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kamal nath 20090817

कमलनाथ विदेशी बैंकों में खातों के मामले को लेकर सुर्खियों में है। वे दरअसल एक घाघ उद्योगपति और चतुर नेता है। उन्होंने दोनों का घालमेल कर रखा है और उद्योगपति होने का लाभ राजनीति में तथा राजनीतिज्ञ होने का लाभ उद्योगों में पा रहे हैं। एक लंबे अंतराल के बाद सांसद कमलनाथ का नाम फिर से सूर्खियों में आया है। पहले वे संजय गांधी के दोस्त के रूप में जाने जाते थे।

फिर वे मध्यप्रदेश में अर्जुनसिंह के खास सिंपलसालार समझे, जाने लगे और मोतीलाल वोरा के खिलाफ हो रही गतिविधियों में उनका नाम आया। अब वे उन कारणों से चर्चा में है, जिन कारणों से बच्चन-बंधु चर्चा में रहे थे।

कमलनाथ मध्यप्रदेश के उस क्षेत्र के नुमाइंदे हैं, जहां काफी तादाद में जंगल है, नदियां है, बिजली की पैदाइश के साधन है, फिर भी वह इलाका पिछड़ा हुआ है। छिंदवाड़ा के अस्पताल ऐसे हैं जहां न डाक्टर हैं, न नर्स,न दवाएं। जिेले में शिक्षकों के आठ सौ पद खाली पड़े है। सड़वेंâ अधूरी पड़ी है और सड़वेंâ बन भी गई है तो पुल-पुलियाएं नदारद। राज्य-सरकार ने गरीबों के लिए जो योजनाएं बनाई है, छिंदवाड़ा वाले कहते हैं कि हमें उनका लाभ नहीं मिल पा रहा।

कमलनाथ की असली ताकत उनके दून स्वूâल के दोस्त रहे हैं। संजय गांधी की मित्रता ही उनकी असली राजनीतिक दौलत थी। इमर्जेन्सी के पहले तक उनकी वंâपनी ई.एम.सी. लिमिटेड एक पिटी-पिटाई वंâपनी थी। पर इमर्जेन्सी में यह वंâपनी खूब फली-पूâली। इसे बहुत सरकारी ठेके मिले। दिसंबर १९७५ से जुलाई, १९७६ के बीच ही इस वंâपनी को चाक करोड़ ७३ लाख रूपए के ठेके दिए गए। बाद में ई.एम.सी. रंपनी को ठेके देने के मामले की जांच के लिए आयोग बमाया गया। इस आयोग की आखिरी बैठक, जनवरी, १९७८ में हुई थी। इसके बाद कुछ नहीं हुआ।

जब जनता पार्टी सत्ता में आई, तब कमलनाथ के बुरे दिन आ गए थे। पर उन्होंने स्थितियों का सही लाभ उठाया। वे ई.एम.सी. वंâपनी का काम कम और जनता पार्टी को पछाड़ने की कोशिशों में ज्यादा लग गए। कमलनाथ की डायरी का एक हिस्सा वरूण सेन गुप्त की किताब ‘लास्ट डेज आफ मौरारजी राज’ में छपा है। इसके मुताबिक चरणसिंह के साथ गोटी बिठाने में उनकी खासी भूमिका रही है। उन दिनों के सुरेश, राम, भजनलाल, बीजु पटनायक, राज नारायण, चरणसिंह और इंदिरा गांधी के बीच पुल बने हुए थे।

उन दिनों श्रीमती गांधी और राजीव गांधी का उन पर अटूट विश्वास था। कमलनाथ बड़ी कुशलता से उन दोनों के मन में यह बात बैठा चुके थे कि उन्हें न तो काजनीति से मतलब है, न धन दौलत से। न ही उनकी कोई राज नैतिक महत्वाकांक्षा है।

कमलनाथ की एक और खासियत है कि वे अपने हितों की खबरें अखबारों में छपवाने में कामयाब हो जाते हैं। खासकर कुछ राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिकों में। जब वुंâआ आइल डील का मामला प्रकाश में आया, तब उन्होंने अपने इस कौशल का परिचय दिया था।

कलकत्ता के रहने वाले कमलनाथ ने जब से राजनीति में काम शुरू किया है, तब से उन्होंने अपनी जीवनशैली ही बदल डाली है। या कम से कम उन्होंने यह दिखाने की कोशिश तो की ही है। सफारी पहनने वाले कमलनाथ खद्दर पहनने लगे है। पर चुनाव प्रचार के लिए सदा बढ़िया और महंगे साजो-सामान, जीपों के काफिले और महंगे कार्यकर्ताओं को महल देते रहे हैं।

कमलनाथ के बारे में बार-बार ये अफवाहें पैâलती रही है कि वे अब मंत्री बनने वाले हैं। पर अब तक उन्हें सौभाग्य नहीं मिला। हां, यह जरूर हुआ है कि सांसद होने के बावजूद उनके घर और दफ्तर पर छापे पड़े। खूद को इंदिरा गांधी का तीसरा एवं रहने वाले कमलनाथ अब फिर एक जांच के घेरे में है। देखें, वे इसमें से वैâसे निकल पाते है।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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