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शेर दा पुत्तर को मराठी में छावा कहते हैं।
वेलेंटाइन वीक तो होता ही है बाबू शोना, स्वीटी, बानी बू, गुच्ची गु, जानूं, क्यूटी, बेबी, स्मार्टी, हनी, प्रिंस, प्रिंसेस जैसी डार्लिंगों के लिए। ये वह पीढ़ी है जो पैदा ही हुई है प्यार, मोहब्बत, पब बाजी, लांग ड्राइव, गेट अवे, सोशल मीडिया पर हवाबाजी के लिए।
इस पीढ़ी की गर्भनाल अपनी मांओं से नहीं, मोबाइल से जुड़ी हुई है। रहीम आज होते तो कहते - बिन मोबाइल सब सून। सच्ची मुच्ची! तो भिया, वेलेंटाइन वीक के पहले ही दिन, रोज़ डे पर लग गई 'लवयापा'। सीक्रेट सुपरस्टार और लाल सिंह चड्ढा बनाने वाली आमिर खान की कम्पनी की फिल्म है। इसके नाम में ही आमिर खान की छाप है -...यापा।
पंकज त्रिपाठी इस फिल्म में उतने ही अटल जी लगे, जितने फिल्म पीएम नरेन्द्र मोदी में विवेक ओबेरॉय मोदी जी लगे थे और सम्राट पृथ्वीराज में अक्षय कुमार पृथ्वीराज लगे थे। फिल्म को देखकर लगा कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी सचमुच इतने पलायनवादी और बोरियत भरे व्यक्ति थे, जितने दिखाए गए हैं? अटल जी वास्तव में खाने पीने और शौक़ीन व्यक्ति रहे हैं तभी तो फिल्म में यह डायलॉग भी है कि ''मैं अविवाहित हूँ, कुंवारा नहीं !''
गणतंत्र दिवस पर लगी फिल्म फाइटर के कुछ डायलॉग हैं :
- पीओके का मतलब है -पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर; तुमने ऑक्यूपाइड किया है, मालिक हम हैं !
- उन्हें दिखाना पड़ेगा कि बाप कौन है?
- अगर हम बदतमीजी पर उतर आये तो तुम्हारा हर मोहल्ला IOP बन जाएगा -इंडिया ऑक्यूपाइड पाकिस्तान !
- ईंट का जवाब पत्थर से देने नहीं, धोखे का जवाब बदले से देने आये हैं।
- फाइटर वो नहीं, जो अटैक करता है, फाइटर वो है जो ठोक देता है !
- जंग में सिर्फ हार या जीत होती है, कोई मैन ऑफ द मैच नहीं होता।
- जो अकेला खेल रहा होता है, वो टीम के खिलाफ खेल रहा होता है।
यह सस्पेंस-ड्रामा फिल्म क्रिसमस नहीं, संक्रांति के मौके पर आई है। यानी आप 'तिल गुड़ ध्या आणि गोळ गोळ बोला' की जगह 'मेरी क्रिसमस' बोलें ? फिल्म की शुरुआत क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू होती है। मेरी क्रिसमस की रात और साजिश। हत्या, सस्पेंस और रोमांच से भरपूर यह फिल्म फ्रेडरिक डार्ड के फ्रेंच उपन्यास 'बर्ड इन ए केज' का रूपांतरण है।
यह मुंबई में एक लंबी रात की कहानी है जब इसे बॉम्बे कहा जाता था। कोलाबा के ईसाई बहुल इलाके में रहने वाला अल्बर्ट (विजय सेतुपति) सात साल बाद मुंबई लौटा है, अपनी माँ की मृत्यु पर शोक मना रहा है। अकेला है। निराशा से उबरने के लिए, जब वह खुद को क्रिसमस के जश्न में डुबाने की कोशिश करता है, तभी उसकी मुलाकात एक रेस्तरां में मारिया (कैटरीना कैफ) से होती है जो अपनी बेटी और बड़े टेडी बियर के साथ है, लेकिन बच्ची का पिता की वहां नहीं है। अल्बर्ट को लगता है कि कुछ गड़बड़ है लेकिन फिर भी वह उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। संयोग दर संयोग बनाते हैं। अल्बर्ट को लगता है कि उसकी रात हसीनतम होनेवाली है, लेकिन खुद को एक पिंजरे में फंसा हुआ पाता है।