एक अरसा पहले श्रीमती मेनका गांधी ने दिल्ली में किताबों की एक दुकान खोली थी। तब वे लोगों को श्री सलमान रशदी का उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन पढ़ने का सुझाव जरूर देती थीं। आजकल मेनका गांधी किताबों की दुकान पर नहीं बैठतीं और न ही किसी को यह किताब पढ़ने का सुझाव देती हैं।
शायद इसलिए कि मिडनाइट्स चिल्ड्रन को लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी की आपत्ति के कारण उसके लेखक और प्रकाशक उन सारे आपत्तिजनक हिस्सों को निकालने पर सहमत हो गए हैं। इस चर्चित किताब के लेखक सलमान रशदी फिर भारत यात्रा पर हैं। गत गुरुवार को उन्होंने बंबई में ‘राजनीति और उपन्यास’ विषय पर भाषण में कहा कि राजनीति ही आज का इतिहास है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के आज के मालिक अंग्रेजों जैसे ही हैं। इसी विषय पर वे २८ फरवरी को दिल्ली में भाषण देंगे।
सलमान रशदी के अब तक तीन उपन्यास छप चुके हैं, लेकिन उनके दूसरे उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन ने उन्हें अपार ख्याति दिलाई है। यह उपन्यास भारतीय पृष्ठभूमि पर है और इसमें रुपक शैली में उन एक हजार एक बच्चों की दास्तान है, जो १५ अगस्त १९४७ को भारत की आजादी की घोषणा के एक घंटे के अंदर जन्मे हैं। इसमें भारत के इतिहास का भी जिक्र है और इमरजेंसी का भी। इसके नायक सलीम के रूप में वे खुद को भी महसूस करते हैं। यह संयोग ही है कि उनका जन्म भी १९४७ में हुआ था, लेकिन १५ अगस्त को नहीं १५ जून को।
सलमान रशदी ऐसे ब्रिटिश नागरिक हैं, जिन्हें भारतीय भी कहा जा सकता है। बंबई में जन्मे सलमान रशदी का सोचने और रहने का तरीका भी भारतीयों जैसा ही है। वे कुर्ता-पाजामा भी पहनते हैं। पाइप नहीं पीते। ब्रिटिश पासपोर्ट उनके पास है, मगर वे ब्रिटिश संस्कृति को अपना महसूस नहीं कर पाते। उनका कहना है कि भारतीय होना महज भारतीय होना नहीं है। भारतीय लोने का मतलब विश्व नागरिक होना है।
घटनाओं को देखने के लिए सलमान रशदी का अपना नजरिया है। गांधी फिल्म की सलमालोचना करते हुए २ मई १९८३ को लंदन टाइम्स में उन्होंने लिखा था, अगर आपको आजादी पानी है तो निहत्थे होकर कतारबद्ध रूप में अत्याचारी के सामने जाइए और उसे पीटने की इतनी आजादी दे दीजिए कि वह आपको औंधा कर दे। अगर आप ऐसा लंबे समय तक करेंगे तो दुश्मन थककर चला जाएगा। यह बात मूर्खता की सीमा के आगे, निष्कृठतम है। यह एक खतरनाक मूर्खता है। अहिंसा एक वूâटनीति थी, जो कुछ खास लोगों द्वारा, खास लोगों के खिलाफ थी, इसका सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। क्या नाजियों के खिलाफ ऐसी अहिंसा कारगर होती? आजादी की लड़ाई में भारत केवल इसलिए जीता कि उसके नेता अपने दुश्मनों के मुकाबले ज्यादा चतुर और बेहतर राजनीतिज्ञ थे।
श्रीमती गांधी के बारे में सलमान रशदी की राय बहुत अच्छी रनहीं है। ऑस्ट्रेलिया रेडियो को एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि श्रीमती गांधी को अपने बालों की एक पट्टी सपेâद छोड़कर काला करवाने की जितनी चिन्ता रहती है, उससे ज्यादा चिन्ता राष्ट्रीय समस्याओं की नहीं रहती।
सलमान रशदी के उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन की २५ लाख से ज्यादा प्रतियां दुनियाभर में बिक चुकी हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इसकी ज्यादा बिक्री का कारण श्रीमती गांधी और इमरजेंसी की अप्रत्यक्ष निंदा करना है। १९८१ का बुकर पुरस्कर भी इसे मिला है और बुकर पुरस्कार वाले भारतीय पृष्ठभूमि पर अंग्रेजों को उपन्यासों को शुरू से ही महत्व देते रहे हैं। झाबवाला का हीट एण्ड डस्ट, पाल स्काट का स्टेइंग इन और पेâरेल के सीज ऑफ कश्मीर का भी बुकर पुरस्कार मिल चुका है। शायद इन उपन्यासों में बुकर पुरस्कार वालों ने ब्रिटेन के पुराने साम्राज्य की तथाकथित महिमा को फिर से पाया हो।
रशदी का पहला उपन्यास ग्राइमस था, जो ज्यादा नहीं पढ़ा गया। एक बार उन्होंने अपने व्यवसायी पिता के सामने लेखक का पेशा अपनाने का प्रस्ताव रखा तब उन्होंने कहा था कि यह तो कोई काम ही नहीं है, लेकिन उन्होंने पहली किताब पढ़ने के बाद कहा कि एक दिन तुम वाकई लेखक बन जाओगे।
और सलमान रशदी वाकई लेखक बन गए। मिडनाइट्स चिल्ड्रन लिखने में उन्हें ५ साल लगे। शुरू के छ: महीने तो वे भारत में घूमते रहे। किताब की कथावस्तु तीन बार लिखी थी। किताब छपने के बाद वे फिल्म वालों से भी मिले, पर किसी न घास नहीं डाली। उनका तीसरा उपन्यास शेम पाकिस्तान की पृष्ठभूमि पर है।
सलमान रशदी के मालदार बाप-दादा भारत में रहे हैं। उनकी पढ़ाई ब्रिटेन के स्वूâलों और वैâम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई है। इस्लाम का इतिहास और दर्शन उनके प्रिय विषय रहे हैं। तीन बहनों के भाई और एक बेटे के पिता सलमान रशदी पढ़ाई के बाद विज्ञापन एजेंसियों के लिए प्रâीलांस कॉपीराइटर हो गए। पहले उपन्यास के बाद उन्होंने वह काम छोड़ दिया और लेखन को ही पेशे के रूप में अपना लिया। कई लोग उनकी तुलना साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता गाब्रिएल गासित्रया मार्वेâज से करते हैं।
-प्रकाश हिन्दुस्तानी