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devilalसमाजवादी जनता दल के नेता चौधरी देवी लाल विपक्ष की राजनीति के खलीफा है। वे जानते है कि दूल्हे का दोस्त बनना ज्यादा अच्छा होता है, दूल्हा बनना नहीं। वे यह भी जानते है कि आज के थापे वंâडे आज नहीं जलाए जा सकते। इसी कारण से उन्होंने समाजवादी जनता दल के लिए दूरदर्शी योजना बनाई है। हो सकता है कि उनके इरादे पूरी तरह कामयाब न हों, पर गेहूँ को पीसने से आटा न बने, दलिया तो बन ही जाएगा।

यों देवी लाल राजनीति में किसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे है, जो नेहरू परिवार से शुरू हुई है और शेख अब्दुल्ला, एन.टी.रामराव, कमलापति त्रिपाठी वसंतराव पाटील आदि जिसका निर्वाह कर रहे हैं। यों उन लोगों ने तो जिस को खानदान तक ही सीमित रखा है, देवी लाल ने उसे अपने समधियों तक आगे बढ़ाया। ओमप्रकाश चौटाला, प्रताप सिंह और रणजीत सिंह जैसे पाँच बेटों के पिता, लेख राम के पुत्र और आशा राम के पोते और तेजा राम के पड़पौते देवी लाल का दावा है कि नेहरू खानदान के बजाए हमारे खानदान न ज्यादा राजनीति की है। वे आँकड़े देकर बताते है कि मेरे खानदान के लोगों ने आजादी के बाद कुलजमा २६ चुनाव लड़े है, जबकि नेहरू खानदान की पाँच पीढ़ियों ने मात्र १६ चुनाव ही लड़े।

 

पर, देवी लाल कहते हैं कि हरियाणा की राजनीति में, और खासकर जाटों में तो सभी एक-दूसरे के रिश्तेदार होते हैं। दूर के रिश्ते में तो भजनलाल भी हमारे ही आदमी है। और अगर मैंने अपनेवालों के लिए कुछ किया तो इसमें गलत क्या है? मैं आखिर उन्हीं पर तो विश्वास करूंगा, जो मेरे अपने है। भजनलाल, बंशीलाल के लोगों को मैं क्यों महत्व दूँगा?

यों बंशीलाल को राजनीति में लाने वाले देवी लाल ही है। बंशी लाल बस - वंâडक्टरी किया करते थे कि देवी लाल की नजर उन पर पड़ी। बंशी लाल पढ़े-लिखे थे, सौ देवी लाल ने उन्हें अपनी पार्टी (तब वे कांग्रेस में थे) की मंडल शाखा का अध्यक्ष बनवा दिया। वैसे देवी लाल का कहना तो यह है कि कांग्रेस ने मेरा महत्व कम करने के लिए बंशी लाल, रामनिवास मिर्घा, बलराम जाखड़ और नटवर सिंह जैसे जाट नेताओं को आगे बढ़ाया। पर इनमें से कोई भी देवी लाल को बराबरी की टक्कर नहीं दे पाया।

यों देवी लाल अपने आप में किसी करिश्मे से कम नहीं। पिछले साल उन्होंने जिस लहर में चुनाव जीता, वह कोई छोटी बात नहीं थी। भले ही लोग यह कहें कि उन्होंने किसानों की कर्ज माफी की घोषणा के कारण चुनाव जीता है, पर इससे उनका महत्व कम नहीं होता। विपक्षी एकता के लिए उनके प्रयासों का रंग शायद धीरे-धीरे उभरे, लेकिन वे काफी अरसे से लोक दल और जनता पार्टी के विलय की कोशिश कर रहे थे। १९८४ के मध्य से ही। उन्होंने इस बारे में कर्पूरी ठाकुर और वुंâभाराम आर्य से बातचीत भी कर ली थी, लेकिन ‘विपक्ष में छुपे कांग्रेसी एजेंटों’ के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। दिल्ली मैं भी उनकी बात का कोई कम वजन नहीं है। जनता पार्टी के शासन में मोरारजी देसाई और चौधरी चरणसिंह के बीच समझौता कराने में उनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है।

लोग कहते हैं कि देवी लाल हरियाणा के एन.टी.आर. है। बस। लेकिन घटनाएं बताती है कि वे इससे भी ज्यादा है। यह बात दीगर है कि पिछले चुनाव में उन्होंने एन.टी.आर.के ‘तॉचैतन्य रथम’ की तरह ‘विजय रथम’ का स्तिेमाल किया था। बात यह है कि हरियाणा में तो हर कोई नेता है और ‘आया राम गया राम’ उनका ट्रेडमार्वâ। ऐसी हालत में राजनीति ज्यादा कठिन हो जाती है। ऊपर से पंजाब की समस्या।

२५ सितम्बर १९१४ को हरियाणा के सिरसा जिले के चौटाला गाहव के निकट एक खेड़े में उनकी पैदाइश हुई। उन्होंने कभी कालेज में पढ़ाई का मुंह नहीं देखा और आजादी की लड़ाई, जमीदारी उन्मूलन आदि के काम में अपनी जवानी को लगाया। १९५२ में वे पहली बार विधायक बने थे। १९५६ में वैâरों के मंत्रिमंडल में उप मंत्री बने। १९६७ में वे चौधरी चरणसिंह के करीब आए, जब भारतीय क्रान्ति दल का गठन हुआ। जनता पार्टी बनाने में भी उनका काफी योगदान था। चरणसिंह के जन्म दिवस पर रैली आयोजित करने में उनकी भी भूमिका रही है, पर ऐसा भी वक्त आया कि उनकी लोकदल में ही विरोध झेलना पड़ा।

देवी लाल बहुत ही स्पष्ट वक्ता है। वे जो कहते है, आमतौर पर करते भी है। वे बंशीलाल की तरह सख्त नहीं है, इसलिए नौकरशाही उनसे संतुष्ट रहती है। वे २३ अंक को शुभ मानते हैं। इसलिए कई प्रमुख काम तैईस तारीख को करते हैं। उन्हें जाट नेता कहलाना पसंद नहीं। वे कहते हैं कि मैं तो किसान नेता हूं। वे हाई ब्लड प्रेशर के मरीज है। लेकिन ऐसी साफ बातें करते हैं कि दूसरों का ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है। ए.आई.सी.सी. को वे आल इंडिया करप्शन कारर्पोरेशन कहते हैं।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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