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पोथीराम उपाध्याय (द्वारकापीठ के शंकराचार्य) को कांग्रेस का नजदीकी माना जाता है। मीनाक्षीपुरम में धर्मान्तरण के खिलाफ जोरदार मुहीम छेड़ने वाले शंकराचार्य ही थे। अब वे रामजन्मभूमि के इसलान्यास की नई पहल के कारण विवाद का केन्द्र बने हैं और लगता है कि उनकी जन्मपत्रिका में यही सब कुछ लिखा है।
गोयनका प्रतिष्ठान का पहला पत्रकारिता पुरस्कार वी.के. नरसिंहन नामक ऐसे पत्रकार को मिला है, जिनकी दिलचस्पी अपने बारे में बताने में कभी नहीं रही। उन्होंने राजनीति के बारे में ही ज्यादा लिखा, लेकिन कभी राजनीति की नहीं।बम्बई में ‘इंडियन एक्यप्रेस’ के उनके पुराने साथी आज भी उन्हें ऐसे आदमी सम्पादकीय तो लिख सकते हैं, लेकिन जिन्हें प्रशासन का काम बिल्कुल नहीं आता। जो विजयी है, लेकिन सिद्धान्तप्रिय भी, जो सही बात सोचते है तो उसे लिखने का माद्दा भी रखते हैं। जो राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ भारतीय दर्शन और संगीत में भी रूचि रखते हैं।
कहा जाता है कि सुब्रह्ममण्यम स्वामी की लम्बाई से भी ज्यादा लम्बी उनकी जुबान है। वे जिस पार्टी में रहे, उसी के नेताओं को गाली देते रहे। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोपेâसर रह चुके स्वामी ने पिछले माह एक बयान में कहा था कि मैं उतना बेववूâफ नहीं हूं, जितना नजर आता हूं।
पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त यह चर्चा थी कि अगर विधान सभा पर भगवा फहराने की नौबत आई तो हो सकता है कि भगवा फहराने वाले का नाम छगन भुजबल हो। आखिर वे बाल ठाकरे के बाद शिव सेना के शीर्ष नेताओं में गिने जाते है। मगर इस १५ अगस्त को उन्हें मनपा कार्यालय पर ही तिरंगा फहरा कर ही संतोष कर लेना पड़ेगा।
श्रीचेरूमुरि शर्माजी राव की इतनी चर्चा तब भी नहीं हुई थी, जब उन्होंने आंध्रप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के महाभारत की बागडोर सम्भाली थी। एक नवजात पार्टी को आंध्रप्रदेश में सत्ता दिलाने और इंका के आंध्रप्रदेश में पुनप्रवेश के रास्तों पर गतिरोध कायम करने में उनकी निर्णायक भूमिका थी। तेलुगु देशम को उन्होंने जन्म दिया, पाला-पोसा और राजनैतिक लड़ाई के पैंतरे सिखाए।
ऐसे माहौल में, जब शीर्ष पत्रकार सरकार से या विपक्ष से सीधे जुड़े हों, कम ही पत्रकार है जो व्यक्तियों और सरकारी पदां से नहीं, विचारों से जुड़े होते है। कुलदीप नैयर ऐसे ही है। खबर है कि उन्हें ब्रिटेन में भारत का उच्च युक्त बनाया जा रहा है।
अमेरिका में बिना किसी छात्रवृत्ति के जाकर पढ़ाई करनेवाले कुलदीप नैयर ने वकालत का पैशा अपनाया था। उन्होंने सोचा नहीं था कि वे अखबारनवीसी करेंगे। पत्रकारिता भी शुरू की, तो उर्दू अखबार के संपादक के रूप में। यह जानना भी प्रेरक है कि उन्होंने अमेरिका में अपनी पढ़ाई का खर्चा कॉलेज होस्टल में साफ-सफाई करके निकाला।
