देश में दो ही तरह के लोग हैं - नरेन्द्र मोदी के समर्थक या उनके विरोधी। उन्हें नजरअंदाज कर सके, ऐसा कोई तीसरा वर्ग नहीं है।
लोकसभा चुनाव २०१४ के बारे में एक अखबार में दैनिक कॉलम लिखते हुए मैंने सवाल किया था कि आखिर एनडीए को २७२ सीटें मिलेंगी वैâसे? अन्य पत्रकारों की तरह मुझे शक था कि एनडीए को सरकार बनाने लायक बहुमत शायद ही मिल सकेगा। २००९ के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का खाता १५ राज्यों और वेंâद्र शासित प्रदेशों में नहीं खुला था। ३ राज्यों में भाजपा के पास केवल ३ सीटें थी। उत्तरप्रदेश में ४५-५० सीटें जीते बिना और म.प्र., गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली आदि में एकतरफा सीटें जीते बिना नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे।
मुझे असंभव लगता था, लेकिन भाजपा ने चमत्कार कर दिया। यह नरेन्द्र मोदी का तिलिस्म ही था, जिसने विरोधियों का पत्ता साफ कर दिया। नरेन्द्र मोदी ने वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं को भी। नरेन्द्र मोदी मुतमइन थे। कम से कम वे ऐसे नजर तो आते ही थे।
अब उन्होंने जो कुछ किया, वह इतिहास बन चुका है। इस पर अब शोध कार्य होंगे। राजनीति शास्त्र और प्रबंधन के विशेषज्ञ इस बात में जुटे हैं कि नरेन्द्र मोदी ने यह चमत्कार वैâसे कर दिखाया? इसके पीछे क्या राजनीति रही? कितनी मेहनत की गई थी? कितने लोगों ने, कितने वर्षों तक अथक परिश्रम किया था इस दिन के लिए।
यह सब हिमालय को पिघलाकर उसकी जगह से हटाने जैसा दुष्कर कार्य था, जो कर दिखाया गया। इस कार्य में हर जगह बाधाएं थीं। उनकी पार्टी में विरोधी स्वर थे। गुजरात प्रदेश में, देश में और विदेश में भी मोदी विरोधी प्रचार की आंधी थी। जिसे उन्होंने रोककर अपने पक्ष में आई सुनामी में तब्दील कर दिया। एक साधारण घर में जन्मे बचपन में चाय बेचनेवाले ने जो काम कर दिखाया; वह न केवल कड़ी मेहनत का नतीजा है, बल्कि सही रणनीति, ब्रांडिंग, पोजिशिनिंग, मीडिया मैनेजमेंट, सोशल एक्टिविज्म, वाकपटुता, भाषण देने की कला, प्रस्तुतिकरण, सादगी, अपनत्व व स्नेह, भविष्य की योजनाओं का सही-सही निर्धारण, सही टीम का चयन और उसका मार्गदर्शन जैसी अनेक खूबियों का समन्वय है।
२० मई २०१४ को जब वे पहली बार संसद भवन गए। जहां भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें संसदीय दल का नेता चुना। संसद के सेन्ट्रल हॉल में संबोधन के दौरान नरेन्द्र मोदी भावुक हो गए। उन्होंने जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय सहित देश के लिए मर मिटने वाले सभी स्वाधीनता सैनानियों का नाम लिया। अटलजी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि अगर आज अटल बिहारी बाजपेयी की सेहत ठीक होती, तो वे भी यहां मौजूद होते, तो यह सोने पर सुहागा जैसा होता। नरेन्द्र मोदी के नाम का प्रस्ताव एनडीए के चेयरमैन और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रखा। बुजुर्ग नेताओं का आभार मानते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि मैं इसलिए बड़ा नहीं हूं कि मैं नरेन्द्र मोदी हूं बल्कि इसलिए बड़ा हूं कि मुझे पार्टी के सीनियर नेताओं ने
वंâधे पर बैठाया है। नरेन्द्र मोदी के इस भाषण ने उनके व्यक्तित्व के अनेक ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जो अज्ञात थे।
यह किताब नरेन्द्र मोदी की जीवनी नहीं है। यह नरेन्द्र मोदी के उस असंभव कार्य का पत्रकारीय दस्तावेज है, जो उन्होंने संभव कर दिखाया। उन्होंने वह सब कर दिखाया, जिसके बारे में अन्य सोच भी नहीं सकते थे। उन्होंने जाने-माने राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियां, चुनाव विश्लेषकों के अनुमान और अपनी ही पार्टी के अनेक नेताओं की आशाओं से उलट वह चुनाव परिणाम दिलवाए, जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी। भारत में पहली बार ‘असली मायनों में’ एक गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ है। क्या थी नरेन्द्र मोदी की रणनीति, योजनाओं पर उन्होंने काम किया था और माइक्रो और मेक्रो लेवल पर जाकर उन्होंने भाजपा की जीत का इतिहास रचा, यह अब केवल शोध का विषय ही है।
नरेन्द्र मोदी को जानने व समझने की कोशिश में उनकी वेबसाइट, ब्लाक, सोशल मीडिया साइट, टीवी न्यूज चैनल, अनेक अखबारों व पत्रिकाओं व पुस्तकों की मदद से प्राप्त जानकारी यहां प्रस्तुत की गई है। उन सभी का आभार लेकिन अभी नरेन्द्र मोदी के तिलिस्म को समझना बाकी बचा है।
एक बार फिर, यह नरेन्द्र मोदी की जीवनी नहीं है, बल्कि यह जानने की कोशिश है कि आखिर सत्ता के शीर्ष तक वे वैâसे पहुंचे?
-प्रकाश हिन्दुस्तानी
21 मई 2014