी।

बलराम जाखड़ अच्छे डीलडोल वाले नेता हैं। खुशमिजाज सेहत के बारे में जागरूक। उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं। वे खुद शाकाहारी है।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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