कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई नेै कहा कि सी.बी. आई. केन्द्र सरकार की राजनीतिक इकाई की तरह काम करने लगी है। उनकी बात से और लोग सहमत हो या न हों, अमेठी के राजा संजय सिंह तो होंगे ही। इस तथ्य की सच्चाई तब और भी उजागर होती है, जबकि सी.बी.आई. के अफसर अपनी जांच में तरक्की की रिपोर्ट अखबारवालों को दे रहे हैं।
संजय सिंह अपने छात्र जीवन में अच्छे एथलीट रहे है। उनकी सैयद मोदी और अमीता (कुलकर्णी) मोदी से घनिष्टता भी रही है। उनकी कई खिलाड़ियों से दोस्ती रही है और वे तो संजय गांधी के भी करीबी रहे है। यह संयोग ही है कि साल भर से वे अखबारों की खबर में नहीं, विवाद का विषय बन रहे है। कभी इस बात को लेकर कि परिवहन मंत्री पद से इस्तीपेâ का मसविदा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तैयार किया था, कभी यह कि वे सुनील शास्त्री के साथ वापस जा रहे है। पिछले दिनों उनके पिता रणंजय सिंह का निधन हो गया था और वे उनका श्राद्ध भी नहीं कर पाए थे कि सी.बी.आई. ने उन्हें आरोपों में घेर लिया।
संजय सिंह चाहे जो हों, वे मूर्ख और अक्षम व्यक्ति तो नहीं ही है। वे सम्पन्न है, पहुंचवाले है और महत्वाकांक्षी भी है। और जब से अपने काका ससुर विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ है, तबसे सरकार उनसे ज्यादा ही डर गई लगती है। वीरबहादुर सिंह हमेशा से उनसे खौफ खाते रहे और अंतत: उन्हें जाना पड़ा और जब से उन्होंने यह कहना शुरू किया है कि अमेठी अब कांग्रेस का गढ़ नहीं है, तब से वे कई नेताओं की आंख की किरकिरी भी हो गए है।
संजय सिंह ने अपनी राजनीतिक सीढ़ियां बहुत ही तेजी से चढ़ी है। २९ साल की उम्र में वे उत्तरप्रदेश जैसे विशाल प्रदेश में राज्यमंत्री और ३२ साल की उम्र में केबिनेट मंत्री बन गए। लोग कहते हैं कि अगर साल भर पहले, उत्तरप्रदेश में अगर दल बदल होता तो वे मुख्यमंत्री भी बन जाते। यों अब भी उन्हें भावी मुख्यमंत्री के रूप में कई लोग देखते हैं। केबिनेट मंत्री के रूप में वे पूरी तरह सफल थे। उन्होंने गांवों के लोगों को काफी राहत पहुंचाई। नई लक्जरी बसें चलवाई और राज्य सड़क परिवहन निगम को घाटे से उबार दिया।
संजय सिंह की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत उनकी चुनाव जीतने की कला कही जाती है। अगर वोटों को आधार माना जाए तो कहा जा सकता है कि वे राजीव गांधी से भी ज्यादा लोकप्रिय नेता है क्योंकि उन्हें राजीव गांधी को मिले वोटों से भी ज्यादा वोट पिछले चुनाव में मिले थे। इलाहाबाद के पिछले उपचुनाव में उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह की जीत के लिए अहम भूमिका निभाई थी।
संजय सिंह जिस राज परिवार के हैं, वह देशभक्ति और वफादारी के लिए मशहूर रहा है। आजादी के बाद यह वफादारी नेहरू परिवार को चली गई थी। पर अब वो नेहरू परिवार से अलग है और उनका सिद्धान्त विरोध करते है।
संजय सिंह ने हिन्दी साहित्य में पी.एच.डी. की है। पर वे अपने नाम के आगे डाक्टर नहीं लिखते है। वे सफल युवा कांग्रेसी रहे है और संजय गांधी के खासमखास भी। उनकी पैदाइश १३ नवंबर १९५३ की है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी