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पोथीराम उपाध्याय (द्वारकापीठ के शंकराचार्य) को कांग्रेस का नजदीकी माना जाता है। मीनाक्षीपुरम में धर्मान्तरण के खिलाफ जोरदार मुहीम छेड़ने वाले शंकराचार्य ही थे। अब वे रामजन्मभूमि के इसलान्यास की नई पहल के कारण विवाद का केन्द्र बने हैं और लगता है कि उनकी जन्मपत्रिका में यही सब कुछ लिखा है।

हिन्दुओं के शंकराचार्य की तुलना वैâथोलिकों के पोप से की जाती है। शंकराचार्य चार होते है-बद्री पीठ, द्वारका पीठ, शूंगेरी और पुरी के। शंकराचार्य बनने के लिए भी कोई कम पापड़ नहीं बेलने पड़ते और इसके बावजूद बनना-न-बनना जन्मपत्रिका पर निर्भर रहता है क्योंकि हर भावी शंकराचार्य की जन्मपत्रिका जांचने-परखने के बाद ही मौका दिया जाता है।

 

द्वारकापीठ के शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती की जन्मपत्रिका में शायद यह भी लिखा था कि वे विवादों में पड़ते रहेंगे। वे धर्माचार्य और नीतिचार्ज के साथ-साथ राजनीतिचार्य भी माने जाते है। राम जन्मभूमि के मामले में उनकी नई पहल और पिले दिनों हुई गिरफ्तारी ने उन्हें और ही रूप में प्रस्तुत किया है। यों भी उन्हें कांग्रेस के निकट माना जाता रहा है।

स्वरूपानंदजी है तो द्वारकापीठ के शंकराचार्य. लेकिन अपना ज्यादातर वक्त बिताते है मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में। वे यहीं पैदा हुए थे। और शायद इसी कारण उन्हें मध्यप्रदेश से ज्यादा ही लगाव है। मध्यप्रदेश में तो यह भी माना जाता है कि जबलपुर, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर और सिवनी में कांग्रेस के कई टिकटों के आवंटन में उनकी मुख्य भूमिका रही है।

स्वरूपानंदजी ने मध्यप्रदेश में एक निजी लाटरी के ड्रा में भी सहयोग दिया था, जिसके पुरस्कार कभी वितरित ही नहीं हुए। लोग तो यह भी कहते हैं कि स्वामी स्वरूपानंदजी की राजीव गांधी पर उच्च प्रभाव है क्योंकि स्वरूपानंदजी अत्यंत आधुनिक विचार रखते है। वे कार चलाना जानते हैं। वे अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण का समर्थन करते हैं। पिछले दिनों नर्मदा के किनारे बसे तीर्थस्थल ओंकारेश्वर में हुए एक धार्मिक कार्यक्रम में राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण और उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने भी उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था। स्वरूपानंदजी रामराज्य पार्टी के स्वामी करपात्रीजी के भी काफी करीब थे।

जब तमिलनाडू के मीनाक्षीपुरम में हरिजनों का धर्मांतरण कराया गया था, तब उसके खिलाफ सबसे जोरदार आवाज उठाने वाले स्वामी स्वरूपानंदजी ही थे। द्वारकापीठ के शंकराचार्य बनने से पहले वे बद्री पीठ के प्रमुख थे और तब उन्होंने बद्रीनाथ में नया मठ बनवाया था, धर्मशालाएं बनवाई थी। उन्होंने मध्यप्रदेश के गोटेगांव में एक विशाल आश्रम और संस्कृत विद्यालय खुलवाया है, जहां सैकड़ों विद्यार्थी संस्कृत और वेदों का अध्ययन करते हैं। उन्होंने अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मंडल की स्थापना की है और बिहार के सिंहभूम जिले में विश्व कल्याण आश्रम खोला है। बिहार में उनकी संस्थाएं कई समाजसेवा की गतिविधियां संचालित करती है, जिनमें स्वूâल और अस्पताल का संचालन शामिल है। वे कहते हैं कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, यह अत्यंत गर्व की बात है, लेकिन धर्म के नाम पर किसी भी वर्ग के लोगों को नाजायाज काम करने तथा मानवों और पशुओं पर अत्याचार करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए।

स्वरूपानंदजी के नजदीकी लोग उन्हें दयालु, जिज्ञासु, परम ज्ञानी, पूर्वाग्रह रहित और बच्चों जैसा मासूम बताते हैं। बद्री और द्वारका दोनों पीठ का शंकराचार्य एक साथ होने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है। जब वे द्वारकापीठ के शंकराचार्य बने थे, तब उन्हें न्यायालय में चुनौैती भी दी गई थी कि वे एक पीठ के शंकराचार्य तो है ही, दो के एक साथ वैâसे बन सकते हैं? पर कोर्ट ने बनाया। वे बने।

स्वरूपानंदजी का जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिधोरी में हुआ था। वे ६६ साल के हैं। स्वरूपानंदजी ने किशोरावस्था में आजादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। बचपन से ही उनकी रूुची धर्म में थी और उनके पिता धनपति उपाध्याय ने उन्हें इस दिशा में प्रेरित किया। स्वरूपानंदजी का छुटपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

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