राम विलास पासवान जितने वोटों से चुनाव में जीते थे, उतने वोटों से तो कभी नेहरू या इंदिरा गांधी भी नहीं जीती। राम विलास पासवान हरिजनों के प्रिय नेता हैं और मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करवा कर वे जगजीवन राम का उत्तराघिकारी बनने की तैयारी कर रहे हैं।
मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने का श्रेय अगर वास्तव में किसी को है तो वे है रामविलास पासवान। श्रम और कल्याण मंत्री। हालत यह है कि बिहार में लोग उनके खून के प्यासे हो गए है। आरक्षण को लेकर हिंसा का यह दौर कब तक चलेगा, कहा नहीं जा सकता। आरक्षण के औचित्य पर भी नई बहस शुरू हो गई है लेकिन रामविलास पासवान कहते हैं कि अगर राष्ट्रीय मोर्चा सरकार दस साल तक टिक गई तो कोई भी बेरोजगार नहीं बचेगा। शायद तब बेरोजगार या तो आरक्षण के समर्थन में आंदोलन करते नजर आएंगे या आरक्षण के विरोध में।
‘आरक्षण से योग्य लोगों को हतोत्साहित होना पड़ेगा’ इस बात बर रामविलास पासवान कहते हैं कि आरक्षण का अर्थ योग्यता की उपेक्षा नहीं है, बल्कि उपेक्षित लोगों को योग्यता का अवसर देना है। वे कहते हैं कि अगर योग्यता का ही सवाल है तो क्यों नहीं तमाम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सरकार खुली छूट दे देती, आखिर उनके उत्पादनों का स्तर हमारे लघु औैर कुटीर उद्योगों से तो अच्छा ही होता है? क्यों कई उपभोक्ता सामानों के उत्पादन का लाइसेंस छोटे उद्योगों को ही दिया जाता है? क्या वहां सवाल स्तर का नहीं है?
रामविलास पासवान कोई साधारण नेता नहीं है। वे संसद में हिन्दी भाषी क्षेत्रों के सबसे प्रखर प्रवक्ता है। पिछड़ों के नेता के रूप में उनकी छवि अखिल भारतीय स्तर की है, वे बिहार के हैं, लेकिन दक्षिण भारत में भी उनका प्रभाव है। वे दो मर्तबा सर्वाधिक वोटों से जीतकर लोकसभा में गए हैं। इतने ज्यादा वोटों से कि उनका नाम गिनीस बुक ऑफ वल्र्ड रेकार्डस में आना चाहिए। जे.पी. का पूरा आर्शीवाद उनके साथ रहा है। लेकिन रामविलास पासवान प्रचार के भी बहुत भूखे हैं। उन्हें टीवी पर आने का बेहद शौक है उनके मंत्रालय के वरिष्ठ अफसर दिल्ली में दूरदर्शन केन्द्र में नियमित जाकर गिड़गिड़ाते रहते हैं कि हमारे साहब को किसी बहाने तो टीवी पर दिखाओ। समाचार में नहीं तो परिचर्चा में सही। संसद समाचार में ही उनका जिक्र कर दो। हर तीसरे दिन वे प्रेस कांप्रेंâस करते रहते हैं। भले ही उनके पास कहने को कुछ भी नहीं हो।
बहरहाल तैयारियां ऐसी है कि रामविलास पासवान को जगजीवन राम का असली उत्तराधिकारी बना दिया जाए। रामविलास पासवान इसके लिए जी जान से जुटे हैं। वे हरिजनों के नेता के रूप में तो उभरे ही है, मजदूरों और मध्यम वर्ग के प्रिय नेता की भी छवि बनाने के लिए प६यत्नशील है। उनकी लोकप्रियता ही थी, जिससे चिढ़कर बिहार के पिछड़े वर्ग के नेता कर्पूरी ठाकुर ने चार साल पहले उन्हें लोकदल की प्राथमिक सदस्यता से ही हटा दिया था। कभी वे ही रामविलास पासवान कर्पूरी ठाकुर के लेफ्टिनेंट थे। रामविलास की दशा एक वक्त ऐसी भी थी कि उन्हें लोकदल का महासचिव का टिकट नहीं दिया गया।
लेकिन अगर वोटों को ही लोकप्रियता का आधार माना जाए तो रामविलास पासवान देश के सबसे लोकप्रिय नेता है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने उत्तर बिहार के हाजीपुर संसदीय क्षेत्र में कुल पड़े वोटों का ८९ प्रतिशत पाया था। उनके सभी विरोधी उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गई थी। कई क्षेत्रों में उन्हें पूरे सौ फीसदी वोट मिले थे। (तभी तो कई लोग आरोप लगाते हैं कि उन्होंने चुनाव में गड़बड़ी कराई थी) वे चुनाव में जीते थे ४,९८,३७७ वोटों से। इतने वोटों से न तो कभी नेहरू जीते, न इंदिरा गांधी। संजय सिंह को चुनावी गड़बड़ी कराने का खलीफा माना जाता है, पर इतने वोट तो वे भी नहीं पा सके।
1977 में भी रामविलास पासवान देश में सर्वाधिक वोटों से जीते थे, तब उन्हें कुल वोटों का 84 प्रतिशत मिला था और वे सवा चार लाख से भी ज्यादा वोटों से जीते थे। वह भी एक रेकार्ड था। मजाक में वे कहते भी हैं कि मैं चुनाव लड़ता हूं अपना ही पुराना रेकार्ड तोड़ने के लिए। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे हमेशा जीते ही, लोकसभा के बिजनौर उपचुनाव में वे कांग्रेस की मीरा कुमार से हारे भी थे। 1984 में भी वे हार गए थे।
बिहार में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के कारण रामविलास पासवान को राजनैतिक महत्व मिला। राजनीति में तो वे छात्र जीवन से ही है और लोहिया के चेले हैं। 1969 में वे पहली बार विधायक बने। संसोपा की राष्ट्रीय समिति में वे बहुत कम उम्र में आए थे। बिहार के छात्र आंदोलन में वे जेल गए। छूटे तो फिर ‘मीसा’ में अंदर। अआंदेलन के दौरान वे जे.पी. के पसंदीदा लोगंो में से थे।
चार साल पहले वे हरिजन आदिवासियों के राष्ट्रव्यापी मोर्चे की योजना बना रहे थे। अब तो वे मंत्री बन ही गए, इसलिए यह योजनाबना रहे थे। अब तो वे मंत्री बन ही गए, इसलिए यह योजना धरी रह गई। लेकिन, पिछड़े लोगों के लिए उनका संघर्ष अब अलग रूप में जारी है। वे सबसे युवा मंत्री है। आजादी के दिन उनकी उम्र मात्र 405 दिन की थी।
प्रकाश हिन्दुस्तानी