समाजवादी जनता दल के नेता चौधरी देवी लाल विपक्ष की राजनीति के खलीफा है। वे जानते है कि दूल्हे का दोस्त बनना ज्यादा अच्छा होता है, दूल्हा बनना नहीं। वे यह भी जानते है कि आज के थापे वंâडे आज नहीं जलाए जा सकते। इसी कारण से उन्होंने समाजवादी जनता दल के लिए दूरदर्शी योजना बनाई है। हो सकता है कि उनके इरादे पूरी तरह कामयाब न हों, पर गेहूँ को पीसने से आटा न बने, दलिया तो बन ही जाएगा।
खान अब्दुल गफ्फार खां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से केवल पांच साल छोटे हैं। कांग्रेस के तमाम नेताओं की तरह उन्होंने सत्ता का स्वाद तो नहीं चखा, मगर सेवा की सजा जरूर भुगती है। सेवा और संघर्ष के उनके काम में भारत, पाकिस्तान या अफगानिस्तान की दीवारें रूकावट नहीं बन पाई। कांग्रेस शताब्दी समारोह के बहाने बंबई को उनकी मेजबानी का सौभाग्य मिला है।
आमतौर पर हमारे यहां उद्योगपति के नाम अखबारों मेैं तभी छपते हैं, जब टैक्स की चोरी या पेâरा नियमों का उल्लंघन होता है। ऐसे उद्योगपति कम ही हैं, जो दूसरे कारणों से चर्चित होते हैं। ऐसे ही उद्योगपति हैं विजयपत सिंहानिया। जे.आर.डी.टाटा की तरह वे भी उद्योगपति है ओर उड़ाके भी। उन्होंने २३ दिन में ९६०० किलोमीटर की दूरी तय की है औ वह भी डेढ़ क्विंटल के एक अति हलके विमान से। अपने इस विमान से सिंहानिया ने ११ देशों के ऊपर उड़ान भरी ओर भारत की धरती पर उतरकर गिनेज बुक्स आफ वल्र्ड रिकार्डस में अपना नाम दर्ज कराने की स्थिति प्राप्त कर ली। हालांकि पाकिस्तान के कराची हवाई अड्डे पर उन्हें कुछ कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर अंतत: मामला सुलझ गया।
कमलनाथ विदेशी बैंकों में खातों के मामले को लेकर सुर्खियों में है। वे दरअसल एक घाघ उद्योगपति और चतुर नेता है। उन्होंने दोनों का घालमेल कर रखा है और उद्योगपति होने का लाभ राजनीति में तथा राजनीतिज्ञ होने का लाभ उद्योगों में पा रहे हैं। एक लंबे अंतराल के बाद सांसद कमलनाथ का नाम फिर से सूर्खियों में आया है। पहले वे संजय गांधी के दोस्त के रूप में जाने जाते थे।
बेशक एस.एम. जोशी नंबर एक समाजवादी नेता है। वे व्यापक जनाधार वाले ट्रेड यूनियन लीडर तथा रचनीत्मक कार्यकर्ता हैं। मगर महाराष्ट्र, कर्नाटक सीमा विवाद में उलझकर वे वही कर रहे हैं, जिसे मराठी में कहा जाता है - ‘आपले नाक कापून दसयीला अपशकुन’ अर्थात अपनी नाक कटवाकर दूसरों के लिए अपशकुन करना। अब एस.एम. जोशी बेलगांव को कर्नाटक से महाराष्ट्र में मिलाने की मांग पर शरद पवांर के साथ आंदोलन में जुटे हैं। इस आन्दोलन को वे बेलगांव के मराठीभाषियों से किए गए वादे की पूर्ति मानते है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई नेै कहा कि सी.बी. आई. केन्द्र सरकार की राजनीतिक इकाई की तरह काम करने लगी है। उनकी बात से और लोग सहमत हो या न हों, अमेठी के राजा संजय सिंह तो होंगे ही। इस तथ्य की सच्चाई तब और भी उजागर होती है, जबकि सी.बी.आई. के अफसर अपनी जांच में तरक्की की रिपोर्ट अखबारवालों को दे रहे हैं।