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डिस्क्लैमर : किसी साहसी महिला को मर्दानी कहना उसकी प्रशंसा नहीं, एक लिंगभेदी टिप्पणी है। उसे प्रशंसा के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। इंदिरा गांधी के बारे में किसी ने कहा था कि उस दौर की राजनीति में वे इकलौती मर्द थीं। वास्तव में उन्हें लौह महिला या आयरन लेडी कहना उचित होता।

मर्दानी-2 फिल्म 2014 में आई मर्दानी की अगली कड़ी है। यह एक जांबाज आईपीएस अधिकारी की कहानी है, जो कोटा में एसपी हैं और उसे एक साइको किलर ने चुनौती दे रखी है कि अगर दम है, तो मुझे पकड़कर दिखा। इस फिल्म में पुलिस अधिकारी बनी रानी मुखर्जी का साबका एक ऐसे अपराधी से होता है, जो महिलाओं के प्रति क्रूरतम अपराध करता है और इसके साथ ही पुलिस को चुनौती देता जाता है।

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खासकर महिला पुलिस अधिकारी को। इस महिला पुलिस अधिकारी को अपनी योग्यता साबित करने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ता है और अंतत: वह अपने उद्देश्य में सफल होती है, जब वह उस हत्यारे को गिरफ्तार कर लेती हैं। इस फिल्म में अभिनय के अलावा रानी मुखर्जी को भाषणनुमा संवाद भी बोलने होते है और यह साबित करने की कोशिश करनी होती है कि मीडिया वाले पुलिस को उसका काम नहीं करने देते। परिवार के लोगों के सहयोग के बावजूद वे पूरे पुरूष समाज को एक खास मानसिकता का दोषी पाती है। फिल्म का खलनायक भी एक ऐसा ही साइको किलर है, जिसे महिलाओं की कामयाबी कही नहीं सुहाती। इसके साथ ही फिल्म में भ्रष्ट नेता और पुलिस के भीतर की राजनीति भी इशारों-इशारों में समझाई गई है। 

यह फिल्म ऐसे वक्त पर रिलीज हुई है, जब निर्भया कांड के अपराधियों को फांसी देने की तैयारी की जा रही है और हैदराबाद जैसे घटनाक्रम के बाद लोग न्याय की जगह बदले को तवज्जों दे रहे है। देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध की दूसरी घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में दर्शक फिल्म के पात्रों के जरिये अपने आप को अभिव्यक्त करते है। आदित्य चोपड़ा ने यह फिल्म रानी मुखर्जी के लिए बनाई है, इसलिए जाहिर है कि फिल्म में पर्दे पर रानी ही रानी नजर आती हैं। उनके सामने विशाल जेठवा ने एक दुर्दांत अपराधी की भूमिका की है, लेकिन वे रानी के सामने कहीं टिक नहीं पाते। कुछ पैरोडीनुमा संवाद भी है, जैसे मैं तुम्हें इतना पीटूंगी कि तुम्हारी त्वचा से तुम्हारी उम्र का पता ही नहीं चलेगा। खलनायक को मथुरा इलाके का रहने वाला बताया गया है, लेकिन वह हरियाणवी टोन में बात करता है। 

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फिल्म के पहले ही पर्दे पर आता है कि यह एक काल्पनिक कहानी है, जो एक सत्य घटना से प्रेरित है। फिल्म की पृष्ठभूमि कोटा की है और यह बताती है कि एज्युकेशन हब होने के नाते वहां की पुलिस छात्राओं को लेकर कितनी संवेदनशील है। फिल्म में आईपीएस अधिकारी के ओहदे वाली एसपी के सामने किसी कस्बाई अपराधी की बराबरी जमती नहीं। कई बार ऐसा लगता है कि महिला अधिकारी अपराधी को पकड़ने में अपनी शक्ति और दिमाग के बजाय भावनाओं से काम लेने लगती हैं। इस तरह दिखाने से रानी मुखर्जी का रोल कमजोर महसूस होता है। एक पुलिस अधिकारी को कोई अपराधी पीटे, यह बात भी दर्शकों को पसंद नहीं आती। 

फिल्म में विभत्स दृश्यों को छोटा दिखाया गया है, यह राहत वाली बात है। गोपी पुथरन ने निर्देशन, लेखन तथा संवाद का जिम्मा संभाला है। रानी मुखर्जी ने दमदार पुलिस अधिकारी के रूप में भी अपनी छाप छोड़ी है। कहानी की गति तेज है और वह रोमांचित करती है। फिल्म की लम्बाई कम होना सुकून भरा है। 

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