नरसिंहन राम ‘दि हिन्दू’ के मालिक के भतीजे हैं। वे माक्र्सवादी माने जाते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने कई उपलब्धियां पाई हैं। वे प्रेस की आजादी के बड़े हिमायती हैं। क्रिकेट के शौकीन, अंग्रेज बीवी के पति एन. राम पहले वाशिंगटन में ‘दि हिन्दू’ के संवाददाता थे। गुरुवार को नई दिल्ली में ‘दि हिन्दू’ के सहयोगी (एसोसिएट) सम्पादक नरसिंहन राम की प्रेस कांप्रेंâस में जो सवाल उठे हैं, उनकी आग जल्दी बुझेगी नहीं। दो घंटे तक चली उस प्रेस कांप्रेंâस में दर्जनों रिपोर्टर तो थे ही, करीब दस प्रमुख सम्पादक भी थे। प्रेस कांप्रेंâस में तरह-तरह के सवाल उठाए गए, शंकाएं की गर्इं, लेकिन कोई सवाल अगर नहीं था, तो एन. राम की ईमानदारी और निष्ठा के बारे में।
वास्तव में एन. राम पेशेगत निष्ठा और ईमादनारी का प्रतीक बन गए हैं और यह सम्मान उन्होंने यूं ही नहीं पाया है।
एन. राम के पद का नाम भले ही ‘सहयोगी सम्पादक’ हो, वे हैं हिन्दू के सम्पादक ही। ‘दि हिन्दू’ अखबार की परंपरा रही है कि उसके मालिक का नाम ही संपादक के नाम के रूप में छपता है। इसलिए इस प्रकरण में विवाद ‘सम्पादक’ और ‘सहयोगी सम्पादक’ के बीच न होकर वास्तव में मालिक और सम्पादक के बीच है।
आमतौर पर अखबारों में काम करने वाले एक परिवार की तरह ही होते हैं। दि हिन्दू में यह परिवार कर्मचारियों का ही नहीं, मालिकों का भी परिवार है। एन. राम इस अखबार के सम्पादक यानि मालिक जी. कस्तूरी के सगे भतीजे हैं। एन. राम के ही एक भाई नरसिंहन रवि वहां डिप्टी एडीटर हैं और दूसरे भाई नरसिंहन मुरली जनरल मैनेजर हैं।
अखबार के भागीदार और सहयोगी सम्पादक जैसे प्रबंधकीय पद पर काम करने वाले एन. राम पहले सम्पादक मालिक हैं जो अखिल भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ के मंच से भाषण देते हैं। वे पहले सम्पादक मालिक हैं, जो चीन में छात्रों के आंदोलन की खबर सुनते ही अपने रिपोर्टर को वहां भेजने की पहल करते हैं। वे एकमात्र सम्पादक-मालिक हैं, जो मानते हैं कि दक्षिण अप्रâीका में रंगभेद के खिलाफ हो रहे संघर्ष की रिपोर्टिंग के लिए पूर्णकालिक संवाददाता का वहां होना जरूरी है।
लोग कहते हैं कि वे माक्र्सवादी हैं। जो भी हों, वे हैं पढ़ने-लिखने वाले, जागरुक और कर्मठ व्यक्ति। प्रेस के खिलाफ मानहानि विधेयक की बात जब हुई और दिल्ली में मोर्चा निकला तो वे मद्रास से दिल्ली आए और प्रदर्शन में सक्रिय भूमिका निभाई।
पत्रकारों के प्रशिक्षण के बारे में हमेशा आगे रहे हैं। उनकी कोशिश रही है कि उनके सहकर्मी विशेष रूप से प्रशिक्षित और अनुशासित रहे। दि हिन्दू के पत्रकारों को तकनीकी प्रशिक्षण के लिए उन्होंने जापान की एक कम्पनी से समझौता भी कराया। भारत में रंगीन और चिकने पन्नोंवाली पत्रिकाओं की परंपरा की शुरुआत उन्हीं के प्रयासों से प्रंâटलाइन के प्रकाशन के साथ शुरू हुई।
एन. राम की एक खूबी यह भी उजागर हुई है कि वे सफलताओं का श्रेय लेने के पीछे नहीं पड़ते। बोफोर्स प्रकरण में अपनी सहयोगी चित्रा सुब्रह्मण्यम को खोजी पत्रकारिता के लिए उन्होंने भरपूर श्रेय दिया।
भारतीय ‘हू-इज-हू’ में अब तक एन. राम का जिक्र तक नहीं है। निश्चित ही अगले संस्करण में होगा। वे ऐसे सम्पादक-पत्रकार के रूप में याद किए जाते रहेंगे, जो तटस्थ, साहसी, प्रोपेâशनल, ऊर्जावान और सत्यान्वेषी हो।
यों एन. राम खुशमिजाज आदमी हैं। क्रिकेट के बेहद शौकीन हैं वे। अगर क्रिकेट का कोई टेस्ट मैच मद्रास में हो थो वे दफ्तर या घर पर नहीं होते। वे परदेश में पढ़े-लिखे हैं और ब्रिटेन मूल की लड़की सूजन से ब्याहे हैं। वे ‘दि हिन्दू’ के वाशिंगटन संवाददाता रह चुके हैं। एक ज्योतिषी ने कहा था कि उनके चेहरे पर जो मस्सा है, वह उनका भाग्य चमकाएगा। पर वे मानते हैं कि भाग्य-वाग्य कुछ होता नहीं।
-प्रकाश हिन्दुस्तानी (१५/१०/१९८९)