ऐसे माहौल में, जब शीर्ष पत्रकार सरकार से या विपक्ष से सीधे जुड़े हों, कम ही पत्रकार है जो व्यक्तियों और सरकारी पदां से नहीं, विचारों से जुड़े होते है। कुलदीप नैयर ऐसे ही है। खबर है कि उन्हें ब्रिटेन में भारत का उच्च युक्त बनाया जा रहा है।
अमेरिका में बिना किसी छात्रवृत्ति के जाकर पढ़ाई करनेवाले कुलदीप नैयर ने वकालत का पैशा अपनाया था। उन्होंने सोचा नहीं था कि वे अखबारनवीसी करेंगे। पत्रकारिता भी शुरू की, तो उर्दू अखबार के संपादक के रूप में। यह जानना भी प्रेरक है कि उन्होंने अमेरिका में अपनी पढ़ाई का खर्चा कॉलेज होस्टल में साफ-सफाई करके निकाला।
मुस्लिम लीग के उर्दू अखबार ‘अंजाम’ का सम्पादक बनकर उन्होंने अपनी पत्रकारिता शुरू की थी। ‘अंजाम’ का सम्पादक पद उन्हें मिला, इसकी भी अजब दास्तान है। मुस्लिम लीग के नेता चाहते थे कि उनके अखबार का सम्पादन एक जिम्मेदार हिन्दू करे। कुलदीप नैयर अपने आपको ‘जिम्मेदार आदमी’ तो मानते थे, पर ‘जिम्मेदार हिन्दू’ नहीं। मगर कुछ आर्थिक हालात ऐसे थे कि उन्होंने यह काम स्वीकार कर लिया।
‘अंजाम’ से उन्हें छह महीनों में ही हटना पड़ा। तब देश गुलाम था और मुस्लिम लीग दो देशों की विचारधारा का समर्थन करती थी। जबकि कुलदीप नैयर मानते थे कि हिन्दू या मुसलमान जाति नहीं, जाति है अमीर और गरीब। ‘अंजाम’ के मालिकाम भारत विभाजन के पक्ष में अखबार निकालना चाहते थे और नैयर एक देश का ख्वाब देखते थे।
जो आदमी ‘स्टेटसमैन’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ आदि अखबारों का सम्पादक रहा हो, जिसके स्तम्भ भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और ब्रिटेन के अलावा कई देशों में नियमित छपते हों और जो आदमी अपने विचारों से ज्यादा अपने ‘स्वूâप’ के कारण जाना जाता हो, जो आदमी इमर्जेन्सी में प्रेस की आजादी के लिए जेल गया हो, जो आदमी राज्यसभा के अधिकारों में वृद्धि के लिए लगातार संघर्ष करता रहा हो उसके उच्चायुक्त बनाए जाने की खबर बहुत चौंकानेवाली नहीं लगती। पर चूंकि वे पारम्परिक कागं्रेस विरोधी है, इसलिए उनकी नियुक्ति को एक पुरस्कार माना जा सकता है। हालांकि ऐसा मानना उनके साथ न्याय नहीं होगा।
इमर्जेन्सी और अफगानिस्तान के बारे में उनकी किताबें बहुचर्चित रही है। तीन साल पहले जब उन्होंने एक ब्रितानी अखबार में पाकिस्तान के एक परमाणु वैज्ञानिक डा. अब्दुल कादर खान का इंटरव्यू छपाया था कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम तैयार है, तो पाकिस्तान ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था।
कुलदीप नैयर के विरोधी भी कम नहीं है। कई लोग कहते हैं कि वे सरकारी पत्रकार है। इसलिए उन्हें कई सरकारी समितियों में रखा गया था। अब उनकी नियुक्ति ने तो इसकी पुष्टि कर दी है कि वे सरकारी पत्रकार है। पर कुलदीप नैयर कहते हैं ‘एक पत्रकार का काम है कि वह हमेशा समाज और सरकार को बताता रहे कि क्सा हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है। मैं हमेशा अपना काम करता रहा हूँ।’
सम्पादक पद से हटने के बाद जब उन्होंने अखबारों में अपना स्तम्भ थोक में छपवाना शुरू किया था उनका ‘सिंडिकेट कामयाब रहा और वे कहते थे’ स्वरोजगार में लगने के बाद मैं काफी फायदे में रहा।’
कुलदीप नैयर बुढ़ापे में भी बहुत सक्रिय है। अपनी उम्र वे नहीं बताते हैं किसी को। उनके बेटे भी नहीं जानते कि उनकी उम्र कितनी है! वे अपने आपको कोई विचारक नहीं मानते (और नहीं लोग मानते हैं)। पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी इच्छा उम्मीदवारी की थी, पर लोगों की सलाह और हार के भय से वे खड़े नहीं हुए। पांच साल पहले वे उपमहाद्वीप स्तर की एक पत्रिका निकालने के मुड में थे। वह पत्रिका वे अब तक निकाल नहीं पाए।
नए पत्रकारों से वे कहते हैं कि उन्हें खूब और हर तरह की सामग्री पढ़नी चाहिए। पत्रकारों को ईश्वर पर नहीं, इन्सान की महानता पर विश्वास रखना चाहिए।
प्रकाश हिन्दुस्तानी