सरकारें तीन तरह की होती है : (१) ईमानदार और योग्य (२) ईमानदार और अयोग्य (३) बेईमान लेकिन योग्य। जापान में नोबोरू ताकेशिता की सरकार तीसरे किस्म की थी। पाक-साफ दामन का कोई मंत्री उनके विभाग में नहीं बना। जापान में ३२ साल से सत्ता में बैठी लिबरल डेमोव्रेâटिक पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ जितना इस समय नीचे आया है, उतना दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वहां की किसी भी सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ नहR गिरा था। ताकेशिता यों ही बूढ़े हैं। तोहमतों का दौर शुरू हुआ तो वे अपना आत्मविश्वास ही खो बैठे। वे पत्रकारों - टी.वी. वैâमरों के आगे कुछ भी कहने लगे। कभी-कभी तो उनकी आवाज एकदम नहीं निकलती।
ताकेशिता पर मुख्य इलजाम है कि उन्होंने जापान की एक प्राइवेट रियल एस्टेट वंâपनी के १५ करोड़ येन (एक येन करीब ८२ पैसे के बराबर होता है) के शेयर पार्टी के लिए ‘उपहार’ में लिए। बाद में वह वंâपनी पब्लिक लिमिटेड वंâपनी बना दी गई। फिर ताकेशिता ने वे शेयर बेचकर पार्टी के लिए कोष जमा कर लिया। इस तरह के काम ताकेशिता के लगभग हर सहयोगी ने किए। ताकेशिता शुरू में तो आरोप का खंडन करते रहै, लेकिन बाद में उन्होंने यह बात मान ली कि उन्होंने शेयर लिए थे। पत्रकारों ने उनसे पूछा कि अगर उन्होंने शेयर लिए थे, तो पहले यह बात क्यों नहीं स्वीकारी। उन्होंने मासूमियत से कहा -पहले में ये बात भूल गया होऊंगा कि मैंने शेयर लिए हैं।
ताकेशिता के खिलाफ उनकी ही पार्टी के चालीस प्रमुख युवा तुर्वâ एकमत होकर मैदान में आ गए हैं। हाल ही में एक जनमत संग्रह कराया गया तो उनकी सरकार का समर्थन करने वाले मात्र ७.८ प्रतिशत लोग थे। मामला और पहले तूल पकड़ता, लेकिन जापान के सम्राट हिरोहितों की मौत और उनके अंतिम संस्कार के कारण जापान में उठापटक की राजनीति ढीली पड़ गई थी।
ताकेशिता भ्रष्ट होंगे, लेकिन उनकी योगयताओं से कोई इन्कार नहीं कर सकता। उन्हें दुनिया के सबसे कल्पनाशील और कुशल नेताओं में गिना जाता है। वे राजनीति और टेव्नâोलाजी का संगम हैं। उन्हें ‘टेव्नâोलाजी’ प्रधानमंत्री कहा जा सकता है। उनकी कोशिश यही रही कि अंतरिक्ष में चलनेवाले यान की उसी गति से धरती पर चलाया जाए।
ताकेशिता ने जापान में एक नया युग शुरू किया। डेढ़ साल की छोटी सी अवधि में उन्होंने ऐसे महत्वपूर्ण पैâसले किए हैं, जो जापानियों के लिए दीर्घकाल तक फायदेमंद होंगे। उन्होंने पहला काम बिना सत्ता का विकेन्द्रीकरण करने की दिशा में। दूसरे उन्होंने बड़े-बड़े उद्योगों को उपभोक्ता सामग्री उत्पादन की दिशा में मोड़ा। तीसरी बात उन्होंने की निर्यात प्रमुख अर्थ व्यवस्था को मोड़ने की दिशा में की और आह्वान किया कि जापान के उत्पादन जापानियों के लिए पहले हों। चौथा महत्वपूर्ण काम उन्होंने किया समाज की गतिविधियों को वृद्ध समाज की और उन्मुख करने की दिशा में। जापान में बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ रही है और वे खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे थे।
ताकेशिता ने ‘फरूसातो’ नारा दिया। इसके तहत हर जापानी को अपनी जमीन से, कस्बे से, जाति और समुदाय से तथा धर्म से जोड़ने का अभियान चलाया गया। उन्होंने पुरानी सामंती राज्योंवाली जापानी पहचान को फिर उभारने की कोशिश की। उन्होंने जापानियोें की क्षेत्रीय पहचान को सम्मान दिया। इसके तहत उन्होंने २६ उच्च तकनीक शोध एवं विकास केन्द्र खोले और बड़ी-बड़ी वंâपनियों से कहा कि वे अपने साफ्टवेयर डेवलपमेंट, प्रोडक्टस डिजाइन के केन्द्र इन्हीं २६ स्थानों पर स्थानांतरित करें। दिलचस्प बात यह हुई कि अमेरिका ने ताकेशिता की इस नीति को अपनाया।
ताकेशिता ऐसे नेता कहे जा सकते हैं, जिन्होंने जापान की भलाई के ्लए कड़े और अलोकप्रिय कदम उठाए। उन्होंने अमेरिका से कड़ाई का बतार्व भी किया। उन्होंने जापान को आर्थिक ही नहीं, सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की और भी बढ़ाया।
ताकेशिता ६५ के हैं। ३० अत्तूâबर १९८७ को वे जापान के प्रधानमंत्री बने थे, क्योंकि उनकी पार्टी में पूâट थी, वे परदे के पीछे से नेतागिरी करने में माहिर थे, और राजनीति में दौलत का उपयोग वे अच्छी तरह से करना जानते थे।
ताकेशिता राजनीति में आने के पहले अंग्रेजी के अध्यापक थे। हालांकि वे धाराप्रवाह अंग्रेजी अब भी नहीं बोल पाते। ताकेशिता की उक्तियों में से तीन प्रमुख है। (१) गुस्सा होकर आप कुछ भी नहीं पाते हैं। दूसरे कुछ भी कहते हों - उसे जरूर सुनो - चाहे वह शुद्ध मूर्खता ही क्यों न हो। (२) जापानी मार्वेâट सिर्पâ जापानी लोगों के लिए है और (३) जो भी काम हाथ में लो, उसे हर हाल में पूरा करो। उसका श्रेय चाहे जिसको मिले, परवाह मत करो।
प्रकाश हिन्दुस्तानी