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जहांगीर रतनजी दादाभाई (जे.आर.डी.) टाटा को हाल ही में दादाभाई नौरोजी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हालांकि उनके पास देश-दुनिया के दर्जनों पुरस्कार और सम्मान हैं, लेकिन हमारे यहां व्यापार-व्यवसाय क्षेत्र की प्रतिभाओं को उचित सम्मान प्राय: नहीं मिल पाता। टाटा परिवार के ही कुछ अच्छे कार्यों का श्रेय हम राजनीतिक सत्ता को देते रहे हैं। भारत ने हर बात का श्रेय नेताओं को जाता है। यहां व्यापार-व्यवसाय करना और सफलता पूर्वक करना वाकई मुश्किल काम है।
संसदीय कार्य मंत्री हरकिशनलाल परमानंद भगत ने कांग्रेस सदस्यों को सचेकक जारी करके बड़ी गलती की है। वैसे तो उसके पहले भी वे कई-कई ऐसी गलतियां कर चुके हैं, जो अक्षम्य हैं। मगर इस बार मामला जरा जटिल है। करीब ३० साल पहले की बात है, जब श्री भगत ने अपने पिता के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर कोई गड़बड़ी करने की कोशिश की थी। हालांकि तब श्री भगत पार्टी के मामूली कार्यकर्ता थे, पर मामला तूल पकड़ चुका था और पं. नेहरू तक चला गया था। नेहरू जी ने तब उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया था और कहा था कि इस आदमी को फिर कभी भी कागं्रेस में मत घुसने देना।
तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन वाकई हीरो हैं। जो चाहते हैं, कहते हैं। जो इच्छा होती है, करते हैं। हाल ही उन्होंने अपने प्रशंसको से कहा है कि वे आत्मरक्षा के लिए अपने पास चावूâ रखा करें, क्योंकि पुलिस उनके दुश्मनों से निपटने में समर्थ नहीं है। यह तो उन्होंने तब कहा जबकि वे मुख्यमंत्री हैं। अगर वे मुख्यमंत्री नहीं होते, तो शायद प्रशंसकों को सलाह देते कि आत्मरक्षा के लिए अपने पास मशीनगन या तोप रखा कीजिए, क्योंकि सरकार हमारी नहीं है।
दुनिया के एक और देश में भारतीय मूल का व्यक्ति राष्ट्रपति चुना गया है। वह देश है सूरीनाम और वहां के राष्ट्रपति चुने गए हैं-रामसेवक शंकर। हालांकि आबादी के मान से सूरीनाम कोई बहुत महत्वपूर्ण देश नहीं है, लेकिन इससे क्या फर्वâ पड़ता है। सूरीनाम की आबादी करीब पांच लाख है और दुनिया में उससे भी छोटे देश मौजूद हैं।
पदमश्री बावकौड़ी व्यवंâट कारंत भोपाल के रंगमंडल की नायिका विभा मिश्र को जलाने के लिए दोषी है या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा। मगर इस कांड के बाद उनका नाम भी रामराव आदिक तथा जे.पी. पटनायक जैसों की सूची में आ गया है जो रंगकर्म से जुड़े लोगों के लिए कष्टकर है। कांरत करीब बीस साल से रंगमंच ये जुड़े हैं। वे बेहतरीन नाट्य निर्देशक, कलाकार और संगीतकार हैं।
शिवचरण माथुर १०६२ दिन की जोड़तोड़ के बाद फिर से राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए। १३१९ दिन तक मुख्यमंत्री कहने के बाद २२ फरवरी १९८५ को जब उन्होंने इस्तीफा दिया था, तब वे यही सोच रहे होंगे कि उन्हें वापस मुख्यमंत्री बनना है। यह महज संयोग ही नहीं है कि फिर मुख्यमंत्री बने है।
