प्रधानमंत्री कई मामलों में अपने विचार बदल रहे हैं। ओर अब शायद सलाहकार भी। अब अरूण नेहरू वे अरूण नेहरू नहीं है, जो कांग्रेस में दूसरे नंबर के नेता थे। अब अरूण नेहरू के अधिकार काफी कम हो गए हैं और प्रधानमंत्री उन्हें वैसा महत्व नहीं दे रहे है, जैसा पहले दिया करते थे।
अरूण नेहरू पर आरोप यह भी है कि उन्होंने कांग्रेस के भीतर गुट बनाने की कोशिश की। उन्होंने कांग्रेस के भीतर अर्जुन सिंह और अरूण सिंह के अधिकारों में कटौती करवाई। वीर बहादुर सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भजनलाल को आर्शीवाद दिया।
अरूण नेहरू अत्यंत महत्वाकांक्षी और आक्रामक नेता है। निर्णय लेने की उनमें अदभूत क्षमता है। राजनीति में आने के पहले वे कलकत्ता की जानसन एंड निकल्सन वंâपनी में ऊंचे ओहदे पर थे। १९८० के चुनाव में इंदिरा गांधी ने उन्हें रायबरेली से चुनाव में खड़ा होने को कहा। वे वहां से चुनाव में खड़े हुए और इंदिरा गांधी के पुण्य प्रताप से जात गए। संजय गांधी की मौत के बाद अरूण नेहरू का रूतबा बढ़ गया। वे इंदिरा गांधी के विश्वस्त थे, नेहरू खानदान के चिराग होने का भी उन्हें लाभ मिला। इंदिरा गांधी का उन पर अंधविश्वास था। हालत यह थी कि कोई भी सांसद यामंत्री अरूण नेहरू की इजाजत के बगैर इंदिरा गांधी से मिल नहीं सकता था।
अरूण नेहरू ने कलकत्ता में हुए प्रबंधकीय अनुभवों का इस्तेमाल पार्टी के लिए किया। वे वंâप्यूटर का संचालन करना राजीव गांधी से पहले से जानते हैं। उन्होंने कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की गतिविधियों का हिसाब रखना शुरू किया। इस चिठ्ठे को उन्होंने चुनाव के टिकट बांटते वक्त खोला।१९८४ के लोकसभा और १९८५ के विधानसभा चुनाव के टिकटों का बंटवारा करने वाले वे प्रमुख व्यक्ति थे। कहा जाता है कि उन्हें कांग्रेस के सौ से ज्यादा सांसदों की अनन्य भक्ति प्राप्त है।
श्रीमती गांधी की हत्या के बाद अरूण नेहरू ने ही राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की पहल तुरत-पुâरत की। राजीव के प्रधानमंत्री बनने के बाद अरूण नेहरू को पार्टी का महासचिव बना दिया गया। मंत्री के रूप में वे सफल साबित हुए। जब विद्युत विभाग उनके पास था, तब उन्होंने दिल्ली बिजली प्रीधिकरण की खस्ता हालत में सुधार किया। दो महीने पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। वे अभी तक पूर्ण स्वस्थ नहीं हो पाए है।
अरूण नेैहरू कहते हैं कि राजनीति मेरे खून में है। उनका मानना है कि चाहे व्यवसाय प्रबंध हो या राजनीति, सुनियोजन की सख्त जरूरत हर जगह है।
२० साल की उम्र में वे कलकत्ता की एक बीमा ब्रिटिश में मार्वेâटिंग ट्रेनी बनकर भर्ती हुए थे। तब उनकी तनख्वाह ४१५ रूपए थी। आठ साल बाद वे अपनी योग्यता के कारण विक्रय प्रबंधक बन गए। उन्होंने बूट पालिश और रंग रोगन बनाने वाली इस वंâपनी को घाटे से उबारा। नौकरी के तेरह साल में वे वंâपनी के एम.डी. बन गए।
लखनऊ के लॉ मार्टीनियर स्वूâल और क्रिश्चियन कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की। बचपन में ही पिता का निधन होने के कारण वे बी.ए. करने के बाद २० साल की उम्र में नौकरी करने कलकत्ता चले गए। वे वैâप्टन आनंद नेहरू के पुत्र श्यामलाल नेहरू के पोते और मोतीलाल नेहरू के बड़े भाई नंदलाल नेहरू के पड़पोते हैं। उनकी मां स्वूâल में पढ़ाती थी।
अरूण नेहरू एकांतप्रिय कम बोलनेवाले, कमजोर वक्ता, अच्छी स्मरण शक्तिवाले, गजलों के शौकीन और क्रिकेट तथा टेबिल टेनिस खेलने वाले है। उनकी उम्र ४१ साल और वजन १०४ किलो है। वे आमतौर पर छुट्टी नहीं मानते। जब पुâरसत मिलती है घर में रहना पसंद करते हैं। वे दो बेटियों के पिता है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी