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Sunil-Shastriकांग्रेस छोड़कर जद में जाने वाले सुनील शास्त्री लालबहादुर शास्त्री के पुत्र और विश्वनाथ सिंह के ‘भाई’ समान है। वे लेखक, गायक और फिल्मी गीतकार भी है। उनके लिखे गीतों का रिकार्ड भी जारी हो चुका है।स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने भी कांग्रेस छोड़ दी। जनता दल में चले गए। कारण? वे कहते हैं कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है। जब वे इलाहाबाद लोकसभा चुनाव क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विश्वनाथ प्रताप सिंह के खिलाफ खड़े हुए थे, तब उन्हें यह बात शायद पता नहीं थी।

फिर जब उन्होंने उत्तरप्रदेश विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा, तब भी उन्हें पता नहीं था कि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है। जब कांग्रेस की सत्ता न दिल्ली में बची, न लखनऊ में, तब उन्हें ख्याल आया कि अरे ! कांग्रेस पार्टी में तो लोकतंत्र है ही नहीं। अब मेरा क्या भविष्य है यहां?

बहरलाल कहा जा रहा है कि उन्हें तो जनता दल में काफी पहले आ जाना चाहिए था। इसलिए कि वे वर्तमान कांग्रेसी नेता के खाके में फिट नहीं बैठते। ऐसा नहीं कि अयोग्यता और भ्रष्टाचार के आरोप उन पर नहीं लगे। लेकिन ऐसे आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। आरोप प्रत्योरोप तो राजनीति में लगाए ही जातेहै। पर कांग्रेसी होते हुए भी आरोपों के जवाब में मंत्री पद छोेड़कर उन्होंने अपनी पवित्रता का प्रभाव दे दिया था।

इलाहाबाद से लोकसभा का उपचुनाव लड़ते वक्त सुनील शास्त्री के प्रचार अभियान में कांग्रेस पार्टी का जिक्र पहले किया गया था और सुनील शास्त्री के नाम का उल्लेख बाद में। उस उपचुनाव में एक दूसरे उम्मीदवौर पर छीटावंâशी नहीं की गई थी।

कहते हैं विधानसभा चुनाव में हार के बाद दिल्ली में सुनील शास्त्री।

विश्वनाथप्रताप सिंह से मिले, तो श्री सिंह ने उनसे कहा था कि मैं नहीं चाहता था कि आप चुनाव हारते।

सुनील शास्त्री की मां श्रीमती ललिता शास्त्री विश्वनाथप्रताप सिंह को अपना बेटा मानती है। उस लिहाज से सुनील शास्त्री वि.प्र. के छोटे भाई हुए। सुनील शास्त्री कहते हैं कि हम दशरथ के चार पुत्रों की तरह है। लोग कहते हैं कि -

लालबहादुर शास्त्री की छवि अगर किसी में नजर आती है तो वह सुनील शास्त्री ही है। उनकी राजनीति भी लालबहादुर शास्त्री की शैली की है। उदार, सौम्य और सरल।

राजनीति में आने का सुनील शास्त्री का कोई इरादा नहीं था। वे बैंक मैनेजमेंट की पढ़ाई करके बैंक में अफसरी कर रहे थे। संयोग ही है कि वे राजनीति में आए और इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव में भी खड़े हुए जहां से उनके पिता और भाई हरेकृष्ण शास्त्री चुनाव जीते थे। अपने पिता की उजली छवि का फायदा उन्हें भी मिलता रहा है। उनका अपना दामन भी निर्मल है।

दो दिन बाद, १३ फरवरी को सुनील शास्त्री पूरे चालीस साल के हो जाएंगे। वे गोरखपुर से दो बार विधानसभा चुनाव जीतकर जा चुके हैं। दिसंबर १९८० से जुलाई १९८७ तक वे उत्तरप्रदेश में राज्यमंत्री और केबिनेट मंत्री रह चुके हैं। सुनील शास्त्री डेढ़ दर्जन से ज्यादा देश घून चुके हैं। वे शादीशुदा हैं और तीन बच्चों के पिता। उन्हें हारमोनियम बजाने का शौक है।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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