हे प्रभु, मुझे माफ़ कर, मैंने मरजाँवा फ़िल्म देख ली!
(तत्काल लिखने की हिम्मत नहीं हुई!)
मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा था, लेकिन फिर भी मैं मरजाँवा फिल्म देखने के लिए चला गया। आप किसी भी कारण से यह फिल्म देखने का जोखिम मत उठाइए। महाबकवास है!
मिलाप जवेरी निर्देशित फिल्म मरजाँवा का एक डायलॉग है - अब मैं बदला नहीं लूंगा, मैं इंतकाम लूंगा।" उसी अंदाज़ में कहा जा सकता है कि यह फिल्म बोर नहीं करती, दिमाग को घुमा देती है। दिमाग़ का दही नहीं, सड़ा हुआ दही बनाकर फेंट देती है! फिल्म के नाम पर महापकाऊ फिल्म! फ़िल्म की खूबी? हां, इसकी एक भी खूबी नही है। 30 - 40 साल पुराने साढ़े तीन दर्जन फार्मूलों को जबरन दिखाया गया है। तस्कर हैं, गैंगवार है, वफा है, लड़की को देखते ही मर मिटनेवाला हीरो है, जो रजनीकांत का चचा है, (जिसे आग जला नहीं सकती, पानी गला नहीं सकता, वायु उड़ा नहीं सकती), लेडी बर्फी जैसी गूंगी हीरोइन है, जीरो के हीरो शाहरुख जैसा नाटा-सा खलनायक है। हिन्दू है, मुस्लिम है, मस्जिद में हिंसा है, मंदिर में हिंसा है, सांप्रदायिक सौहार्द का ओवरडोज़ है और हर बात पर है मारपीट, मारपीट, मारपीट! पुलिस शोभा की वस्तु है! ना कलाकारों का उपयोग किया गया है ना लोगों की प्रतिभा का! इसे देखने जाना पैसे की बर्बादी है
इस फिल्म में हिंसा के मामले में कबीर सिंह को भी पीछे छोड़ दिया है। इसमें सभी पात्र सुपरफिशियल हैं। नकलीपन की इंतेहा है।
है प्रभु! मुझे माफ़ कर! मैंने यह फ़िल्म देखी है! वक़्त और रुपये को बर्बाद किया है!