अशोक वाजपेयी ने मध्य प्रदेश जैसे राज्य में रहते हुए भी यह व्यवस्था करा ली थी कि संस्कृति का पूरा-पूरा उत्थान हो। और ऐसे हो, जैसे वे चाहें। कई मुख्यमंत्री आए और गए। पार्टियों की सरकार आई और गई। लेकिन अशोक वाजपेयी की बोतल ने सबको समेट लिया।
दस साल पहले, इन्दौैर में अभ्यास मंडल की भाषणमाला में व्यंग्यकार शरद जोशी ने कहा था। ‘भोपाल संस्कृति का भागलपुर है।’ तब भोपाल में भारत भवन बन ही रहा था और अशोक कुमार पन्नालाल वाजपेयी, (आइ.ए.एस.) संस्कृति का विभाग संभाल रहे थे। उन्हीं के प्रयासों से भोपाल में संस्कृति की गतिविधियां चल रही थी। उन्हीं के प्रयासों से बने भारत भवन के उदघाटन के अवसर पर श्रीमती गांधी ने कहा कि भोपाल भारत की सांस्कृतिक राजधानी है। संस्कृति की ताबेदार सुश्री पुपुल जयकर ने भी तब अशोकजी की प्रशंसा की थी।
चाणक्य अर्थशास्त्री थे इसीलिए अशोक वाजपेयी के लिए उनके मित्रों (या चमचों?) ने शब्द गढ़ा है, ‘सांस्कृतिक चाण्क्य’। चाण्क्य अगर चाण्क्य थे तो इसीलिए कि उन्होंने न सिर्पâ नीति बनाई, बल्कि विकटतम हालात में भी उन पर अमल की व्यवस्था कराई थी। अशोक वाजपेयी ने मध्यप्रदेश जैसे राज्य में रहते हुए भी यह व्यवस्था करा ली थी कि संस्कृति का पूरा पूरा उत्थान हो। और ऐसे हो, जैसे वे चाहें। कई मुख्यमंत्री आए और गए। लेकिन अशोक वाजपेयी की बोतल ने सबको समेट लिया।
कौन हेै अशोक वाजपेयी के गुट के लोग। हवाई यात्रा के शौकीन आंचलिक अखबारों के सम्पादक। वे लोग जिनकी किताबें नहीं छपती और छपती है तो बिकती नहीं। वे लोग, जो सरकारी मुलाजिम है और अशोक वाजपेयी के मातहत है। और अशोक वाजपेयी के विरोधी कौन है? वे लोग जो मुख्यमंत्री के विरोधी गुट के होते हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने जिनकी किताबें नहीं खरीदी, जिन्हें इनाम नहीं दिया। वे लोग जो ‘अखबारों के कर्मचारी’ है। वे सम्पादक, जो अपने आपको संस्कृति और साहित्य का ठेकेदार समझते है, लेकिन अशोक वाजपेयी जितने कामयाब नहीं।
अशोक वाजपेयी के कट्टर से कट्टर विरोधी भी मानते है कि मध्यप्रदेश में अगर सांस्कृतिक जागरूकता अपेक्षाकृत ज्यादा है तो इसके श्रेय अशोक वाजपेयी को ही है। अगर म.प्र. में पीटर ब्रुक जे. स्वामीनाथन, मकबूल फिदा हुसैन, बा.व. कारंत जैसे नाम घर-घर में जाने-पहचाने है तो यह कोई मामूली बात नहंी। हर राज्य सरकार अपनी-अपनी पत्रिकाएं निकालती है फिर वे पूर्वग्रह और कलावार्ता जैसी पत्रिकाएं क्यों नहीं निकालती? हर राज्य में मंत्रियों और अफसरों के ऐश्रर्य पर करोड़ों खर्च होते है, उसका लेशमात्र भी संस्कृति पर खर्च क्यों नहीं होता? अगर मध्यप्रदेश में संस्कृतिकर्म होता है तो इससे विघ्नसंतोषी चिढ़ते क्यों है? संस्कृति को शिक्षामंत्री और फिर मुख्यमंत्री बने तथा अशोक वाजपेयी शिक्षा विभाग में अवर सचिव, सचिव और फिर न जाने क्या-क्या। अर्जुन सिंह को ‘पारदर्शी व्यक्तित्व’ और ‘गरीबों का मसीहा’ के खिताब देनेवाले भी अशोक वाजपेयी ही है। यहां तक कि सरकारी प्रचार सामग्री में भी इन उपमाओं का इस्तेमाल दरियादिली से हुआ है। अर्जुनसिंह के प्रेस बयानों की भाषा में आनेवाली ‘खुशबू’ अशोक वाजपेयी के कारण ही है, ऐसा कहा जाता तो कोई इम्पोर्ट करने से रहा, इसलिए उसकी रक्षा क्या जरूरी नहीं?
अशोक वाजपेयी को अशोक वाजपेयी बनाने का श्रेय अर्जुनसिंह को है। अर्जुन सिंह जब विधायक थे, तब अशोक वाजपेयी सीधी में कलेक्टर थे। दोनों का प्रमोशन साथ साथ हुआ। अर्जुनसिंह है। ‘भारत भवन’ को कलाओं का आश्रम निरूपित करने वाले भी अशोक वाजपेयी ही है।
सागर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार पन्नालाल वाजपेयी के सबसे बड़े पुत्र अशोक की पढ़ाई सागर में ही हुई। दिल्ली में उन्होंने कुछ समय अध्यापकों भी की। १९६६ में वे आई.ए.एस. में आए और रामपुर के कस्डोल में नौकरी शुरू की। अम्बिकापुर में पहली बार उन्हें कलेक्टरी करने को मिली। आइ.ए.एस. लोग उन्हें कवि मानते है और कवि अफसर। वे चतुराई से दोनों जगह का फायदा उठा लेते है और कहते हैं कि मैं कुर्सी पर नहीं बैठता, कुर्सी से दो इंच ऊपर बैठता हूं। अभी भी आर.एस.एस. की एक लॉबी उनके साथ है, शायद इसीलिए उन्हें हटा पाने में तकलीफ हो रही है। पर यह माना जा रहा है कि वे शीघ्र ही किसी नए पद पर जा रहे हैं।
अशोक वाजपेयी के दो काव्य संग्रह ‘एक पतंग अनंत में’ और तत्पुरूष चर्चित रहे है। समालोचना को किताबें भी उनके नाम है। १९६३-६४ में जब वे आइ.ए.एस. नहीं थे, तब ‘धर्मयुग’ में समीक्षा स्तम्भ लिखा करते थे जो काफी लोकप्रिय था। वे रंग-समीक्षक नेमिचंद्र जैन के दामाद है। उनकी पत्नी रश्मि वाजपेयी कथक नृत्यांगना है। किताबों की खरीद में कथित घोटाले, पुरस्कारों में कथित पक्षपात, भोपाल गैस कांड के बावजूद सरकारी काव्य समारोह और कुछ कवि-पत्रकारों पर तीखी टिप्पणी के कारण अशोक वाडपेयी नाम कुछ कसैला सा लगता था। कवि ज्ञानरंजन और व्यगंय्कार शरद जोशी उनके आलोचकों में से है। पर शरद जोशी उनके आलोचकों में से है। पर शरद जोशी के बारे में उन्होंने कहा है - ‘उनके बारे में मैं क्या कहूं? उनके बारे में आप ३०० पेज की किताब छाप सकते हैं। जिसके लेखक होंगे शरद जोशी और शीर्षक होगा ‘अशोक वाजपेयी’।
प्रकाश हिन्दुस्तानी