जनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर, सपनों में जीने वाले ऐसे नेता है, जिनके पांव जमीन पर भी है। वे कल्पनाशील, मृदुभाषी अच्छे वक्ता और परिश्रमी नेता है। वे आदर्शवादी है और अपनी सीमाओं से वाकिफ है। जनता पार्टी के भीतर और बाहर उनके दोस्त बहुत कम है। एक जमाना था, जब वे धूमकेतू थे और इंदिरा गांधी उनकी चमक से परेशान थी।
लेकिन आज चन्द्रशेखर बचे है, ठाकुरवादी समझौतों के लिए मजबूर नेता। वे इतने टुलमुल है कि यह नहीं बता सकते कि वे किसके साथ है - तूफान के या तिनके के, लहरों के या पतवार के। आज वेै तूफान के भी साथ है, तिनके के भी। लहरों के भी साथ हैं, पचवार के भी। निश्चित ही वे यह तो जानते होंगे कि जो सबके साथ होता है, वह दरअसल किसी कोâ साथ नहीं होता और वह अपने आपको ही अंधेरी गुफाओं में ले जाता है। सबको साथ लेकर चलने की मजदूरी में वे यह भी नहीं कह सकते कि सही बात क्या है। वे अपने लोगों के यह नहीं कह सकते कि मुस्लिम महिला विधेयक का समर्थन करे या विरोध।
याद कीजिए अक्टूबर 1971 में शिमला के कांग्रेस आपरेशन वाले युवा तुर्वâ चन्द्रशेखर को, जिसने इंदिरा गांधी के मंसूबों के खिलाफ कांग्रेस की केन्द्रीय चुनाव समिति का चुनाव लड़ा और जीता था। याद तो कीजिए उस चन्द्रशेखर को, जो कांग्रेस में होते हुए 16 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी पर उनके साथ-साथ गांधी शांति प्रतिष्ठान से पुलिस थाने तक गया था और अपनी गिरफ्तारी दी थी। याद कीजिए उस चन्द्रशेखर को, जिसने इमर्जेन्सी के खात्मे और जनता पार्टी गठबंधन की सरकार बनन के तत्काल बाद पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए जे.पी. से इजाजत मांगी थी।
आज चन्द्रशेखर खुद स्वीकार करते है कि वे कोई आदर्शवादी गांधीवादी नेता नहीं है। उन्हें सूर्यदेव सिंह की दोस्ती पर कोई एतराज नहीं होता और पंचतारा होटलों में रुकने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। वे सम्पर्वâ भाषा के नाम पर अंग्रेजी का अधिकाधिक प्रयोग करते हैं और अपनी पार्टी में ठाकुरों और मालदार लोगों को तवज्जो देते है।
कभी संसद में चन्द्रशेखर और उनकी मंडली के मोहन धारिया, कृष्णकांत, रामधन काकांग्रेस में डंका बजता था। जब चन्द्रशेखर संसद में बोलते थे, तो दूसरा खेमों में चुप्पी छा जाती थी। इंदिरा गांधी की सरकार के कई क्रांतिकारी पैâसले चन्द्रशेखर के कारण हुए है। प्रीवीयर्स की समाप्ति का श्रेय चन्द्रशेखर को ही है। वरना कांग्रेसी तो चाहते थे कि राजा-महाराजाओं की सुविधाएं केवल थोड़ी सी कम कर दी जाएन। चन्द्रशेखर फिलहाल लोकसभा सदस्य नहीं है, यह पूरे देश का दुर्भाग्य है।
चन्द्रशेखर छात्र जीवन से ही राजनीति में है। वे शुरू में सोशलिस्ट पार्टी में काम करते थे, जो बाद में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी। अशोक मेहता की संसर्ग उन्हें कांग्रेस में लाया। 1961 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए संसद में अपने भाषण तथा कांग्रेस कार्यसमिति तथा केन्द्रीय चुनाव समिति के चुनाव में इंदिरा गांधी की आंखों में खटकने लगे थे। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की उनका समर्थन था, मगर कांग्रेस से उनका साथ तब छूटा, जब उन्हें इमर्जेन्सी में जेल में बन्द कर दिया गया। जब इमर्जेन्सी खत्म होने को थी, तब इंदिरा गांधी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ एक अभियान चला रखा था और वे चाहती थी कि चन्द्रशेखर इसमें उनका साथ दें। इसी इरादे से इंदिरा गांधी ने पुराने प्रसोपाई नेता जसवंत मेहता को उनके पास जेल में मिलने के लिए भेजा था। मगर चन्द्रशेैखर को वह मना नहीं सके।
जब जनता पार्टी बनी, तब उनका अपना कोई शक्तिशाली गुट नहीं था। वे जे.पी. के विश्वास पात्र थे और जनता में उनकी छवि थी। वे जनता पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए और इन्हीं को अध्यक्षता वाली जनता पार्टी ने कांग्रेस की सत्ता पलटी। चन्द्रशेखर आज इस बात को कबुल करते है कि जनता पार्टी अध्यक्ष के रूप में उन्हें कई ऐसे लोगों का साथ देना पड़ा, जिनकी वे पहले छिछालेदार किया करते थे और अध्यक्ष के रूप में वे जनता पार्टी को टूटने से नहीं रोक पाए।
तीन साल पहले उन्होंने कन्याकुमारी से नई दिल्ली तक, 3860 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। वह कई कारणों से चर्चित रही थी, मगर इस पदयात्रा में वे असम और पंजाब के क्षेत्रों में नहीं गए। दो साल पहले स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश पर उन्होंने विरोध प्रकट किया था। मगर पिछले दिनों स्वर्ण मंदिर में पुलिस के प्रवेश पर उन्होंने कहा - ‘दुर्भाग्यपुर्ण मगर अपरिहार्य’।
एक जुलाई 1927 को बलिया में जन्मे चन्द्रशेखर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री पाई थी। 18 साल की उम्र में उनका ब्याह हो गया था।
प्रकाश हिन्दुस्तानी