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अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के पहले फिल्म पीएम नरेन्द्र मोदी के प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी, वरना एनडीए को इतने वोट नहीं मिलते। विवेक ओबेरॉय किसी कोण से नरेन्द्र मोदी नहीं लगते हैं। फिल्म कहीं पर डाॅक्युमेंट्री लगती है और कहीं पर बायोपिक। डिसक्लैमर में पहले ही कह दिया गया था कि यह फिल्म नरेन्द्र मोदी के जीवन पर आधारित है, लेकिन उसमें रचनात्मकता बनाए रखने के लिए कुछ चरित्र जोड़ दिए गए है और कल्पनाशीलता का उपयोग किया गया है, लेकिन कुल मिलाकर यह फिल्म नरेन्द्र मोदी की मिमिक्री बनकर रह गई है।

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पीएम नरेन्द्र मोदी फिल्म के निर्देशक है उमंग कुमार, जिन्होंने मैरी कॉम और सरबजीत के जीवन पर फिल्में बनाई थीं, लेकिन यह ‍फिल्म संजय दत्त के जीवन पर बनी संजू जैसी है। दर्शक समझ जाता है कि कहां सच्चाई है और कहां फेंका गया है। चुनाव के पहले फिल्म रिलीज करने की योजना थी और उसी इरादे से फिल्म के कुछ डायलॉग लिखे गए थे। फिल्म को चुनावी प्रचार मानकर चुनाव आयोग ने इसे चुनाव के ठीक पहले प्रदर्शित करने से रोक दिया गया था।

वैसे इस फिल्म में बड़े-बड़े नाम जुड़े है। ए.आर. रहमान का संगीत है। जावेद अख्तर, प्रसून जोशी, इरशान कामिल, अभेन्द्र उपाध्याय के गाने हैं। चुनाव के दौरान कहे गए नारे भी इस फिल्म में है और देशभक्ति से ओत-प्रोत वह महान गाना भी - सौगंध मुझे इस मिट्टी की में शीश नहीं झुकने दूंगा भी शामिल है। एक रैप सांग भी है।

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फिल्म के अनुसार देश में आपातकाल लगाया गया था, तो नरेन्द्र मोदी के कारण और उनके क्रांतिकारी कार्यों से ही आपातकाल के बाद कांग्रेस की हार हुई। गुजरात के जो दंगे हुए उसमें एक उद्योगपति का षड्यंत्र था। मोदीजी ने हर असंभव काम को संभव कर दिखाया, उनके नाम से सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह आदि खौफ खाते थे। आडवाणी और अटलजी ने मोदी का हमेशा समर्थन और सहयोग किया। मीडिया का एक बड़ा वर्ग मोदी के पीछे हाथ धोकर पड़ा रहा, क्योंकि मीडिया एक उद्योगपति के इशारे पर कार्य करता है। बीसीबी चैनल (बीबीसी की पैरोडी) का रिपोर्टर पैसे के लिए कुछ भी कर सकता है। देश में केवल एक ही मीडिया संस्थान है और एक ही उद्योगपति है, जिसका लक्ष्य नरेन्द्र मोदी को परेशान करना है। गुजरात के दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी ने दंगाइयों पर जमकर नियंत्रण किया। फिर बाद में कभी दंगे नहीं हो पाए। षड्यंत्रकारियों ने अक्षरधाम मंदिर पर हमला करके गुजरात में दोबारा दंगा फैलाने की कोशिश की, जो नरेन्द्र मोदी की चतुराई से नाकाम रही। नरेन्द्र मोदी की पटना रैली में उन्हें बम से उड़ाने के लिए पाकिस्तानी आतंकियों ने पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन मोदी और उनके समर्थकों के कारण यह विस्फोट नहीं हो पाया। इस चुनावी रैली में नरेन्द्र मोदी सभी मित्रों, शुभचिंतकों और अपनी मां की सलाह के बाद भी उपस्थित हुए थे।

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अमित शाह और नरेन्द्र मोदी की जोड़ी की तुलना फिल्म में जय-वीरू से की गई है। फिल्म के अनुसार अमित शाह ने कदम-कदम पर मोदी का साथ दिया और अगर अमित शाह नहीं होते, तो मोदी इस मुकाम तक नहीं पहुंच सकते थे, लेकिन इसका श्रेय भी नरेन्द्र मोदी को ही मिलता है, क्योंकि उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ में से अमित शाह जैसा ‘नायाब हीरा’ खोज निकाला था। मतलब अमित शाह की कामयाबी का श्रेय भी नरेन्द्र मोदी को ही है। फिल्म के एक दृश्य में युवा नरेन्द्र मोदी देवआनंद की फिल्म गाइड देखने जाते हैं और देवआनंद से खासे प्रभावित होकर अपनी कमीज का ऊपरी बटन लगाना शुरू करते है। गौतम बुद्ध ने उनके जीवन पर बहुत असर छोड़ा है। वे कभी आरएसएस कार्यकर्ता बनना चाहते हैं, कभी फौजी, तो कभी संन्यासी। परिस्थितियां उन्हें फौजी नहीं बनने देती, लेकिन संघ कार्यकर्ता के रूप में भी वे फौजी जैसा ही कार्य करते हैं। फिल्म में श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराने की बात भी है, जिसकी शूटिंग कहीं और की गई थी।

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फिल्म की शुरूआत 2013 से शुरू होती है, जिस बैठक में बीजेपी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया था। आगे जाकर फ्लैश बेक में चाय की दुकान, बर्तन मांजती उनकी मां, संन्यासी बनने की इजाजत, घरवालों की मर्जी के विरूद्ध शादी करने की मनाही, आरएसएस वर्कर के रूप में कठोर त्याग और तपस्या आदि-आदि दिखाया गया है। नरेन्द्र मोदी की शादी का दृश्य नहीं है, न ही उनकी पत्नी फिल्म में दिखाई गई है।

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वाइब्रेंट गुजरात के दृश्य भी फिल्म में है, किस तरह नरेन्द्र मोदी ने टाटा को गुजरात आमंत्रित किया। किस तरह अमेरिकी वीजा न मिलने पर अमेरिकी उद्योगपतियों को गुजरात बुलाया। कैसे चाय की दुकान उन्होंने चलाई और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी चाय बनाने का संदेश लोगों को दिया। भाजपा के विज्ञापनों के कॉपीराइटर की सेवाएं भी फिल्म में ली गई लगती है। फिल्म में मनमोहन सिंह को भी दिखाया गया है, लेकिन चूंकी वे मनमौन सिंह है, इसलिए उनका कोई भी डायलॉग नहीं है। फिल्म के अनुसार यूपीए की सरकार ने गुजरात को नीचा दिखाने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। नरेन्द्र मोदी ने सरकारी मदद के बिना ही गुजरात में क्रांतिकारी कार्य कर दिए और गुजरात को स्वर्ग बना दिया। फिल्म कहती है कि चाय पे चर्चा का मतलब शिक्षा बिना खर्चा होती है। इलेक्शन पैसे से नहीं लोगों से जीता जाता है और जीतने का मजा तब आता है, जब लोग आपके हारने की कल्पना करते है, जो लोगों के दिलों में धड़क रहा है, वह कई लोगों की आंखों में चुभ भी रहा है। अमित शाह की भूमिका पद्मश्री मोहन जोशी ने की है। जरीना वहाब ने नरेन्द्र मोदी की मां का रोल किया है।

अगर आपने मनोरंजन के लिए संजू देखी हो, मनोरंजन के लिए ही अजहर देखी हो, तो मनोरंजन के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी देख सकते है। भक्तों को फिल्म पसंद आएगी।

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