जो रोल अमिताभ बच्चन को मिलना चाहिए, वह अवतार गिल को मिल जाए, तो क्या होगा? अगर अमिताभ को दीवार और शोले की जगह अवतार में प्रमुख भूमिका निभानी होगी तो क्या होगा? यह हेयर लॉस नहीं आइडेंडिटी का ही लॉस हो जाएगा। पिछले हफ्ते ही फिल्म आई थी उजड़ा चमन और इस शुक्रवार को लगी है बाला। दोनों ही फिल्मों का विषय एक है। जवानी में गंजे होते युवाओं की समस्या। बाला ने उजड़ा चमन को बहुत पीछे छोड़ दिया है, क्योंकि इसमें कहानी और चरित्रों की प्रस्तुती इस तरह की गई है कि वह दिलचस्प और विचारोत्तेजक लगती है। उजड़ा चमन देखते हुए गिरते बालों की समस्या से परेशान व्यक्ति को खीज होने लगती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने जैसे पात्र का उपहाश बर्दाश्त नहीं कर सकता। बाला में इसी बात को संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है। उजड़ा चमन में गंजे होते युवा और रश्त-पुश्त होती युवती की कहानी थी। इसमें एक सुंदर युवती और गंजे होते युवक के साथ ही एक श्याम वर्ण युवती की कहानी भी जोड़ दी गई है।
बाला की खूबी यह है कि इसमें कोई खूबी नहीं है। इसके सारे पात्र सामान्य लोग है। इसमें न तो हीरो की धमाकेदार एंट्री है और न ही हीरोइन के ग्लैमरस दृश्य। स्विटजरलैंड या ऑस्ट्रेलिया में भी गाने नहीं फिल्माए गए है। हीरो-हीरोइन बेचारे लखनऊ और कानपुर में ही नाच-गाकर संतुष्ट हो जाते है। भव्य सेट्स और वीएफएक्स भी नहीं है। फिल्म का एक डायलाॅग है कि उत्तरप्रदेश और बाला की जिंदगी भगवान के भरोसे चल रही है। यह डायलॉग यूं भी हो सकता था कि भारत और भारतवासियों की जिंदगी भगवान के भरोसे ही चल रही है। बाला की कहानी बालों से शुरू होती है और बालों पर जाकर ही खत्म हो जाती है। वास्तव में सभी लोगों की जिंदगियां ऐसी ही होती है, सुखांत नहीं होता।
हमारे समाज में लड़कियों के लिए बॉडी शेमिंग का शिकार होना आम बात है। कोई लड़की ज्यादा दुबली या मोटी या सांवली है, तो उसके लिए शादी कर पाना आसान नहीं। ऐसी ही बॉडी शेमिंग युवकों के लिए भी है, अगर वे गंजे होते जा रहे है। शादी के हर विज्ञापन में यही लिखा जाता है कि दूल्हे के लिए सुंदर और गोरी लड़की चाहिए और लड़कियों के तरफ से दिए जाने वाले विज्ञापनों में भी गोरेपन को अतिरिक्त योग्यता या उपलब्धि के तौर पर बताया जाता है। ऐसे गंजे होते और शुगर की बीमारी से पीड़ित हीरो के लिए लड़की खोजना आसान बात नहीं। अपने बालों के लिए वह 200 से ज्यादा जतन कर चुका है। तरह-तरह के तेल, योगासन, भैंस का गोबर, न जाने कितनी जड़ी-बूटियां आजमाने के बाद हीरो विग लगाने लगता है। हेयर ट्रांसप्लांट कराने में उसे डर लगता है और खर्च भी ज्यादा आता है। वीग लगाए-लगाए ही वह गर्लफ्रेंड पा जाता है और उसकी शादी भी हो जाती है। शादी के बाद जब नई दूल्हन को पता चलता है कि उसका पति विग पहनता है, तब शादी एक दोहराहे पर आकर खड़ी हो जाती है। कहानी में बहुत से मोड आते है और अंत में कुछ भी अनुपेक्षित नहीं होता। हिन्दी फिल्मों के दर्शकों को फिल्मों को ऐसे अंत देखने की आदत नहीं है।
अपने बालों को बचाने के जतन करने वाला व्यक्ति ही सबसे ज्यादा हंसी का पात्र बनता है, क्योंकि हमारे यहां बहुत कम लोग है, जो हालात को यथावत स्वीकार कर पाते है। आयुष्मान खुराना ने एक ऐसे नौजवान की भूमिका अदा की है, जिसके बाल भरी जवानी में ही झड़ते है और हाल यह हो जाता है कि उसे आइने के सामने खड़े होकर कंगी करने में भी दर्द का एहसास होता है। लखनऊ के बालमुकुंद शुक्ला बने आयुष्मान खुराना की यह लगातार सातवीं हिट फिल्म होगी, इसमें शक नहीं। उन्होंने बेक टू बेक कानपुरिया अंदाज में अभिनय किया है और यामी गौतम ने औसत बुद्धि की टिक-टोक स्टार की भूमिका निभाई है। सबसे गजब अभिनय भूमि पेडनेकर का है, लेकिन उन्हें मेकअप के जरिये भद्दा दिखाने की कोशिश की गई है, जो अटपटी लगती है। सौरभ शुक्ला, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी और धीरेन्द्र कुमार गौतम के भी दिलचस्प रोल है। कम बजट की यह दिलचस्प फिल्म मनोरंजक दृश्यों, बेहतर एक्टिंग और सुंदर क्लाइमेक्स के लिए देखी जा सकती है। फिल्म के प्रमुख पात्र मिश्रा, त्रिवेदी, शुक्ला आदि है। यह थोड़ा अटपटा लगता है। साफ-सुथरी मनोरंजक फिल्म, आप परिवार के साथ भी देख सकते हैं।