अब रामधन भी पं. कमलापति त्रिपाठी के रास्ते पर हैं। उनकी शिकायत है कि राज्यसभा और विधानपरिषद के चुनावों में पिछड़ी जाति के लोगों की उपेक्षा हो रही है। पिछड़े लोगों की उपेक्षा का मुद्दा उन्होंने ऐसे वक्त में उठाया है, जब कांग्रेस की राजनीति पूरे उबाल पर है। वैसे रामधन सुलझे हुए पढ़े-लिखे, ऊर्जावान और प्रगतिशील नेता है, मगर दुर्भाग्य से वे राजनीति में ऐसे सिक्के बन गए हैं, जो चलने से बाहर हो गया है।
भूतपूर्व सेक्स बम जयललिता भले ही एम.जी.आर. की फिल्मों की नायिका रही हों - जानकी रामचंद्रन के लिए तो वे खलनायिका ही है। तमिलनाडू की राजनीति में वे छत पर से वूâदी थीं-तब तक तो उनका नाम हिन्दी विरोधी विचारों और टेक्स की चोरी की खबरों के कारण ही अखबारों की सुर्खियों में आता था। यों दक्षिण की सारी राजनीति ही फिल्मी है और फिल्में राजनीतिक है।
अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति नजीबुल्ला कई मामलों में विशिष्ट व्यक्ति हैं। वे सिर्पâ चालीस साल के हैं। उनका राजनैतिक जीवन कुछ बरस पहले ही शुरू हुआ था। वे डाक्टरी पास हैं। अपने नाम के आगे पीछे कुछ भी लिखना उन्हें गवारा नहीं। वे पाकिस्तान की सीमा पर बसे अहमदजाई कबीले के हैं और दूसरे कबीलों को भी उन्हें समर्थन प्राप्त हैं।
गिरगिट के रंग का और हरिायणा के नेताओं की पार्टी का क्या भरासा? रोहतक के संसद सदस्य हरद्वारीलाल कांग्रेस का द्वार छोड़कर देवीलाल के साथ बहुगुणा गुट के लोकदल को द्वार पर आ गए हैं। उन्होंने लोकसभा से भी इस्तीफा दे दिया है। पहले ही हरियाणा में कांग्रेस का स्वास्थ्य कमजोर है। इस इस्तीपेâ से कांग्रेस के कष्ट बढ़ेगें। शायद हरद्वारीलाल को लगता है कि अगले चुनाव में देवीलाल मुख्यमंत्री बन जाएंगे और वे मंत्री।
तमिलनाडू की मुख्यमंत्री श्रीमती जानकी रामचंद्रन की जिंदगी वास्तव में किसी तमिल मसाला फिल्म की कहानी से कम नहीं है। जिसमें इमोशन, ड्रामा, एक्शन, ट्रेजेडी वगैरह के बाद क्लाइमेक्स आता है। लेकिन शायद करूणानिधि अभी इस बात को न माने कि तमिलनाडू की राजनीति में क्लाइमेक्स का सीन आ गया है। जानकी अम्मा का जीवन अपने आप में कोई कम ट्रेजेडी नहीं रहा। छुटपन में ही पिता की मौत और फिर मां का दूसरा विवाह, केरल का अपना पैतृक गांव छोड़कर तमिलनाडू में जाकर बसना, स्वूâली पढ़ाई विधिवत पूरी नहीं कर पाना और फिर विवाह, जो सफल नहीं हुआ। रामचंद्रन की तीसरी पत्नी कहलाने का सौभाग्य उन्हें मिला, पर जयललिता के कारण उनके मन में आशंकाएं पनपती रहती।
रूसी खुर्शीद करंजिया भारत में भंडाफोड़ पत्रकारिता के जनक हैं। इस पेशे मे उन्हें पचास बरस हो गए। राष्ट्रपति ने परंपराओं को त्यागकर उनके सम्मान समारोह में हिस्सा लिया। करंजि.ा अपने आप में एक संस्था हैं। वे सफल संपादक, उद्यमी, संगठक और जनसंपर्वâ अधिकारी है। वे भारत के दस बेहतरीन पौशाक पहननेवालों में है, नफासतपसंद, स्पष्टवक्ता और तहजीब वाले।