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 ''ओह रे ताल मिले नदी के जल में ..."

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फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (15).

इस शुक्रवार एक और गाने की बात :

इंदीवर ने ज़्यादातर मोहब्बत के गाने लिखे हैं, लेकिन 1968 में आई फिल्म 'अनोखी रात' का यह गाना अलहदा है। यह गाना न केवल अपने बोल के लिए, बल्कि रोशन के संगीत, मुकेश की मधुर आवाज़ और फिल्मांकन के लिए भी बेहद पसंद किया गया था।  ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर में नदिया के किनारे चल रही बैलगाड़ी में यह गाना फिल्माया गया था।  उस दौर में कॉलेज का कोई छात्र ऐसा नहीं होगा, जिसने यह गीत गुनगुनाया न हो।  इस गाने की विवेचना हर विद्यार्थी अपनी सुविधा और ज़रूरत के मुताबिक करता रहा है। हर महफ़िल में, हर मंच पर, अपनी या दूसरे की गर्लफ्रेंड के सामने भी। आज भी कराओके प्रेमियों के लिए यह लोकप्रिय गीत है।

इस गाने में सड़कछाप शोहदों का उतावलापन नहीं था।  शब्द अर्थपूर्ण और धीर-गंभीर थे। जीवन की बातें थीं। पहेली की तरह सवाल थे और अंत में जीवन का यह सत्य भी था कि क्या होगा कौन से पल में?  मैंने यह गाना किशोरावस्था में प्रवेश करते समय रेडियो पर एक बार ही सुना और याद हो गया था। कई साल तक मैंने इसे गुनगुनाया भी। दशकों बाद आज भी यह गाना मैं भूला नहीं हूँ।

'ओह रे ताल मिले नदी के जल में' मुझे अक्सर के उस गाने की याद दिला देता है  जो आनंद बक्शी ने लिखा था और किशोर कुमार ने गाया था। आर डी बर्मन के संगीत में 'अमर प्रेम' फिल्म का गाना था- 'चिंगारी  कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाये, सावन जो अगन लगाये, उसे कौन बुझाये?' लेकिन उस गाने की एक लाइन मुझे खटकती है -'पीते हैं तो ज़िन्दा हैं, न पीते तो मर जाते'। अब पीना या न पीना निजी मामला है, पर दुनिया में लाखों लोग तो चाय या कोल्ड ड्रिंक भी नहीं पीते। उन्हें कुछ नहीं होता।  बल्कि वे ज़्यादा सेहतमंद हैं।

इंदीवर (यानी नीलकमल) साहब ने पूछा है कि ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में? आगे उन्होंने खुद ही जवाब भी दे दिया है कि कोई जाने ना! वे यहीं नहीं माने और आगे लिखा कि सूरज को धरती तरसे, धरती को चन्द्रमा ! ऐसा लगता है मानो सूरज, धरती और चन्द्रमा तीनों ही माशूक- माशूका हैं।  इसके आगे उन्होंने जो लाइन मिलाई है वह अद्भुत है।  वे फरमाते हैं कि हर आत्मा वैसी ही प्यासी है जैसी पानी में रहते हुए भी सीप प्यासी रहती है। सीप में भी प्राण होते हैं और वह प्यासी हो, यह ऐसा ही है जैसे जल बीच प्यासी मछली! गीतकार ने यहाँ चन्द्रमा और आत्मा की तुक मिलाई है, जो यहाँ ठीक लगती है।

केवल दो अंतरे हैं गाने में और दूसरे में ही इंदीवर साहब ने बता दिया कि अनजाने लोग 'जन्मों के मीत' बन जाते हैं, जबकि एक पल बाद का भी हमें पता नहीं होता।

जीवन में प्रश्न ही प्रश्न हैं।  हम जवाब खोजते रहते  हैं। जवाब मिल भी जाता है, पर फिर नया सवाल खड़ा हो जाता है। सवाल जवाब ! फिर सवाल फिर जवाब !! फिर फिर सवाल और फिर फिर जवाब।  लेकिन एक समय आता है जब सवाल का जवाब मिलना बंद हो जाता है या सवाल का जवाब भी सवाल ही होता है।  शायर मुनीर नियाज़ी ने  इसीलिए लिखा है : "ख़याल जिसका था मुझे ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे "

यक्ष प्रश्न सदियों से यही है - क्या होगा कौन से पल में? जवाब भी स्थायी है - कोई जाने ना ! अब ये यक्ष अगर आ जाएँ तो मैं उनसे पूछूं कि भाई यक्ष, तुम महाभारत काल से सवाल ही सवाल पूछते आ रहे हो, कोई जवाब दे सकते हो क्या? यक्ष जी, अभी याद नहीं आ रहा हो तो मुझे मोबाइल पर कॉल कर लेना।  

