जगमोहन को दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के रूप में ‘मास्टर प्लानर’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने दिल्ली को सलीके से बसाने के लिए कई काम किए हैं। नगर नियोजन पर उनकी चार किताबें भी छपी है। ये किताबें हैं ‘आईलैण्ड ऑफ टुथ’, ‘द तैलैन्ज ऑफ अवर सिटीज’, ‘रिबिल्डिंग शाहजहांनाबाद’ और ‘द वाल्ड सिटी आफ डेल्ही।’
जम्मू और कश्मीर के नए राज्यपाल जगमोहन पहले भी जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल और दिल्ली तथा गोवा के उप राज्यपाल रह चुके हैं। पिछले साल जून में जब दिल्ली में राजीव गांधी की सरकार थी, तब भी यह चर्चा थी कि जगमोहन को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया जा रहा है। पर वे बन नहीं पाए। मजेदार बात यह है कि वर्तमान गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद तब विपक्ष में थे और वे भी यही चाहते थे कि जगमोहन श्रीनगर के राजभवन में आ जाए। संयोग देखिए कि अब दिल्ली में राजीव गांधी का राज तो नहीं है, लेकिन फिर भी जगमोहन को राज्यपाल मनोनीत किया गया। इसे कहते हैं राजनीति।
स्वर्गीय संजय गांधी के दोस्त है जगमोहन। आइ.ए.एस. अफसर थे दिल्ली में। इमर्जेन्सी के दिनों दिल्ली में जो कुछ भी सही-गलत हुआ, सबका जिम्मा उन पर ही माना जाता है। उनके ‘शासनकाल’ में दिल्ली में बुलडोजर चले थे और कुछ अखबारवालों ने तब उन्हें ‘आधुनिक शाहजहां’ तक निरूपित कर दिया था। १९७१ में योग्य प्रशासक के रूप में सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था औैर फिर इमर्जेन्सी में उनकी भूमिका के लिए उन्हें पद्मभूषण दिया गया। आस्ट्रेलिया की सरकार ने भी उन्हें पुनर्वास सम्बन्धी योजनाओं के लिए उन्हें सम्मानित किया था।
लेकिन जब जनता पार्टी की सरकार आई तब उनका पद्मभूषण का तमगा कुछ काम न आया। पर जब कांग्रेस वापस आई तो उनके दिन भी फिरे। सात साल दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष की कुर्सी के बाद उन्हें फरवरी १९८० में दिल्ली का उपराज्यपाल बना दिया गया। यह एक उपहार था जो कांग्रेस की वफादारी के रूप में मिला था। उन्होंने इसका उपयोग दिल्ली में तेरह महीने तक किया। दिल्ली की कई झोपड़पट्टियों को उन्होंने नष्ट करवाया। जगमोहन से तत्कालीन गृहमंत्री जेल सिंह खुश नहीं थे। उनके प्रयासों से जगमोहन को गोवा, दमन प्रयासों से जगमोहन को गोवा, दमन और दीव का लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाकर चलता कर दिया गया।
जगमोेहन के गुणों में मुख्य रहे है। वफादारी, बेहतरीन जनसम्पर्वâ और काम का श्रेय खुद लेने की कला। इंदिरा गांधी और संजय गांधी के प्रति उनकी वफादारी सदा से रही, लेकिन राजीव गांधी के प्रति वह कम हो गई थी। वे जनसम्पर्वâ में इतने अच्छे रहे है कि कांग्रेस के टुटपुंजिया नेता लोग तो उन्हें ही अपना नेता मानते थे। उनकी खासियत यह रही कि जब भी कोई अच्छा काम हुआ, उसका श्रेय लेने में, ताली बजवाने और फोटो खिंचवाने में वे नहीं चुके। लोग यही समझने लगे कि जो कुछ भी है, जगमोहन ही है। जो कुछ होता है, उन्ही की माया है।
गोवा के उपराज्यपाल के रूप में सदा एकाकी रहे, पर वे छोटे मोटे काम जरूर करते रहे। १७ माह बाद जब वे वापस दिल्ली बुलाए गए तब तो वे हीरो थे। उन्ही के नेतृत्व में एशियाड संबंधी निर्माण कार्य हुए। अवैध बस्तियों को गिराने का अभियान फिर शुरू हुआ और कई खी.आइ.पी. लोगों के बंगलों सहित उन्होंने दिल्ली के इंडियन एक्सप्रेस की कथित गैरकानूनी इमारत भी गिराने के आदेश दे दिए। बाद में बड़ा बावेला मचा और न्यायालय ने उन्हें राजनैतिक द्वेष से काम करने का दोषी ठहराया।
उन्हें मार्च १९८४ में जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया था। राज्यपाल के रूप में उन्होंने दिल्ली दरबार के राजनैतिक एजेन्ट की भूमिका तो निभाई ही, श्रीमगर के विकास के लिए भी उन्होंने कई कार्य किए। श्रीनगर की पेयजल योजना से लेकर डलझील की सफाई तक के काम में उन्होंने रॉगहरी रूचि दर्शाई। वे राजभवन में अपना दरबार भी लगाते थे। उन्हीं के द्वारा जम्मू-कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त किया गया था और कांग्रेस समर्थक जी.एम. शाह की सरकार को स्थापित किया गया था। फारूक अब्दुल्ला सरकार की बर्खास्तगी से जम्मू-कश्मीर में उन्हें कड़ी निन्दा सहनी पड़ी थी। गत वर्ष अप्रैल में जब उनका कार्यकाल खत्म हुआ था, तब उन्हें दुबारा राज्यपाल नहीं बनाया गया।
दिलचस्प बात यह है कि जब उन्हें फिर से राज्यपाल बनाने की बातें हुई तब उनका समर्थन करने वालों में कई विपक्षी नेता भी थे। और उनके पिछले कार्यकाल को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि जम्मू-कश्मीर के लोग अपने इस सक्रिय राज्यपाल से ज्यादा खफा रहेंगे।
प्रकाश हिन्दुस्तानी