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vkn-narasimhanगोयनका प्रतिष्ठान का पहला पत्रकारिता पुरस्कार वी.के. नरसिंहन नामक ऐसे पत्रकार को मिला है, जिनकी दिलचस्पी अपने बारे में बताने में कभी नहीं रही। उन्होंने राजनीति के बारे में ही ज्यादा लिखा, लेकिन कभी राजनीति की नहीं।बम्बई में ‘इंडियन एक्यप्रेस’ के उनके पुराने साथी आज भी उन्हें ऐसे आदमी सम्पादकीय तो लिख सकते हैं, लेकिन जिन्हें प्रशासन का काम बिल्कुल नहीं आता। जो विजयी है, लेकिन सिद्धान्तप्रिय भी, जो सही बात सोचते है तो उसे लिखने का माद्दा भी रखते हैं। जो राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ भारतीय दर्शन और संगीत में भी रूचि रखते हैं।

जो अपने स्वास्थ्य और परिवार के प्रति सतर्वâ है। जो रोजमर्रा में तो बहुत आधुनिक है, लेकिन धर्म के प्रति अंधविश्वासी कहे जाने की हद तक आस्थावान भी है। जिन्हें सत्य सांई बाबा व्यक्तिगत तौर पर जानते है।

राजनीति की तरह ही आर्थिक मामलों पर भी उनका लेखन संतुलित रहा। व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से लगभग मुक्त होने के कारण उनके लेखों और अग्रलेखों को खूब पसन्द किया गया। अपनी खुशमिजाजी और मित्रवत व्यवहार के कारण पत्रकार और गैरपत्रकार सहकर्मियों में वे लोकप्रिय रहे हैं। बातें करना उनका खास शगल रहा है और नए से नए पत्रकार या अजनबी से भी वे घंटों बतियाते रहते थे।

पत्रकार के रूप में अपने ‘केरियर’ की शुरूआत उन्होंने १९३२ में की थी। शुरू में वे ‘हिन्दू’ मैं उपसम्पादक थे। १९६७ में जब वे वहां से हटे, तब सम्पादक के रूप में उनका नाम नहीं छपता था, लेकिन सम्पादक का लगभग सारा काम वे ही करते थे। तभी ‘हिन्दू’ के प्रबंधकों पर अखबार को एकदम परिवर्तित करने का जुनुन सवार हुआ। श्री के. बलरामन ‘हिन्दू’ के वाशिगंटन संवाददाता थे। प्रबंधकों ने उन्हें वहां से बुलवा लिया। श्री नरसिंहन को लगा कि वे शायद श्री बलरामन के साथ तालमेल नहीं बिठा सवेंâगे। उन्होने हट जाना ही बेहतर समझा। थोड़े ही दिन बाद वे वहां से रिटायर हुए, तो प्रबंधकों ने कहा कि वे ‘हिन्दू’ में ही बने रहे। लेकिन श्री नरसिंहन बम्बई आकर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के स्थानीय सम्पादक बन गए। साथ ही उन्होंने ‘फायनेंशियल-एक्सप्रेस’ का कामकाज भी संभाला।

इमर्जेन्सी में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ समूह के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में सरकार ने अपने मनपसंद आदमी भर दिये थे और उन्होंने बहुमत से पेâसला किया कि श्री एस. मूलगांवकर को प्रधान सम्पादक के पद से हटा दिया जाए। सवाल उठा कि नया प्रधान सम्पादक कौन हो? श्री रामनाथ गोयनका ने श्री बी.के. नरसिंहन का नाम प्रस्तावित किया, जिसे सबने मंजूर कर लिया। श्री नरसिंहन ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ ‘फायनेंशियल एक्सप्रेस’ के मुख्य सम्पादक बन गए।

तब इमर्जेन्सी थी और प्रेस की जुबान पर ताले थे। लेकिन श्री नरसिंहन का लेखन दबावों से मुक्त था। उन्होंने श्रीमती गांधी की निन्दा तो नहीं की, लेकिन उनकी नीतियों की कड़ी निन्दा की। वे एक ‘सायडूलेट बम’ सिद्ध हुए। कहा जाता है कि सरकार का आदेश था कि कोई भी सेंसर अधिकारी श्री नरसिंहन के शब्दों को सेंसर नहीं करेगा। पता नहीं यह उनके प्रति सरकार का सदभाव था या यह विश्वास कि वे गलत बातें लिखेंगे ही नहीं। लेकिन जो भी हो यह एक ‘अनूठी सुविधा’ थी, जो उन्हें मिली हुई थी। उन्होंने इसका उपयोग किया और भयाक्रान्त होकर आोरों की तरह घुटने नहीं टेके। तब वी.बी.सी. और ‘गार्जियन’ उनके अग्रलेखों का हवाला देंते थे।

इमर्जेन्सी खत्म हुई और जो जनता सरकार आई उसे आशा थी कि श्री नरसिंहन उनकी नीतियों को पूरा समर्थन देंगे। उन्हें यह जानकर पीड़ा हुई कि वे उनकी गलत नीतियों की भी वैसा ही निन्दा करते हैं, जैसी कि पिछली सरकार की गलत नीतियों की करते थे। लेकिन तब केन्द्र में ऐसी सरकार थी, जिसे हयाए गए सम्पादक श्री एस. मुलगांवकर से कोई शिकवा नहीं था।

बाद में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘फायनेंशियल एक्सप्रेस’ के पाठकों ने पाया कि उनके अखबार में प्रधान सम्पादक के नाम पर श्री वी.के. नरुसंहन की जगह फिर श्री एस. मुलगांवकर का नाम छपने लगा है।

अन्य पत्र-पत्रिकाओं में इसे लेकर कई बातें छपी। यह भी छपा कि श्री नरसिंहन को हटा दिया गया हेै, क्योंकि इन्दिरा सरकार का पतन हो गया है। लेकिन ‘एक्सप्रेस’ के प्रबंधकों ने ‘खुलासा’ किया कि श्री नरसिंहन खुद हटे है क्योंकि वे श्री एस. मुलगांवकर की बहुत इज्जत करते हैं और इसी शर्त पर उन्हें प्रधान सम्पादक बनाया गया था कि इमर्जेन्सी खत्म होने पर श्री मुलगांवकर फिर प्रधान सम्पादक बनेंगे। दरअसल वे ‘समझौता-सम्पादक’ थे।

‘इंडियन एक्सप्रेस’ से मुक्त होकर श्री नरसिंहन ने बंगलूर में ‘डेक्कन हेराल्ड’ में वाहेसियत सम्पादक का काम शुरू किया। उनके बेटे वी.एम. नारायणन चण्डीगढ़ की ‘ट्रिप्यून’ छोड़कर बैंगलूर के ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में स्थानीय सम्पादक बन गये। बाद में श्री नरसिंहन ने ‘डेक्कन हेराल्ड’ छोड़ दिया और सत्यसांई बाबा के पुट्टपती स्थित आश्रम में जाकर रहने लगे। आजकल वे उसी का कामकाज संभालते हैं। उनके बेटे वापस चण्डीगढ़ लोट गए हैं।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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