'अनोखी रात' संगीतकार रोशन की अंतिम फिल्म थी। उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई और उन्हीं को समर्पित थी। इसके पांच में से चार गाने खूब बजे। 'ओह रे ताल मिले नदी के जल में' के अलावा लता मंगेशकर का गाया  'महलों का राजा मिला, के रानी बेटी राज करेगी' (यह गाना मुझे नीलकमल फिल्म में साहिर लुधियानवी के लिखे गाने 'बाबुल की दुआएं लेती  जा' का विलोम गाना लगता है) , मो. रफ़ी का गाया 'मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली' और आशा भोंसले का गाया 'मेरे बैरी के बैर मत तोड़ो, कोई कांटा चुभ जायेगा।'

'अनोखी रात' के गानों की खूबी थी कि वे फिल्म की कहानी कहते थे। यह फिल्म  काफी हद तक सामाजिक कुरीतियों के बारे में थी। साहूकार द्वारा अत्यधिक ब्याजखोरी, दहेज़ के चक्कर में बेमेल विवाह, सामाजिक और आर्थिक खाई, नारी पर अत्याचार और बदला, शरीफ आदमी का डाकू बन जाना और उसका ह्रदय परिवर्तन, ये सब एक ही भरी बरसात वाली तूफानी रात में एक हवेली में घटित होता है! ऐसी हवेली में जहां हर सामान पर कीमत का टैग लगा है।  मेहमान पेंटर परीक्षित साहनी मेज़बान ज़ाहिदा से पूछता है कि हर सामान परप्राइस टैग क्यों है? ज़ाहिदा कहती है- ''यह सारा सामान बिकने के लिए था, लेकिन अब नहीं है क्योंकि सामान की जगह मैं ने बिक जाना मंजूर कर लिया है।''दिवंगत पिता के द्वारा लिये क़र्ज़ के बदले वह एक अधिक उम्र के साहूकार से ब्याह करना मंज़ूर कर लेती है।  नाखुश है।  
पूरी कहानी एक अनोखी रात की थी, जिसमें फ्लैशबैक में भी कहानी का छोटा सा हिस्सा था।

इस फिल्म के गाने ही नहीं, संवाद भी ज़बर्दस्त थे।  जैसे :
-भूख भूख में अंतर होता है।  गरीब को भूख खा जाती है, अमीर भूख को खा जाता है।
-ऐसा दौर आ गया है जब बुद्धिमान लोग मक्कार होना ज़्यादा पसंद करते हैं।
-बेशक बाहर तूफान आया हो, लेकिन कुछ मेहमानों के रुकने से घर में तूफ़ान बढ़ जाता है।
-जान हथेली पर रखने के लिए एक पल ही काफी है।

अनोखी रात को चार फिल्मफेयर अवार्ड मिले थे, कला निर्देशन, सिनेमैटोग्राफी, संवाद और पटकथा के लिए।  इतने मधुर गानों के बावजूद न तो फिल्म के किसी गायक को कोई इनाम मिला, न गीतकार और संगीतकार को। ''क्या होगा कौन से पल में, कोई जाने ना!"

इंदीवर ने करीब 300 फिल्मों में एक हजार से अधिक गीत लिखे। प्रेम गीत, देश प्रेम के गीत और नाज़िया हसन के लिए 'आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए तक !'  उनके लिखे दर्जनों गाने बिनाका गीतमाला की शान रहे। 1969 में 'ओह रे ताल मिले'  बिनाका गीतमाला का दूसरा सबसे लोकप्रिय गाना घोषित हुआ था।

इंदीवर  का लिखा पूरा गाना :


  ओह रे ताल मिले नदी के जल में
नदी मिले सागर में
सागर मिले कौन से जल में
कोई जाने ना
ओह रे ताल मिले नदी के जल में ...

  सूरज को धरती तरसे धरती को चंद्रमा
धरती को चंद्रमा
पानी में सीप जैसे प्यासी हर आत्मा
ओ मितवा रे ए ए ए ए   पानी में ...
बूंद छुपी किस बादल में
कोई जाने ना
ओह रे ताल मिले नदी के जल में ...

  अन्जाने होंठों पर ये पहचाने गीत हैं
पहचाने गीत हैं
कल तक जो बेगाने थे जन्मों के मीत हैंजन्मों के मीत हैं
ओ मितवा रे ए ए ए   कल तक जो बेगाने थे जन्मों के मीत हैंजन्मों के मीत हैंक्या होगा कौन से पल में
कोई जाने ना

फिल्म : अनोखी रात (1968)
गीतकार :  इन्दीवर ( श्यामलाल बाबू राय)
गायक : मुकेश  (गायक : मुकेश चंद  माथुर )

संगीतकार : रोशन (रोशन लाल नागरथ)

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-प्रकाश हिन्दुस्तानी
23-7-2023
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