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S swamy

कहा जाता है कि सुब्रह्ममण्यम स्वामी की लम्बाई से भी ज्यादा लम्बी उनकी जुबान है। वे जिस पार्टी में रहे, उसी के नेताओं को गाली देते रहे। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोपेâसर रह चुके स्वामी ने पिछले माह एक बयान में कहा था कि मैं उतना बेववूâफ नहीं हूं, जितना नजर आता हूं।

कहा जीता है कि खुद सुब्रह्ममण्यम स्वामी की लम्बाई जितनी है, उनकी जुबान की लम्बाई उससे भी एक फटि ज्यादा है। लोकसभा के अध्यक्ष से माफी मांगने के पहले भी वे ऐसी कई हरकतें कर चुके है, जब उनकी जुबान की चर्चा हुई। मसलन २१ मार्च १९८० को इस्लामाबाद में वे एक प्रेस कांप्रेâन्स में कह आए कि पाकिस्तान की सैन्य तैयारियां उसकी रक्षा के लिहाज से उचित ही है। जनसंघ में रहते हुए वे अटलबिहारी वाजपेयी को ‘कापुरूष’ और ‘दम्भी’ कह चुके है। कच्चातिऊ द्वीप को श्रीलंका को सौंपे जाने के विरोध में वे बयान दे चुके है। जब मोरारजी भाई पर अमेरिकी पत्रकार सैमूर हर्श ने झूठे आरोप लगाए थे तब स्वामी कह रहे थे कि मैं अमेरिका जाकर सी.आई.ए. और सैमूर हर्श पर मुकदमा दायर करूंगा (जो उन्होंने कभी नहीं किया, मुकदमा दायर किया था महेन्द्र मेहता नामक भारतीय मूल के अमेरिकी वकील ने) कुछ साल पहले बम्बई की प्रेस कांप्रेâन्स में एक महिला पत्रकार ने सी.आई.ए. से उनके रिश्ते के बारे में पूछा तब तो वे बौखलाकर उस पत्रकार को ही के.जी.बी. का एजेंट बताने लगे थे।

 

कभी उन्होंने नई पार्टी बनाने की बात कही, तो कभी अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ प्रेस में बयान दिए। उन्हें ‘अखबारी लीडर’ शायद इसीलिए कहा जाता है। उन्होंने जनसंघ में रहते हुए वाजपेयी के खिलाफ, जनता पार्टी में रहते हुए चन्द्रशेखर के खिलाफ और जनमोर्चा में रहते हुए विश्वनाथ प्रचाप सिंह के विलाफ बयान दिए हैं। रामकृष्ण हेगड़े के खिलाफ तो उन्होंने कई पत्रकार वार्ता की और हेगड़े के नाम को भूमि घोटालों में, कभी अरककांड में और कभी विदेशी बैंक में खाते के नाम पर उछाला।

चार अगस्त १९८९ को दिल्ली में विपक्षी नेताओं की बैठक में उन्होंने माकपा के एन.ई. बलराम को ऊलजलूल कुछ कह दिया और हालत यह हो गई कि बलराम हाथ में चप्पल लेकर उन्हें मारने दौड़े। खैर, स्वामी चप्पल खाने से तो बच गए पर यह खबर अखबारों में छप गई। १९८४ में वे जनता पार्टी संसदीय दल के उपनेता थे और चन्द्रशेखर को गालियां देने और अभद्रता के इल्जाम में उपनेता पद से हटाए गए थे। जनता से जुड़े किसी मुद्दे पर अगर स्वामी सड़क पर आ जाए तो उनके पीछे शायद सौ कार्यकर्ता भी नहीं होंगे, लेकिन एक हजार पत्रकार जरूर होंगे।

कभी-कभी वे सच्ची बातें भी कहते है। वी.पी.सिंह की सरकार के बारे में उन्होंने कहा था कि यह सरकार साल भर भी नहीं चल पाएगी। बात सच हुई। दस साल पहले उन्होंने कहा था कि मैं एक दशक बाद प्रधानमंत्री बन जाऊंगा, वे ााज प्रधानमंत्री तो नहीं, पर केबिनेट स्तर के मंत्री तो है ही और चन्द्रशेखर और राजीव गांधी के बीच वार्ता में उन्होंने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गलती उन्होंने की मंत्री बनने के बाद बी.बी.सी. को इंटरव्यू देकर। उन्होंने कह दिया कि बिहार में लालू यादव की सरकार को तो बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। जनता दल के नेता पहुंच गए थे राष्ट्रपति के पास, यह आरोप लेकर कि मंत्री महोदय मर्यादा का पालन नहीं कर रहे है, अत: उन्हें बर्खास्त किया जाए। यह मामला भी निपटा ही था कि वे लोकसभा के अध्यक्ष को कथित धमकी दे आए। १० दिसम्बर १९९० को दिल्ली की पत्रकार वार्ता में उन्होंने यह भी कहा था कि मैं उतना बेववूâफ नहीं हूं। जितना नजर आता हूं। यह बात कितनी सही है, यह तो वे ही जाने।

स्वामी को लोग कई रूप में जानते हैं। कुछ लोग उन्हें बड़बोला समझते है। कुछ मानते है कि वे जीनियस है। कुछ की राय में वे वैसे ही नेता है जैसे विद्याचरण शुक्ल या देवीलाल है। पर उनकी छवि को चमकाने में जिन बातों का योगदान है, उनमें इमर्जेन्सी में उनका विदेश प्रस्थान और वहां पर इमर्जेन्सी के खिलाफ अभियान चलाना मुख्य है। वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ाते थे। एक अर्थशास्त्र के रूप में उनकी छवि दक्षिणपंथी है।

सुब्रह्ममण्यम स्वामी भारत के पहले नेता है जो २२ साल के अंतराल के बाद चीन गए। वे इस्राईल की यात्रा भी कर चुके हैं। मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों में भी वे थे। उन्होंने अमेरिका में ‘प्रेâन्डस ऑफ इंडिया सोसायटी इंटरनेशनल’ नामक संस्था के गठन में भी भूमिका निभाई थी।

१९३९ में मद्रास में जन्मे स्वामी की पढ़ाई दिल्ली में हुई। हार्वर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि पाई और १९६९ में हार्वर्ड में अर्थशास्त्र पढ़ाने लगे। उन्होंने भूमि-सुधार और भारत तथा चीन के विकास पर किताबें भी लिखी है। अभी वे राज्यसभा के सदस्य है। चीन के विकास से वे बहुत प्रभावित है और उसे ही भारतीय परिप्रेक्ष्य में आदर्श मानते हैं। पिछले साल चीन को निर्यात किए गए चांवल के एक बड़े सौदे में उनका हाथ बताया जाता है।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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