दून स्वूâल के भूतपूर्व छात्र, कश्मीर के सदरे रियासत, कवि, लेखक, गायक और विविध भाषाओं के जानकार कर्ण सिंह, उस समय राजनीतिक पटल के हाशिए पर चले गए जब इंदिरा गांधी दोबारा सत्तासीन हुई। अब उन्हें अमेरिका में भारत का राजदूत का पद मिला है। देखें वहां वे भारत की छवि कितनी मजबूत कर पाते है।
महीने भर पहले ही तय हो गया था कि दून स्वूâल के पुराने छात्र डा. कर्णसिंह को अमेरिका में भारत का राजदूत बनाया जा रहा है। लेकिन इसकी भूमिका साल भर पुरानी है। कर्ण सिंह कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के पुत्र है और सदरे रियासत, राज्यपाल आदि पदों पर रहने के अलावा वे िंदिरा गांधी के जमाने में केन्द्रीय मंत्री, इमर्जेन्सी के नसबंदी राज के स्वास्थ्य मंत्री और जनता पार्टी के चरण सिंह राज में शिक्षामंत्री रह चुके हैं। चरणसिंह के हटने के बाद वे हाशिए पर थे और पिछले साल जब उनके पुत्र विक्रमादित्य की शादी माधवराव सिंधिया की बेटी चित्रागंदा के साथ हुई, तब ही से कई तरह की अटकलें लग रही थी कि उन्हें अब शायद कोई महत्वपूर्ण पद मिले।
कर्ण सिंह राज परिवार के है। राजनीति के उतार-टढ़ाव उन्होंने ज्यादा ही देखें हैं। १६ के थे, तब देश आजाद हुआ। १८ की उम्र में वे सदरे रियासत बने। शेख अब्दुल्ला कश्मीर के ऐसे निर्विवाद नेता थे कि हर कोई उन्हें चाहता था, पर शेख अब्दुल्ला को कर्णसिंह पूâटी आंखों नहीं सुहाते थे। नेहरू ेक प्रभाव के कारण कर्ण सिंह का सदरे रियासत पद चला गया, मगर कर्ण सिंह जम्मू कश्मीर के राज्यपाल बन गए। फिर १९५३ के वे दिम भी आए जब कर्ण सिंह ने जम्मू-कश्मीर सरकार बर्खास्त की और शेख अब्दुल्ला को जेल मेैं डलवा दिया।
बाद में कर्णसिंह लोकसभा में गए और मात्र ३६ साल की उम्र में १९६७ में पर्यटन और नागरिक विमानन मंत्री बने। इमर्जेन्सी में वे स्वास्थ्यमंत्री थे और संजय गांधी की जबरन नसबंदी योजना पर उन्होंने बहुत प्रभावी तरीके से अमल किया, जिसका अंजाम १९७७ में कांग्रेस की हार में हुआ, लेकिन तब पूरे उत्तर भारत में चार ऐसे नेता थे, जो लोकसभा का चुनाव जीत चुके थे। उन्हीं में से ये कर्णसिंह। परन्तु १९७८ में वे इंदिरा गांधी के बजाए चव्हाण, रेड्डी और स्वर्ण सिंह की मंडली के सदस्य थे। जब मोरारजी देसाई की सरकार गिरी तब चरणसिंह ने उन्हें शिक्षामंत्री बना दिया।
कर्णसिंह हिन्दूवादी है। मीनाक्षीपुरम कांड के बाद उन्होंने विराट हिन्दू समाज की स्थापना की थी। हाल ही एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि हिन्दुओं की उपेक्षा म३त्र इसलिए नहीं होनी चाहिए कि वे बहुसंख्यक है। अगर अल्पसंख्यकों के धार्मिक पर्व पर छुट्टी हो सकती है तो राम और कृष्ण के जन्म दिन पर क्यों नहीं?
यों धार्मिक-वृत्ति के हैं वे। सुबह दो घंटे पूजा-पाठ न कर लें, तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं करते। वैष्णोदेवी मंदिर ट्रस्ट के सर्वेसर्वा वे थे। जम्मू में उनका एक पारम्परिक मंदिर है, जहां ३४ घंटे कोटि देवी-देवता फिराजमान है और एक स्फटिक शिवलिंग है। अपने पिता और माता के नाम पर उन्होंने ‘हरि तारा ट्रस्ट’ बनाया है जो धर्म-कर्म के काम भी करता है।
कर्णसिंह का निजी जीवन ‘शालीन विविधताओं’ से भरा है। वे लेखक, कवि, गायक है। प्रेंâच, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, डोगरी, उर्दू के जानकार है और ‘शेडो एंड सनलाइट’, ‘प्रोपेâट ऑफ इंडियन नेशनलिज्म’, ‘वेलकम दि मूनराइज’, ‘पोस्ट इंडिपिंडेंटेंट जेनरेशन’, आदि किताबों के लेखक भी है। उनकी कविताओं की किताबें भारतीय ज्ञानपीठ ने भी छापी है। प्रमुख है -‘युगांत के क्षितिज पर’, ‘राष्ट्रीयता के अग्रदूत’, प्रेरणा के मोरपंख’ आदि। वे मानस चतुश्ती समिति के अध्यक्ष और मारीशस में हुए दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के नेता थे। वे जवाहरलालनेहरू स्मारक कोष, वन्यजीव कोष, प्रोजेक्ट टाइगर आदि से भी जुड़े रहे हैं।
९ मार्च १९३१ को प्रâांस में जन्मे कर्णसिंह ने १४ साल की उम्र मेैं ही दून स्वूâल से सीनियर वैâम्बिज की परीक्षा पास कर ली थी। फिर वे जम्मू और दिल्ली में पढ़े। वे सदा सर्वप्रथम आते रहे। हिन्दी में ही उन्होंने पीएचडी की। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रह चुके है। उनकी शादी नेपाल के राणा मोहन शमशेर बहादुर की बेटी यशोराज लक्ष्मी से १९५० में बम्बई में हुई। तब कर्णसिंह १९ साल के थे और यशो राजलक्ष्मी १३ की। उनकी सगाई ६ साल पहले हो गई थी। जब कर्णसिंह नागरिक विमानन मंत्री थे, तब १६ मार्च १९७३ को सिंकदराबाद के निकट हुई एक एवरो विमान दुर्घटना के बाद उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था। मगर वह इस्तीफा इंदिरा गांधी ने अस्वीकार कर दिया था।
प्रकाश हिन्दुस्तानी